अब तक नहीं मिला सातवां वेतनमान, HC के आदेश के बावजूद टालमटोल कर रही सरकार

मध्यप्रदेश के गैर-सरकारी अनुदान प्राप्त स्कूलों के शिक्षकों को सातवें वेतन आयोग का लाभ नहीं मिल पाया है, हालांकि हाईकोर्ट ने 2019 में आदेश दिया था। सरकार ने अब तक इसे लागू नहीं किया।

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Neel Tiwari
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MP NEWS: मध्यप्रदेश के गैर-सरकारी अनुदान प्राप्त स्कूलों के शिक्षकों और कर्मचारियों को आज भी सातवें वेतन आयोग का लाभ नहीं मिल पाया है। इस मामले को लेकर माध्यमिक शिक्षक संघ ने 2018 में ही हाईकोर्ट में शरण ली थी। जस्टिस नंदिता दुबे ने शिक्षकों के पक्ष में आदेश दिया था कि वे सरकार के समकक्ष हैं और उन्हें भी सातवें वेतनमान का लाभ मिलना चाहिए। कोर्ट ने यह आदेश जारी किया था कि 60 दिनों के भीतर शिक्षकों के अभ्यावेदन पर निर्णय लिया जाए।

कोर्ट के निर्देश पर भी नहीं मिला इंसाफ

हाईकोर्ट ने 2019 के अपने फैसले में कहा था कि शिक्षक पहले सरकार के समक्ष सातवें वेतन आयोग के लाभ के लिए अभ्यावेदन दे और सरकार उस पर 60 दिनों में फैसला ले। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया था कि यदि शिक्षक इस लाभ के हकदार हैं, तो उन्हें दो महीने के भीतर इसका भुगतान किया जाए। सरकार ने यह तो माना कि यह शिक्षक सातवें वेतनमान के लिए योग्य हैं। लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद भी महज ‘अभ्यावेदन पर विचार’ की बात कहकर भुगतान से पल्ला झाड़ लिया।

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कागजों में उलझा वेतनमान

शिक्षक संघ ने दोबारा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सरकार ने बताया कि सातवें वेतनमान के 287 करोड़ रुपए के एरियर को 2016 से 2024 तक 5-6 किश्तों में देने पर विचार किया जा रहा है।इसके बाद कोर्ट को बताया गया कि विभाग ने प्रशासनिक और मंत्रीस्तरीय मंजूरी मिल चुकी है।

विभाग ने इस मामले को सरकार पर डालते हुए कहा कि बस कैबिनेट की अंतिम स्वीकृति बाकी है। कोर्ट ने इसे साफ तौर पर टालमटोल और आदेश की अवहेलना मानते हुए DPI कमिश्नर को तलब किया। लेकिन सरकार ने नया पैंतरा खेलते हुए जस्टिस दुबे के साल 2019 के फैसले को ही चुनौती दे दी।

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अपील में सामने आए DPI के अलग-अलग बयान

30 जुलाई को चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की बेंच में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं के वकील के सी गिड़याल ने कोर्ट को बताया कि पहले 287 करोड़ रुपए के एरियर को 5-6 किश्तों में देने पर विचार किया गया था। 

इसके बाद बताया गया कि प्रशासनिक प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और मंत्री से अप्रूवल मिल गया है। लेकिन अब अवमानना के चलते यह बताया जा रहा है कि इस मामले में कैबिनेट की स्वीकृति जरूरी है।  एक ओर जहां विभाग और सरकार के द्वारा बार-बार बयान बदले जा रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर अपील लगाकर मामले को लटकाने की कोशिश की जा रही है।

कोर्ट ने यह पाया कि लोक शिक्षण आयुक्त ने उसे कैबिनेट के समक्ष उचित ढंग से प्रस्तुत नहीं किया। कोर्ट ने साफ निर्देश दिया कि DPI कमिश्नर अगली सुनवाई में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उपस्थित हों। उन्हें यह बताना होगा कि कर्मचारियों को अब तक सातवें वेतनमान का लाभ क्यों नहीं दिया गया और सरकार की तैयारी क्या है।

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कोर्ट में नहीं चली सरकारी पक्ष की दलीलें

सरकार की ओर से कोर्ट में या दलील दी गई कि पिछले आदेश में अभ्यावेदन पर सिर्फ विचार करने की बात कही गई थी और उसी पर विचार किया गया है। लेकिन कोर्ट ने यह पाया कि पिछले आदेशों के अनुसार ही अभ्यावेदन पर सही ढंग से विचार नहीं किया गया। सरकार की ओर से कोर्ट में बार-बार अलग-अलग दलीलें दी गई। माध्यमिक शिक्षक संघ का एक यूनियन होने के नाते इस याचिका के योग्य ना होने की सरकार की दलील भी पहले ही खारिज की जा चुकी थी।

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12 अगस्त की सुनवाई अहम

याचिकाकर्ताओं के वरिष्ठ अधिवक्ता के.सी. गिडयाल ने कोर्ट से आग्रह किया। उन्होंने कहा कि मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य के मुख्य सचिव को अदालत में पेश होने का आदेश दिया जाए। उनका कहना था कि इस मामले में अंतिम फैसला सरकार को ही लेना है। हालांकि कोर्ट ने कहा कि पहले लोक शिक्षण आयुक्त का जवाब सुना जाएगा, उसके बाद मुख्य सचिव की पेशी पर फैसला होगा। मामले की अगली सुनवाई 12 अगस्त 2025 को दोपहर 2:30 बजे होगी।

आठवें वेतन आयोग की दस्तक,सातवें वेतनमान का इंतजार 

एक तरफ सरकार आठवें वेतन आयोग की प्रक्रिया शुरू करने जा रही है। दूसरी तरफ राज्य के हजारों शिक्षक अब तक 7वां वेतनमान आयोग का हक पाने के लिए सालों से संघर्ष कर रहे हैं। शिक्षकों में इस मुद्दे को लेकर गहरा रोष है और  शिक्षकों के संगठन इसे लेकर प्रदेश भर में कई बार प्रदर्शन भी कर चुके हैं। लेकिन अब तक उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिल रहा है।

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