सोम डिस्टलरीज: अवैध शराब पकड़ाई, लाइसेंस अब तक क्यों नहीं रद्द हुआ? एक साल से अटका मामला

इंदौर के देपालपुर में सोम डिस्टिलरीज पर अवैध शराब परिवहन का मामला सामने आया था। पुलिस ने नकली परमिट और बिल्टी के साथ शराब जब्त की। अदालत ने दोषियों को तीन साल की सजा और जुर्माना लगाया। हाईकोर्ट ने सजा तो सस्पेंड की, लेकिन दोष सिद्धि को नहीं।

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Ramanand Tiwari
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BHOPAL.इंदौर की बेटमा तहसील के देपालपुर में सोम डिस्टलरीज एंड ब्रेवरीज लिमिटेड पर पुलिस ने कार्रवाई की थी। सोम डिस्टलरीज प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ पुलिस ने अवैध शराब परिवहन का बड़ा मामला पकड़ा था। पुलिस ने नकली परमिट और बिल्टी के साथ भारी मात्रा में अवैध शराब जब्त की। इसके बावजूद, आबकारी विभाग ने कंपनी का लाइसेंस अब तक रद्द नहीं किया।

कोर्ट ने सुनाई सजा

अदालत ने दोषियों को तीन साल की जेल और जुर्माना की सजा सुनाई। हाईकोर्ट ने सजा को सस्पेंड तो किया, लेकिन दोषसिद्धि को नहीं। इसके बाद भी, आबकारी विभाग ने न तो लाइसेंस रद्द किया और न ही ठोस कार्रवाई की।

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कानून क्या कहता है?

मध्यप्रदेश आबकारी अधिनियम, 1915 की धारा 31 (1D) के अनुसार, गंभीर अपराधों में दोषी डायरेक्टर का लाइसेंस रद्द होना चाहिए। धारा 467 और 468 जैसे अपराध अजमानतीय और संगीन माने जाते हैं। इन धाराओं में दोषी व्यक्ति को लाइसेंस नहीं दिया जा सकता।

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विभाग ने क्यों लिया एक साल से कोई फैसला नहीं?

1 जुलाई 2024 को, आबकारी विभाग ने अतिरिक्त महाधिवक्ता से इस पर विधिक राय मांगी थी। लेकिन एक साल बाद भी कोई जवाब नहीं मिला। अब सवाल ये है कि क्या विभाग इस बहाने से बच रहा है, जबकि कानूनी स्थिति पूरी तरह साफ है?

विभाग चाहे तो खुद भी कर सकता था कार्रवाई

विभाग के पास शोकॉज नोटिस देने और सुनवाई करने का अधिकार है। सोम डिस्टिलरी को एक नोटिस भेजा भी गया, और कंपनी ने जवाब भी दे दिया। इसके बावजूद, न 15 दिन में लाइसेंस रद्द किया गया और न कोई कड़ा कदम उठाया गया। इससे विभाग की मंशा पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

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आबकारी विभाग रहा नदारद

अवैध शराब के खिलाफ पूरा ऑपरेशन पुलिस ने अंजाम दिया। जबकि ये काम आबकारी विभाग की जिम्मेदारी में आता है। स्थानीय कोर्ट ने सोम डिस्टिलरी के निदेशकों को सजा सुनाई, लेकिन तत्कालीन आबकारी आयुक्त ने भी चुप्पी साध ली। नया आयुक्त आया तो शोकॉज जारी हुआ, लेकिन आगे कुछ नहीं हुआ।

मामला क्या है?

सोम डिस्टिलरीज के कर्मचारियों पर आरोप है कि उन्होंने फर्जी परमिट और नकली दस्तावेज तैयार किए। खुद को और कंपनी को मुनाफा पहुंचाया। सरकार को राजस्व का नुकसान पहुंचाया। पुलिस ने भारी मात्रा में अवैध शराब जब्त की और केस दर्ज किया।

सजा के दो साल बाद भी लाइसेंस बहाल

देपालपुर जिला इंदौर के अपर सत्र न्यायालय ने प्रकरण क्रमांक 21/2021 (प्रकरण क्रमांक 565/11) में 23 दिसंबर 2023 को महत्वपूर्ण फैसला सुनाया।

न्यायालय का फैसला

इस निर्णय में विभागीय अधिकारी प्रीति गायकवाड़, जो उस समय आबकारी उप निरीक्षक के पद पर थीं। इनको सोम डिस्टिलरी के निदेशकों के साथ भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 468, 471 और 120B के तहत दोषी पाया गया। न्यायालय ने सभी आरोपियों को तीन वर्ष के कारावास और 1000 के अर्थदंड से दंडित किया।

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सरकारी कार्रवाई और निलंबन

इस फैसले के बाद मध्यप्रदेश शासन ने आदेश क्रमांक 1/1/25/0001/2025 दिनांक 25 सितंबर 2024 के तहत प्रीति गायकवाड़ को सेवा से बर्खास्त कर दिया। हालांकि, हाईकोर्ट इंदौर ने 24 जनवरी 2024 को उनके एक्सिक्यूशन ऑफ सेंटेंस को सस्पेंड कर दिया था। प्रीति गायकवाड़ ने कन्विक्शन सस्पेंड करने के लिए एप्लीकेशन 1968/2025 दायर की। हाईकोर्ट ने 10 सितंबर 2025 को उनकी याचिका खारिज कर दी।

डिस्टिलरी के निदेशक अब भी सक्रिय

दिलचस्प बात यह है कि जिन धाराओं में गायकवाड़ को दोषी ठहराया गया। उन्हीं धाराओं में सोम डिस्टिलरी के निदेशकों को भी समान सजा सुनाई गई है। फिर भी, अब तक सोम डिस्टिलरी का लाइसेंस मध्यप्रदेश आबकारी अधिनियम 1915 की धारा 31(1)(d) के तहत निरस्त नहीं किया गया है।

प्रशासन पर उठ रहे सवाल

यह स्थिति सवाल खड़े करती है कि जब दोष सिद्ध व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई, तो डिस्टिलरी प्रबंधन के खिलाफ ढिलाई क्यों बरती जा रही है?

लाइसेंस निरस्तीकरण पर चुप्पी क्यों?

कानूनी दृष्टि से देखें तो, जब डिस्टिलरी डायरेक्टर्स का कन्विक्शन अब भी बरकरार है। उन्होंने हाईकोर्ट में सस्पेंशन ऑफ कन्विक्शन का आवेदन नहीं दिया। इसलिए उनका लाइसेंस स्वतः निरस्त किया जाना चाहिए था। दो वर्ष बीतने के बावजूद यदि ऐसा नहीं हुआ, तो यह सिस्टम की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवाल खड़े करता है।

क्या बोले आबकारी आयुक्त?

आबकारी आयुक्त अभिजीत अग्रवाल ने कहा महाधिवक्ता को पहले भी पत्र लिखा गया था, रिमाइंडर भी भेजे हैं। अब फिर से रिमाइंडर कर AG से बात करूंगा।

सिस्टम में गंभीर चूक या मिलीभगत?

कानून साफ है। कोर्ट का फैसला स्पष्ट है। विभाग के पास कार्रवाई का अधिकार है। फिर भी कार्रवाई नहीं होना, प्रशासनिक निष्क्रियता या मिलीभगत की ओर इशारा करता है।

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