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Photograph: (THESOOTR)
कमलेश सारड़ा@NEEMUCH
सरकारी दस्तावेजों की कागजी खानापूर्ति अब आम आदमी की जेब पर भारी पड़ने वाली है। सरकार ने शपथ पत्र, अनुबंध लेख और पावर ऑफ अटार्नी जैसे दस्तावेजों पर लगने वाले स्टांप शुल्क में भारी वृद्धि का प्रस्ताव तैयार कर लिया है।
बताया जा रहा है कि इस शुल्क में चार गुना तक बढ़ोतरी की जा सकती है। भोपाल में इसकी तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है और मध्यप्रदेश विधानसभा सत्र में इसे लेकर स्टांप विधेयक में संशोधन का प्रस्ताव भी पेश किया जा चुका है।
वर्तमान शुल्क और प्रस्तावित वृद्धि...
शपथ पत्र: वर्तमान में 50 रुपए का स्टांप शुल्क लगता है, जो बढ़ाकर 200 रुपए किया जा सकता है।
अनुबंध लेख: अभी 1000 रुपए के स्टांप पर बनता है, प्रस्ताव के बाद 5000 रुपए का स्टांप अनिवार्य होगा।
पावर ऑफ अटार्नी: वर्तमान शुल्क 1000 से बढ़ाकर 5000 रुपए किया जा सकता है।
यह संशोधन यदि पारित हो गया तो आम लोगों के लिए हर छोटा-बड़ा सरकारी काम महंगा हो जाएगा। बिजली कनेक्शन, मीटर नामांतरण, कॉलेजों में दाखिले, छात्रवृत्ति, जाति/आय प्रमाण पत्र, सरकारी सेवा में दिए जाने वाले शपथ पत्र जैसे जरूरी दस्तावेज बनवाने पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ेगा।
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स्टांप विक्रेताओं और लोगों का विरोध
स्टांप विक्रेता संघ और आमजन ने इस प्रस्तावित शुल्क वृद्धि का विरोध शुरू कर दिया है। नीमच के स्टांप विक्रेता जगदीश न्याति ने कहा कि यह बढ़ोतरी पूरी तरह अव्यवहारिक है और सीधा असर आम जनता पर पड़ेगा। हमने इस पर पुनर्विचार करने की मांग को लेकर सरकार और मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी भेजा है। चार गुना वृद्धि का कोई तर्क नहीं है।
हर वर्ग पर पड़ेगा असर
विशेषज्ञों का मानना है कि स्टांप शुल्क में इतनी बड़ी वृद्धि से छात्रों, अभिभावकों, छोटे व्यापारियों से लेकर सरकारी योजनाओं के हितग्राहियों तक हर वर्ग प्रभावित होगा। यहां तक कि यदि पुलिस किसी वाहन को जब्त करती है और चालान के बाद उसे छुड़वाने के लिए पावर ऑफ अटार्नी देना हो, तो वह भी अब पांच गुना अधिक खर्चीला होगा।
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सरकार की मंशा- राजस्व बढ़ाना
सूत्रों के अनुसार सरकार स्टांप शुल्क में बढ़ोतरी कर अपना राजस्व बढ़ाना चाहती है। हालांकि, आमजन पर इसका सीधा आर्थिक प्रभाव पड़ेगा, जिसे देखते हुए विरोध की आवाजें उठने लगी हैं।
अगर यह संशोधन पारित होता है तो छोटी-छोटी कानूनी और सरकारी प्रक्रियाएं आम आदमी के लिए महंगी साबित होंगी। अब देखना होगा कि विधानसभा में यह विधेयक पास होता है या विरोध की आवाजें सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिए मजबूर करती हैं।
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