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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पैथोलॉजी लैब्स में इस्तेमाल होने वाले रसायनों, अभिकर्मकों लवणों और किट्स की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए बड़ा आदेश दिया है। अदालत ने केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वे इन सामग्रियों के मानकों को तय करने और उनकी शुद्धता की जांच के लिए ठोस कदम उठाएं।
किट्स सहित केमिकल्स से जुड़ा है मामला
यह मामला याचिकाकर्ता अमिताभ गुप्ता द्वारा दायर की गई रिट याचिका से जुड़ा है। उन्होंने अपनी याचिका में मांग की थी कि पैथोलॉजिकल लैब्स में उपयोग किए जाने वाले रसायनों, रिजेंट और किट्स को Indian Pharmacopoeia Commission (IPC) द्वारा निर्धारित मानकों में शामिल किया जाए। याचिकाकर्ता का कहना था कि फिलहाल पैथोलॉजिकल जांच में इस्तेमाल होने वाले कई केमिकल्स और किट्स बिना किसी तय मानक के उपयोग किए जा रहे हैं, जिससे मरीजों की जांच की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है। उन्होंने अदालत से यह सुनिश्चित करने की अपील की थी कि सिर्फ उन्हीं सामग्रियों का उपयोग किया जाए, जो तयशुदा मानकों के अनुरूप हों और सरकारी संस्थाओं द्वारा प्रमाणित हों।
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याचिका में यह रखी गईं मांगें
इंडियन फार्माकोपिया कमीशन (IPC) को यह निर्देश दिया जाए कि वह पैथोलॉजिकल लैब्स में उपयोग होने वाले सभी रसायनों, अभिकर्मकों, लवणों और किट्स के लिए मानक तैयार करे और उनके शुद्धता स्तर को निर्धारित करने के लिए एक मोनोग्राफ प्रकाशित करे। संबंधित सरकारी एजेंसियों को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए जाएं कि ये रसायन और किट्स तय मानकों के अनुरूप ही निर्मित और वितरित किए जाएं। देशभर में केवल उन्हीं उत्पादों का उपयोग किया जाए, जो इंडियन फार्माकोपिया कमीशन द्वारा प्रमाणित हों। यह सुनिश्चित किया जाए कि देशभर के सभी पैथोलॉजिकल लैब्स NABL (नेशनल एक्रीडिटेशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कलिब्रेशन लेबोरेटरी) से प्रमाणित हों। सरकार यह सुनिश्चित करे कि कोई भी निर्माता या आयातक बिना तय मानकों का पालन किए हुए इन रसायनों और किट्स का निर्माण या आयात न करें।
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सरकार ने दिया यह तर्क
सरकार और अन्य उत्तरदाताओं ने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट, 1940 और इसके तहत बनाए गए नियमों का मुख्य उद्देश्य नकली, मिलावटी और निम्न गुणवत्ता वाली दवाओं की रोकथाम करना है। इंडियन फार्माकोपिया कमीशन (IPC) ने कहा कि वह केवल उन्हीं दवाओं और पदार्थों के मानक तय करता है, जो उसके कार्यक्षेत्र में आते हैं।
सरकार ने यह भी कहा कि पैथोलॉजिकल लैब्स में उपयोग होने वाले कई रसायन और अभिकर्मक (regents) Drugs and Cosmetics Act के तहत विनियमित नहीं होते हैं। मेडिकल डिवाइसेज नियम, 2017 के तहत केवल कुछ विशेष डायग्नोस्टिक किट्स और उपकरणों को ही रेगुलेट किया जाता है। इनमें HbsAg, HCV और HIV परीक्षण किट्स शामिल हैं, जिन्हें केंद्र सरकार ने अधिसूचित किया हुआ है। सरकार का तर्क था कि यदि सभी प्रकार के केमिकल्स और अभिकर्मकों को कानून के दायरे में लाया जाता है, तो इससे जरूरत से ज्यादा रेगुलेशन होगा, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता पर असर पड़ सकता है।
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हाईकोर्ट का आदेश
मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को एक महीने के भीतर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।
1. केंद्र सरकार एक हलफनामा दाखिल करे, जिसमें यह स्पष्ट किया जाए कि पैथोलॉजिकल लैब्स में उपयोग होने वाले सभी रसायनों और किट्स की सूची क्या है और क्या उनके लिए कोई मानक तय किए गए हैं।
2. इंडियन फार्माकोपिया कमीशन (IPC) एक हलफनामा प्रस्तुत करे और बताए कि क्या उसने इन सामग्रियों के लिए कोई मानक तैयार किए हैं? यदि नहीं, तो इसे तैयार करने की क्या संभावना है।
3. मध्य प्रदेश सरकार एक रिपोर्ट सौंपे, जिसमें राज्य में NABL ( नेशनल एक्रीडिटेशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लिबर्टीज) से प्रमाणित पैथोलॉजिकल लैब्स की सूची दी जाए।
4. सरकार यह बताए कि सभी पैथोलॉजिकल लैब्स को चरणबद्ध तरीके से NABL प्रमाणन दिलाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं।
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मनमानी पर लगाम लगने की उम्मीद
इस फैसले के बाद पैथोलॉजिकल जांच की गुणवत्ता में सुधार होने की संभावना है। मरीजों को अधिक विश्वसनीय और प्रमाणित जांच रिपोर्ट मिलने की उम्मीद है। इसके अलावा, यह फैसला उन निर्माताओं और आपूर्तिकर्ताओं पर भी प्रभाव डालेगा, जो अब तक बिना किसी मानकों के अपने उत्पाद बाजार में बेच रहे थे। अगर सरकार इस आदेश को सख्ती से लागू करती है, तो भविष्य में सिर्फ प्रमाणित और उच्च गुणवत्ता वाले केमिकल्स और किट्स का ही उपयोग होगा। हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि वह एक महीने के भीतर सभी आवश्यक जानकारियां प्रस्तुत करे। मामले की अगली सुनवाई 1 अप्रैल 2025 को होगी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस आदेश को कितनी जल्दी और प्रभावी तरीके से लागू करती है। यह फैसला उन लाखों मरीजों के लिए राहतभरा हो सकता है, जो डायग्नोस्टिक टेस्ट पर निर्भर होते हैं।