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JABALPUR.मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने छात्र संघ चुनाव न कराने को लेकर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है। दरअसल एमपी के यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में छात्रसंघ चुनाव न कराने के मुद्दे पर दाखिल याचिका पर कोर्ट में गुरुवार 30 अक्टूबर को सुनवाई हुई।
कोर्ट ने इस मामले पर शासन को दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। अदालत ने अगली सुनवाई की तारीख एक दिसंबर तय की है। बता दें ये सुनवाई चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की खंडपीठ में हुई है।
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छात्रसंघ शुल्क हर साल, फिर चुनाव क्यों नहीं
प्रदेश के सरकारी कॉलेजों में छात्रों से हर साल 250 रुपए का छात्रसंघ शुल्क वसूला जाता है। शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट पर आधारित CEIC Data के अनुसार, वर्ष 2021 में मध्यप्रदेश में केवल सरकारी कॉलेजों में छात्रों की संख्या 11,81,770 थी।
इस तरह सिर्फ सरकारी कॉलेजों से ही हर साल 29 करोड़ 54 लाख 42 हजार 500 रुपए छात्रसंघ शुल्क के नाम पर वसूले जाते हैं। 2017 के बाद से आज तक कोई छात्रसंघ चुनाव नहीं कराया गया।
याचिकाकर्ता अदनान अंसारी ने इस तथ्य को अदालत के समक्ष प्रमुखता से रखा और कहा कि यह छात्रों के लोकतांत्रिक अधिकारों के साथ वित्तीय अन्याय भी है, क्योंकि शुल्क लिया जा रहा है पर चुनाव की प्रक्रिया ठप है।
लिंगदोह समिति और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता प्रकाश उपाध्याय ने कोर्ट को बताया। लिंगदोह समिति की सिफारिशों और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव नियमित रूप से कराना अनिवार्य है। इसके बावजूद राज्य सरकार ने 2017 से अब तक कोई चुनाव नहीं कराया। इससे छात्रों का प्रतिनिधित्व समाप्त हो गया है। उन्होंने कहा कि चुनाव स्थगित रखना संविधान में प्रदत्त लोकतांत्रिक भागीदारी के अधिकार का सीधा उल्लंघन है।
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हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा स्पष्टीकरण
सुनवाई के दौरान मध्यप्रदेश सरकार की ओर से जवाब दाखिल करने के लिए अतिरिक्त समय मांगा गया। इसे अदालत ने स्वीकार कर लिया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि शासन दो सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब पेश करे और बताए कि क्यों इतने वर्षों से छात्रसंघ चुनाव नहीं कराए गए। इस मामले में अगली सुनवाई 1 दिसंबर 2025 को होगी।
2017 के बाद से रुके हैं चुनाव
इस मामले में याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि उपलब्ध रिपोर्टों के अनुसार, मध्यप्रदेश में आखिरी बार छात्रसंघ चुनाव वर्ष 2017 में कराए गए थे। उससे पहले 2003 के बाद लगभग 14 वर्षों तक चुनाव स्थगित रहे थे।
2017 के बाद से अब तक राज्य के किसी भी विश्वविद्यालय या कॉलेज में चुनाव नहीं हुए हैं। प्रदेश के कॉलेजों में छात्रों की कुल संख्या 2021 के आंकड़ों के अनुसार लगभग 19.9 लाख है।
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छात्रों ने बताया वित्तीय और लोकतांत्रिक शोषण
छात्र संगठनों ने इस स्थिति को वित्तीय और लोकतांत्रिक दोनों स्तरों पर शोषण बताया है। उनका कहना है कि सरकार छात्रों से करोड़ों रुपए वसूलती है, लेकिन उन्हें अपने प्रतिनिधि चुनने का अवसर नहीं देती। कई संगठनों ने इस शुल्क को वापस लौटाने या चुनाव तुरंत कराने की मांग उठाई है।
कहां जा रही छात्र संघ के नाम पर वसूली गई रकम
हाईकोर्ट का यह निर्देश अब राज्य शासन के लिए जवाबदेही की स्थिति पैदा करता है। एक ओर जहां याचिकाकर्ताओं के आरोप के अनुसार करोड़ों रुपए छात्रसंघ शुल्क के नाम पर लिए जा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर चुनाव पूरी तरह बंद हैं। अब देखना होगा कि 1 दिसंबर की सुनवाई में सरकार इस गंभीर असमानता और वित्तीय प्रश्न पर क्या जवाब देती है।
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