घटिया दवा के सैंपल फेल फिर भी 150 निर्माता और सप्लायरों को अभयदान

अमानक कफ सिरप ने न केवल मध्य प्रदेश बल्कि देश के कई राज्यों में मासूमों की जान को संकट में डाल दिया है। कई बच्चे मौत का शिकार हो चुके हैं तो कई गंभीर हालत में उपचाररत हैं।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. मध्य प्रदेश में जानलेवा कफ सिरप ने हड़कंप मचा दिया है। मेडिकल स्टोर्स पर खुलेआम जहरीले कफ सिरप और अमानक दवाओं की बिक्री ने सरकार की निगरानी व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है। सरकार की खाद्य एवं औषधि परीक्षण प्रयोगशाला की कार्यप्रणाली भी सवालों के घेरे में है। कफ सिरप से मासूमों की मौत के बाद सरकार और प्रशासन अमानक दवाओं पर सख्ती दिखा रहा है।

तहसील से लेकर राजधानी तक प्रशासनिक अमला मेडिकल स्टोर और नर्सिंग होम पर पड़ताल करने में जुट गया है। अब तक नदारद रहने वाले खाद्य एवं औषधि प्रशासन अमले ने दवाइयों की सैंपलिंग शुरू कर दी है। शासन- प्रशासन की यह सक्रियता चमत्कारिक नहीं है। हर बार प्रशासनिक तंत्र की विफलता के बाद सामने आने वाली विभीषिका पर जनाक्रोश दबाने अकसर ऐसी फौरी कार्रवाई होती रही हैं। सवाल ये है कि कफ सिरप जैसी जहरीली और अमानक दवाओं की जांच की जिम्मेदारी की अनदेखी अब तक क्यों होती रही। 

सरकार से सिस्टम तक घोर लापरवाही

दवाओं की निगरानी करने वाली प्रदेश की शीर्ष संस्था की पड़ताल में लापरवाही की परतें खुलती नजर आई हैं। सबसे पहले तो लापरवाही सरकार के स्तर पर हुई है। खाद्य सामग्री और दवाओं की गुणवत्ता पर कसावट रखने वाले फूड एंड ड्रग कंट्रोलर दिनेश सिंह मौर्य को राज्य मंत्रालय में दोहरी भूमिका में रखा गया। राज्य प्रयोगशाला को पर्याप्त संसाधन और वैज्ञानिक अधिकारी नहीं दिए गए। इसका खामियाजा जनता भुगतना पड़ रहा है। 

चार साल में 229 दवा सैंपल अमानक

साल 2022 से 2025 के बीच प्रदेश में 229 दवाओं के सैंपल अमानक पाए जा चुके हैं। इनमें से जनवरी 2025 से जून माह के बीच 27 कंपनियों की 76 दवाएं परीक्षण रिपोर्ट में एनएसक्यू श्रेणी यानी नॉट ऑफ स्टैंडर्ड क्वालिटी घोषित की गई हैं। सबसे ज्यादा 19 अमानक दवाएं इंदौर की समकेन कंपनी की पाई गई हैं। प्रदेश में जनवरी 2021 में 44, 2022 में 46, 2023 में 25 और 2024 में 92 दवाएं नॉट ऑफ स्टैंडर्ड क्वालिटी पाई जा चुकी हैं। 

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लाइसेंस निरस्त कर कार्रवाई की इतिश्री

प्रदेश में चार साल में 229 दवाओं को अमानक पाए जाने के बाद जो कार्रवाई की गई वह भी अप्रत्याशित है। ड्रग कंट्रोलर ने इनमें से केवल 60 दवा कंपनियों के लाइसेंस निरस्त किए और 19 को शो-कॉज नोटिस कर कार्रवाई की इतिश्री कर ली। यानी सैंपल टेस्ट में जो दवाएं फेल हुई उन कंपनी पर कार्रवाई से पल्ला झाड़ लिया गया।

अमानक दवाएं बनाने वाली 150 कंपनियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। मध्य प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में भी अमानक दवाओं का मामला उठ चुका है। तब भी प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र शुक्ल कंपनियों को बचाने पर ठोस जवाब नहीं दे पाए थे।  

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सैंपलिंग, टेस्टिंग और कार्रवाई बनी मजाक

अमानक दवा निर्माताओं पर कौन मेहरबान है जिसकी वजह से लोगों के जीवन से खिलवाड़ कर वे बच निकलते हैं। ड्रग कंट्रोलर के निर्देशन में होने वाली औषधियों की सैंपलिंग- टेस्टिंग और कार्रवाई मजाक बनकर रह गई है।

खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग के अमले द्वारा लिए गए 6 हजार से ज्यादा सैंपल अब तक जांच की प्रक्रिया में ही उलझे हुए हैं। यदि राज्य प्रयोगशाला में पूरे संसाधनों का उपयोग कर इनका परीक्षण कराएं तब भी सबकी रिपोर्ट आने में सालभर का समय लग जाएगा। यानी सैंपल रिपोर्ट आने तक अमानक दवा बाजार में बिकती रहेंगी।  

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केंद्र की प्रयोगशालाओं में सिरप की जांच

अमानक कफ सिरप ने न केवल मध्य प्रदेश बल्कि देश के कई राज्यों में मासूमों की जान को संकट में डाल दिया है। कई बच्चे मौत का शिकार हो चुके हैं तो कई गंभीर हालत में उपचाररत हैं। औषधियों के परीक्षण में सरकारी सिस्टम की लापरवाही इससे भी साफ हो जाती है कि राज्य प्रयोगशाला में अब तक कफ सिरप की जांच का एक भी सैंपल नहीं पहुंचा है।

वहीं  केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन के अनुसार अब तक केंद्रीय प्रयोगशाला चेन्नई, मुंबई, हैदराबाद, चंडीगढ़ और गाजियाबाद में 85 सैंपल आए हैं। वहीं गुजरात, जम्मू, उत्तराखंड की राज्य प्रयोगशालाओं में जांच के लिए 53 सैंपल आए हैं। मध्य प्रदेश के इंदौर, पीथमपुर, देवास, उज्जैन, भोपाल, रतलाम और ग्वालियर में दवा कंपनियां चल रही हैं।  

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व्यवस्था की सुस्ती के लिए ये हैं जिम्मेदार :

  • राजेन्द्र शुक्ल उपमुख्यमंत्री (स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा)
    मंत्री होने के नाते विभाग के मुखिया हैं लेकिन बच्चों की मौत के बाद भी अमानक दवाओं के मामले पर पर्दा डालते रहे और कार्रवाई सीएम को करनी पड़ी
  • संदीप यादव, प्रमुख सचिव  (लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग)
    जनता के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी है। लोगों को अच्छी दवाएं उपलब्ध कराने के साथ ही अपने अधिनस्थ औषधि प्रशासन अमले के नियंत्रण से चूक गए।
  • दिनेश कुमार मौर्य, (ड्रग कंट्रोलर)
    प्रदेश में बिकने वाली दवाइयां पर नियंत्रण नहीं रख सके, जबकि उनके परीक्षण और अमानक पाए जाने पर कार्रवाई का दायित्व था।
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