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Photograph: (The Sootr)
सुधीर नायक
साधो, तुम्हें तो पता है कि मार्केट इस समय चेलों की तरफ झुका हुआ है। गुरु को चेलों के हिसाब से चलना पड़ता है। दूर क्यों जाते हो। साधो तुम अपना ही सोच लो। मैं तुम्हारे मन की बात न कहूं तो क्या तुम आओगे?
तुम ही आना बंद कर दोगे। तुम जो फल फूल प्रसादी लाते हो वह भी बंद हो जायेगी। मैं संकट में पड़ जाऊंगा। साधो तुम जो फोन पर पहले ही बता देते हो मैं वैसा ही बोलता हूं। तुम्हें मजा आता है। तुम्हारे मज़े से मेरा मजा है।
पहले खूब चलायी तानाशाही
साधो, पहले के गुरूओं ने खूब तानाशाही चलायी। चेलों पर खूब जुल्म ढ़ाये। ये भजन, वो साधना। इतने बजे उठो। ये खाओ, वो न खाओ। इतना खाओ, इतने भूखे रहो। चेलों का जीना हराम कर रखा था। उसी का फल मिल रहा है।
साधो, भगवान सबकी सुनता है। अब चेलों की बारी है। चेले गुरु को नचा रहे हैं। चेले नाच गाना चाहते हैं। गुरु कथा सुनाते हुए न नाचे तो चेले उसे रिजेक्ट कर देते हैं। दूसरा गुरु पकड़ लाते हैं। साधो, मैं सोच रहा हूं कि मैं भी गाना बजाना सीख लूं। गवैये गुरुओं की बड़ी डिमांड है, साधो।
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नहीं हुआ गुरुसंख्या नियंत्रण
गुरु का गला सुरीला न हो तो चेले गला पकड़ लेते हैं। एक तो, गुरु बहुत हो गये हैं, साधो। जनसंख्या नियंत्रण तो हुआ पर गुरुसंख्या नियंत्रण नहीं हो पाया। गुरु चेलों से डर रहे हैं, साधो। ऐसा न हो कि चेले खिसक जायें। गुरुओं की कमी नहीं है।
कोई दूसरा पकड़ लेंगे। तू नहीं और सही और नहीं और सही। चेले बहुत नाज़ुक मिज़ाज हैं। बहुत संभाल संभालकर रखने पड़ते हैं। कांम्प्टीशन बहुत है। दूसरे गुरु नज़र गड़ाए बैठे हैं। कोई चेला ज़रा सा ढ़ीला पड़ा कि वे झपट लेते हैं। इस चक्कर में मेरे कई चेले चले गए। वैसे भी चेले तो अब कम ही हैं, साधो, चपाटे ज्यादा हैं।
रेडीमेड गुरूओं का है जमाना
तुमने सुना ही होगा चेले-चपाटे। चपाटे अब ज्यादा बनते हैं। रेडीमेड गुरूओं का जमाना गया, अब कस्टमाइज़्ड गुरुओं का फैशन हैं। चेले अपनी पसंद के हिसाब से कस्टमाइज्ड गुरु चाहते हैं। जो गुरु कस्टमाइज्ड नहीं हुए वे बाज़ार से बाहर हो गए।
साधो, मेरे देखते देखते कितने गुरूओं के शटर गिर गये। साधो, चेले चपाटे कई तरह के हैं। कुछ तो खाये पिये चेले हैं। उन्हें लगता है कि जीवन में और तो सबकुछ है। यह कहने को क्यों रहे कि गुरु नहीं है। वे इस हिसाब से एकाध गुरु भी पटक लेते हैं। गुरु उनकी सम्पन्नता पूरी करता है।
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चेलों के मोहताज गुरु
कुछ सिस्टम के सताये हुए लोग हैं वे किसके पास जायें? चारों तरफ़ से धकियाये हुए लोग भी गुरु में आखिरी उम्मीद देखते हैं। यह बात अलग है कि उन्हें यहां भी कुछ नहीं मिलता। गुरु खुद चेलों का मोहताज है, वह चेलों को क्या देगा?
कुछ कामचोर भी हैं, साधो। उन्हें लगता है कि उन्हें हाथ पैर नहीं चलाने पड़ेंगे और गुरु चिराग रगड़ देगा। साधो, यह अच्छा रहा कि अब ज्ञान कोई नहीं मांगता। कोई ज्ञान मांग बैठता तो गुरु कहां से देता। उसके पास ही नहीं है। गुरु बेचारा खुद वॉट्सऐप से ज्ञान लेकर काम चलाता है।
चेलों को नहीं ज्ञान की जरूरत
वैसे भी साधो, ज्ञान लोगों के पास बहुत है। उनका ज्ञान उनसे ही नहीं संभल रहा। वे खुद ज्ञान बांटते घूम रहे हैं। वे हमसे ज्ञान लेकर क्या करेंगे? ज्ञान की कोई दिक्कत नहीं है, साधो। गुरुओं के पास ज्ञान है भी नहीं। और चेलों को जरूरत भी नहीं है।
बिना ज्ञान वाले गुरु अच्छे होते हैं, साधो। चेलों में जल्दी घुल मिल जाते हैं। गुरु चेले में अच्छा बांड बनता है, साधो। ज्ञान बाधा देता था। अब मिक्स अप होने में अड़चन नहीं आती।
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सुनो भाई साधो... इस व्यंग्य के लेखक मध्यप्रदेश के कर्मचारी नेता सुधीर नायक हैं |
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