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Photograph: (The Sootr)
सुधीर नायक
हमारे हर धार्मिक कृत्य के अंत में भंडारा जरूर होता है। कोई भी पूजा-पाठ हो भंडारे के बिना पूर्ण नहीं माना जाता। भंडारे के पीछे जो भी आध्यात्मिक कारण हों वह तो विज्ञजन ही बता सकते हैं।
मेरे जैसे अज्ञानी को तो यही समझ में आता है कि कम से कम इस बहाने लोग इकट्ठे हो जाते हैं। भंडारा ही भगवान से जोड़े हुए है। भक्तों की भक्ति आरती के बाद ही जगती है। वे कहकर रखते हैं कि आरती हो जाये तो फोन कर देना।
अब नहीं बचेगा धर्म!
एक बार आरती में गिने चुने लोग थे। मेरे एक मित्र सनातन धर्म के भविष्य को लेकर चिंतित हो गए। बोले- भैया मुझे लगता है अपना धर्म अब नहीं बचेगा। देख रहे हो खंजड़ी मंजीरा तक मशीन बजा रही है।
मैंने कहा- जल्दबाजी अच्छी नहीं होती। इतनी जल्दी निराश मत होओ। आरती के बाद और देख लो। आरती के बाद भंडारे में जब जबरदस्त भीड़ उमड़ी, प्लेटें कम पड़ गयीं तब जाकर वे निश्चिंत हुए। उनकी निराशा छंट गयी। सनातन की शक्ति में उनका विश्वास दृढ़ हो गया।
ऐसे उपजती है सच्ची श्रद्धा
जब तक सामने कढ़ाही से पूड़ियां न निकल रही हों, हंडों में खीर न खदबदा रही हो तब तक सच्ची श्रद्धा नहीं उपजती। जो लोग ऋषि मुनियों की शक्ति में संदेह करते हैं उनके लिए इससे अच्छा जबाव नहीं हो सकता।
ऋषि मुनि त्रिकालदर्शी न होते तो वे हजारों साल पहले भंडारे का नियम बनाकर न जाते। उन्होंने उसी समय देख लिया था कि आगे चलकर बिना भंडारे के गुजारा नहीं होगा। बिना भंडारे के भक्तगण नहीं आयेंगे।
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वे उसी समय लिखकर रख गये। उनका लिखा हुआ आज काम आ रहा है। अकसर आम सभाओं में ओजस्वी वक्ता यह शेर सुनाने से नहीं चूकते-
यूनान-मिस्र-रोमा सब मिट गए जहां से
बात कुछ ऐसी है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
लोग मुझसे पूछते हैं- आखिर वह बात कौन सी है जिससे हमारी हस्ती नहीं मिटती? मैं कान में कह देता हूं कि बात वात कुछ नहीं है। बात भंडारे की है। सभा के बाद भंडारा नहीं होता तो यह शेर भी नहीं सुनते लोग। यूनान-मिस्र-रोमा चूक गए। उन्होंने भंडारे नहीं करवाये। इसलिए मिट गए। हमने गफ़लत नहीं की। हमने भंडारे को पकड़कर रखा। हम भंडारे करवाते रहे। इसलिए हमारी संस्कृति आज तक बरकरार है। जब तक भंडारा है तभी तक जयकारा है।
सुनो भाई साधो... इस व्यंग्य के लेखक मध्यप्रदेश के कर्मचारी नेता सुधीर नायक हैं |
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