सुप्रीम कोर्ट ने 27 फीसदी आरक्षण केस पर लिखित आदेश में कहा- 2019 से स्टे, मामले में सुनवाई और निराकरण की तत्काल आवश्यकता

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश में 27% ओबीसी आरक्षण मामले की अंतिम सुनवाई के लिए तारीख तय की है। वहीं अब इस मामले में, कोर्ट ने सितंबर में सुनवाई करने को कहा है...

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Sanjay Gupta
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मध्यप्रदेश में चल रहे 27 फीसदी ओबीसी केस के मामले में अब अंतिम फैसला आएगा। सुप्रीम कोर्ट ने 12 अगस्त को सुनवाई में इसकी मंशा जाहिर की थी लेकिन अब औपचारिक आदेश ही इस तरह का आया है। इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट सीधे तौर पर लिख दिया है कि हाईकोर्ट में मार्च 2019 से पास अंतरिम आदेश चल रहा है और अब इस केस में सुनवाई और निराकरण की तत्काल आवश्यकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में यह लिखा-

याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादियों के विद्वान अधिवक्ताओं को सुना गया। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित रिट याचिकाएं इस न्यायालय में ट्रांसफर कर दी गई हैं और ट्रांसफर मामलों के रूप में सूचीबद्ध की गई हैं। साथ ही इस तथ्य को भी ध्यान में रखते हुए कि मार्च, 2019 में उच्च न्यायालय द्वारा पारित अंतरिम आदेश आज तक जारी हैं, और साथ ही मामलों की सुनवाई और निपटान की तत्काल आवश्यकता है। हमारा विचार है कि अंतरिम आदेशों को रद्द करने के बजाय, हम निर्देश देते हैं कि इस बैच के सभी मामलों को 22 तारीख से शुरू होने वाले सप्ताह में अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए।

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अंतरिम आदेश को रद्द नहीं, सीधे अंतिम आदेश करेंगे

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कर दिया है कि वह किसी तरह की अंतरिम राहत नहीं देने जा रहा है और ना ही मप्र हाईकोर्ट के 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण पर लगे स्टे को हटाने जा रहा है। इस पर वह सीधा मेरिट के आधार पर ही अंतिम आदेश देगा। इस मामले की फाइनल सुनवाई की तारीख अभी 23 सितंबर को बताई गई है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने लिखा है कि इसे 22 सितंबर से शुरू हो रहे सप्ताह में लिस्टेड किया जाएगा। यानी यह 23 सितंबर, 24 सितंबर कुछ भी हो सकता है और इसे पहले नंबर पर ही सुना जाएगा।

27 फीसदी ओबीसी आरक्षण मामले पर एक नजर...

  • सुप्रीम कोर्ट ने 12 अगस्त को मध्य प्रदेश में 27% ओबीसी आरक्षण मामले में सुनवाई की मंशा जाहिर की और अब औपचारिक आदेश जारी किया है। हाईकोर्ट का अंतरिम आदेश मार्च 2019 से जारी था।

  • सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की फाइनल सुनवाई 22 सितंबर से शुरू होने वाले सप्ताह में करने का आदेश दिया, जिसमें 23 या 24 सितंबर को इसे पहले नंबर पर सुना जाएगा।

  • सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह अंतरिम राहत नहीं देगा और सीधे मेरिट के आधार पर अंतिम आदेश जारी करेगा, न कि हाईकोर्ट के 27% ओबीसी आरक्षण पर स्टे को हटाएगा।

  • सुप्रीम कोर्ट ने मप्र सरकार से सवाल किया कि 6 साल से मामला लंबित क्यों रहा और क्या राज्य सरकार ने इस मुद्दे को नजरअंदाज किया।

  • ओबीसी वेलफेयर कमेटी की ओर से अभिषेक मनु संघवी ने 27% आरक्षण की मांग की, जबकि अनारक्षित वर्ग की ओर से अमन लेखी ने इसे अनुचित बताते हुए अन्य राज्यों का उदाहरण दिया।

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इस मामले में 12 अगस्त की सुनवाई के दौरान मप्र सरकार हो या ओबीसी कमेटी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु संघवी दोनों ने फैसले के अंतिम निराकरण की जगह अंतरिम राहत देने की ही बात रखी कि अभी भर्ती 27 फीसदी आरक्षण से करने दी जाए। दोनों ही पक्ष ने इस मामले में पूर्ण राहत और अंतिम आदेश की बात नहीं की। यह खुद सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया कि लंबा वक्त खिंच गया है और 6 साल से अंतरिम आदेश पर मामला चल रहा है और अब तत्काल इस पर फैसले की आवश्यकता है।

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सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में यह हुई थीं अहम बातें-

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि 6 साल से क्या राज्य सरकार सोई हुई थी, आप सोए हुए थे। यह समस्या खुद राज्य सरकार द्वारा पैदा की गई है। पूरी जिम्मेदारी आप ही कंधों पर है।

सुप्रीम कोर्ट ने जब मप्र सरकार की अंतरिम राहत देकर भर्ती पूरी करने के आवेदन पर पूछा कि यदि आदेश विपरीत हुआ तो क्या करोगे। इस पर मप्र शासन ने जवाब दिया कि अंडरटेकिंग लेंगे और ऐसा हुआ तो उन्हें बाहर कर देंगे। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताई और साफ कहा कि ऐसे कैजुएल कैसे लिया जा सकता है इन 13 फीसदी पदों के साथ जिंदगी जुड़ी है।

ओबीसी वेलफेयर कमेटी की ओर से कांग्रेस ने इस बार वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु संघवी को उतारा था और वह ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण के लिए मांग करते हुए नजर आए। साथ ही कहा कि छत्तीसगढ़ की तरह अंतिम राहत दी जाए। उन्होंने यह भी कहा कि इंदिरा साहनी केस में आरक्षण की सीमा भले ही तय की है लेकिन स्पेशल केस में इसे बढ़ाया जा सकता है इस पर कोई रोक नहीं है, इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

वहीं अनारक्षित वर्ग की ओर से भारत के पूर्व अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल अमन लेखी उतरे हैं। अनारक्षित वर्ग से कहा गया कि राजस्थान, महाराष्ट्र कहीं भी यह अतिरिक्त आरक्षण नहीं दिया गया है। होल्ड उम्मीदवारों में अनारक्षित और ओबीसी दोनों ही हैं।

सुनवाई के दौरान मप्र सरकार की ओर से यह भी लापरवाही दिखी कि अंतिम मिनट में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सुनवाई के लिए पहुंचे। वहीं तर्क दिया कि प्रशासनिक मैनपावर की कमी से काम प्रभावित हो रहा है। भर्ती करने दी जाए।

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