मुझे हाई कोर्ट का जज बनाओ : याचिका पर सुप्रीम कोर्ट नाराज, बताया न्याय प्रणाली का मजाक

हाई कोर्ट जज नियुक्ति की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई। चीफ जस्टिस बीआर गवई ने इसे न्याय प्रणाली का मजाक बताया। उन्होंने याचिकाकर्ता वकील का लाइसेंस रद्द करने की बात कही।

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Sanjay Dhiman
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Photograph: (the sootr)

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हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसी याचिका दायर की गई, जिसे सुनकर कुछ लोग हंसने लगे और कुछ ने इसे कोर्ट के साथ मजाक माना। एक वकील ने सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका (Writ Petition) दायर कर तेलंगाना हाई कोर्ट के जज बनने की मांग की।

यह मांग सुनकर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी प्रतिक्रिया दी और इसे न्याय प्रणाली का मज़ाक बताया। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस CJI बीआर गवई ने इस याचिका को गंभीरता से लेते हुए इसे खारिज कर दिया। उन्होंने याचिकाकर्ता वकील को चेतावनी दी कि ऐसी याचिकाओं के खिलाफ सख्त कदम उठाए जा सकते हैं। 

ऐसी मांग न्याय प्रणाली का मजाक: चीफ जस्टिस

एक वकील, जिनका नाम जी. सर्वम कुमार था, ने सीधे कोर्ट में याचिका दायर कर तेलंगाना हाई कोर्ट के जज बनने की मांग की। इस पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चन्द्रन ने मामले की सुनवाई की।

मुख्य न्यायाधीश गवई, ने इस मांग को सुनते ही गहरी नाराजगी जताई। उन्होंने कहा, क्या आप चाहते हैं कि हम सुप्रीम कोर्ट के तीन सीनियर जजों को बुलाकर यहां कॉलेजियम की बैठक करवा लें? यह व्यवस्था का मजाक उड़ाने जैसा है!

सीजेआई ने यह भी पूछा कि क्या कभी कोर्ट के इतिहास में किसी ने हाई कोर्ट के जज की नियुक्ति के बारे में याचिका दायर की है? उन्होंने याचिकाकर्ता के वकील को भी ऐसी याचिका को लेकर फटकार लगाई।

कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि जजों की नियुक्ति एक स्थापित और संवैधानिक प्रक्रिया, यानी कॉलेजियम प्रणाली के तहत ही होती है, न कि किसी व्यक्ति विशेष द्वारा याचिका दायर कर के। 

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वकील की याचिका और कोर्ट की नाराजगी को ऐसे समझें

  1. एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर तेलंगाना हाई कोर्ट के जज बनने की मांग की, जिसे कोर्ट ने 'न्याय प्रणाली का मज़ाक' बताया।
  2. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बी.आर. गवई ने याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार लगाई और कहा कि इस तरह की याचिका से न्याय व्यवस्था को नुकसान पहुंचता है।
  3. कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील को चेतावनी दी कि ऐसी याचिकाएं दायर करने वाले वकील का लाइसेंस रद्द कर दिया जाना चाहिए।
  4. वकील ने अपनी गलती स्वीकार की और याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मंजूर कर लिया।
  5. इस पूरे घटनाक्रम ने न्यायिक नैतिकता और पेशेवर आचरण के महत्व को पुनः स्पष्ट किया।

लाइसेंस रद्द करने की चेतावनी 

सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार के बाद, वकील ने तुरंत अपनी गलती स्वीकार की और याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी। हालांकि, चीफ जस्टिस गवई का रुख इस मामले में भी नरम नहीं पड़ा। उन्होंने सख्त शब्दों में कहा कि इस तरह की याचिकाएं दायर करने वाले वकील का लाइसेंस रद्द कर देना चाहिए।

यह टिप्पणी किसी भी वकील के लिए एक गंभीर चेतावनी के रूप में है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कहा कि न्याय पालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले किसी भी काम को सहन नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने आखिरकार वकील को याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी, लेकिन जुर्माने का सवाल अब भी खड़ा था। 

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कॉलेजियम क्या करता है?

सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम जिसमें खुद चीफ जस्टिस (CJI) और सुप्रीम कोर्ट के दो सबसे सीनियर जज होते हैं, वही तय करते हैं कि कौन हाईकोर्ट का जज बनेगा। यह कमेटी नाम सुझाती है, और फिर बाकी प्रक्रिया होती है।

इस मामले में वकील ने कोर्ट में याचिका दायर करके कहा, मुझे जज बनाओ! सीधे शब्दों में कहें तो, वकील ने इस पक्की और सम्मानित व्यवस्था को दरकिनार करके मनमानी करने की कोशिश की। कोर्ट ने इसी को व्यवस्था का मज़ाक कहा, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह पद योग्यता से मिलता है, याचिका से नहीं!

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