सुप्रीम कोर्ट ने फिर दिया आदेश- छूट ली है तो आरक्षित से अनारक्षित में शिफ्ट नहीं, पीएससी 2025 में भी यही इश्यू

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि आरक्षित वर्ग का कोई उम्मीदवार भर्ती प्रक्रिया में आयु, योग्यता या प्रयासों में छूट का लाभ लेता है, तो वह बाद में अनारक्षित वर्ग की सीटों पर दावा नहीं कर सकता।

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Sanjay Gupta
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सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश जारी किया है। इसके तहत एक बार फिर उस नियम पर मुहर लगी है जिसमें है कि यदि आरक्षित वर्ग ने किसी भी तरह की छूट ली है तो फिर वह मेरिट के बाद भी अनारक्षित कैटेगरी में शिफ्ट होने का पात्र नहीं है। इसी मामले को लेकर मध्य प्रदेश राज्य सेवा परीक्षा 2025 की मेंस रुकी हुई है। दो याचिकाओं द्वारा परीक्षा नियम 2015 को चुनौती दी हुई है। इसमें भी यही नियम है कि यदि आरक्षित वर्ग ने कोई छूट ली है तो वह अनारक्षित में शिफ्ट नहीं होगा।

त्रिपुरा हाईकोर्ट के इस आदेश से उठा विवाद

इस मामले में 2015 में एसएससी ने बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, एनआईए और एसएसएफ तथा असम राइफल में राइफलमैन भर्ती की अधिसूचना निकाली। भर्ती प्रक्रिया में भाग लेने के लिए 18 से 23 वर्ष की आयु सीमा थी, लेकिन आरक्षित वर्ग को छूट दी गई थी। ओबीसी वर्ग को आयु में तीन वर्ष की छूट दी गई थी। इस मामले में प्रतिवादियों ने जो ओबीसी थे तीन वर्ष की आयु सीमा में छूट ली थी।

परीक्षा के बाद इन उम्मीदवारों को असफल घोषित किया गया, क्योंकि उनके नंबर ओबीसी वर्ग के अंतिम चयनित उम्मीदवार से कम थे, लेकिन उनके नंबर सामान्य वर्ग के अंतिम चयनित उम्मीदवार से ज्यादा थे। उन्होंने अनारक्षित वर्ग की रिक्ति में स्थानांतरित कर नियुक्ति देने का दावा किया। इसके लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की, लेकिन केंद्र सरकार ने 1998 के ऑफिस मेमोरेंडम का हवाला देते हुए मांग का विरोध किया। त्रिपुरा हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के जीतेन्द्र कुमार सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसले को आधार बनाते हुए याचिका स्वीकार कर ली और अनारक्षित वर्ग की रिक्ति में स्थानांतरित कर नियुक्ति देने का आदेश दिया। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट आई थी।

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सुप्रीम कोर्ट ने यह दिया फैसला

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जोमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि मौजूदा मामले में ओबीसी याचिकाकर्ताओं को बाद में सामान्य वर्ग में नियुक्ति के लिए स्थानांतरित नहीं किया जा सकता, क्योंकि उन्होंने ओबीसी आरक्षित वर्ग को नियमों में मिली आयु सीमा की छूट का लाभ लिया था। ऐसे में हाईकोर्ट द्वारा उन्हें सामान्य वर्ग में स्थानांतरित कर नियुक्ति देने का आदेश गलत है।

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केंद्र सरकार ने भी इसका समर्थन कर यह कहा था

केंद्र ने भी 1998 आदेश का हवाला देकर कहा था कि यह शिफ्ट नहीं हो सकते हैं। उस ऑफिस मेमोरेंडम में कहा गया था कि अगर आरक्षित वर्ग का उम्मीदवार लिखित परीक्षा में शामिल होने के लिए आयु सीमा में छूट, योग्यता में छूट या परीक्षा में शामिल होने के लिए अधिक मौके लेने का लाभ लेता है तो उसे अनारक्षित (सामान्य वर्ग) की रिक्ति में नियुक्ति के लिए विचार नहीं किया जा सकता। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया है।

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भर्ती सूचना में कोई प्रावधान हो तभी यह लाभ

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि यदि किसी भर्ती के दौरान जहां नियमों या रोजगार अधिसूचना में कोई इंबार्गो न हो, वहां अंतिम चयनित अनारक्षित उम्मीदवार से अधिक अंक पाने वाले आरक्षित वर्ग के प्रतिभागी को स्थानांतरित होने और अनारक्षित सीटों पर भर्ती होने का अधिकार होना चाहिए। लेकिन जहां भर्ती नियमों के तहत कोई इंबार्गो लगाया जाता है, वहां आरक्षित उम्मीदवारों को सामान्य श्रेणी की सीटों पर जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

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साल 2017 में भी सुप्रीम कोर्ट ने दिया था फैसला

अप्रैल 2017 में भी एक मामले में जस्टिस आर भानुमति और जस्टिस एएम खानविलकर की पीठ ने कहा था कि एक बार आरक्षित वर्ग में आवेदन कर उसमें छूट लेने के बाद कोई भी व्यक्ति आरक्षित वर्ग में ही नौकरी का हकदार होगा। उसे सामान्य वर्ग में समायोजित नहीं किया जा सकता। याचिकाकर्ता का कहना था कि उसे सामान्य वर्ग में नौकरी दी जाए, क्योंकि उसने लिखित परीक्षा में सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों से ज्यादा अंक हासिल किए हैं।

यह मामला दीपा पीवी नामक महिला के वाणिज्य मंत्रालय के अधीन भारतीय निर्यात निरीक्षण परिषद में लैब सहायक ग्रेड-2 के लिए ओबीसी श्रेणी में नियुक्ति का था। इसके लिए हुई परीक्षा में उसने 82 अंक प्राप्त किए। ओबीसी श्रेणी में उसे मिलाकर कुल 11 लोगों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया, लेकिन इसी वर्ग में 93 अंक लाने वाली सेरेना जोसेफ को चुन लिया गया। दूसरी ओर सामान्य वर्ग का न्यूनतम कटऑफ अंक 70 था, लेकिन कोई भी उम्मीदवार ये अंक नहीं ला पाया। दीपा ने खुद को सामान्य श्रेणी में समायोजित करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे निरस्त कर दिया। इसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी।

मप्र में भी यही नियम को चुनौती दी है राज्य सेवा परीक्षा 2024 में

मप्र में भी राज्य सेवा परीक्षा 2025 की मेंस केवल इसलिए अटकी हुई है। इस मामले में दो याचिकाएं दायर हुई और कहा गया कि परीक्षा नियम 2015 असंवैधानिक है, क्योंकि यह छूट लेने के चलते मेरिट के आधार पर अनारक्षित में शिफ्ट होने पर रोक लगाता है। जबकि चयन सूची मेरिट पर होना चाहिए। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने मेंस पर स्टे दे दिया और शासन से जवाब मांगा। हालांकि खुद शिक्षक वर्ग टू के मामले में लगी याचिका में हाईकोर्ट की दो लाइन की टिप्पणी है कि आरक्षित वर्ग की छूट लेने पर अनारक्षित में जाने का लाभ नहीं लिया जा सकता है।

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यह है नियम और विवाद

आरक्षित कैटेगरी को मुख्य तौर पर कटऑफ अंक छूट, आयु छूट मिलती है। फीस छूट भी मिलती है। लेकिन फीस छूट को आरक्षित लाभ में नहीं गिना जाता है। लेकिन अन्य छूट ली है तो जैसे प्री का कटऑफ आरक्षित वर्ग का सामान्य तौर पर कम होता है और यदि किसी ने इसका लाभ लेकर मेंस के लिए क्वालीफाई किया तो वह फिर मेरिट में अधिक अंक लाने पर भी अनारक्षित में नहीं जा सकेगा और आरक्षित कैटेगरी में ही रहेगा। आईएएस टॉपर रही टीना डाबी का भी यही केस है। इसलिए वह मेरिट में आने पर भी आरक्षित वर्ग में ही रही क्योंकि प्री के कटऑफ में उन्होंने इस वर्ग की छूट ली थी।

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