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Photograph: (THESOOTR)
यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे से निपटने के बाद बची राख भी अब चिंता का विषय बनी हुई है। गुरुवार 31 जुलाई को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में हुई अहम सुनवाई के दौरान अदालत ने टॉक्सिक राख को कचरा निस्तारण क्षेत्र के आसपास नष्ट करने की योजना पर चिंता जताई है।
कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि विशेषज्ञों की राय के आधार पर ऐसी योजना पेश की जाए, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि भविष्य में इस जहरीली राख से मानव जीवन या पर्यावरण को कोई नुकसान न हो।
जिस जगह पर यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे का निपटारण हुआ उसके आसपास ही रेडियोएक्टिव राख के विनष्टीकरण पर हाईकोर्ट ने चिंता जताते हुए सरकार को मानव आबादी से दूर वैज्ञानिक आधार पर विनष्टीकरण का प्लान तैयार करने के निर्देश दिए हैं।
सरकार के तैयार प्लान पर कोर्ट ने जताई चिंता
सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से कोर्ट को जानकारी दी गई कि यूनियन कार्बाइड के 337 मीट्रिक टन टॉक्सिक वेस्ट के निष्पादन के बाद जो 850 टन राख बची है, उसे भी नष्ट करने का प्लान तैयार कर लिया गया है। लेकिन यह प्लान उसी क्षेत्र में नष्ट करने का है, जहां पर कचरे का निस्तारण हुआ था। इस पर याचिकाकर्ताओं ने स्पष्ट तौर पर आपत्ति जताई और कहा कि यह स्थान रिहायशी इलाके के करीब है और वहां कोई संभावित खतरा हो सकता है, तो ऐसी योजना को मंजूरी नहीं दी जा सकती। इस तर्क को कोर्ट ने भी सही माना है।
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एक्सपर्ट्स की वैज्ञानिक राय लेने की मांग
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता ऋत्विक दीक्षित और अनुराग अग्रवाल ने कोर्ट को बताया कि यह राख मरकरी जैसे खतरनाक तत्वों से युक्त है, जिन्हें साधारण तकनीकों से निष्पादित करना संभव नहीं। उन्होंने जोर देकर कहा कि जब तक वैज्ञानिकों और पर्यावरण विशेषज्ञों की स्पष्ट राय नहीं ली जाती, तब तक इसे किसी आबादी क्षेत्र में डंप करना जोखिम भरा होगा।
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बेंगलुरु और न्यूयॉर्क का दिया उदाहरण
इसी मामले में क्लब की गई एक अन्य याचिका के याचिकाकर्ता पक्ष ने कोर्ट को जानकारी दी कि पूर्व में बेंगलुरु के एक मामले में मरकरी जैसे विषैले तत्वों को सुरक्षित तरीके नष्ट करने अमेरिका के न्यूयॉर्क भेजा गया था। इसलिए इस बार भी अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञता का सहारा लिया जा सकता है। हालांकि, फिलहाल जहरीला कचरा नष्ट किया जा चुका है और केवल राख बची है, जिसमें आसानी से नष्ट न होने वाला मरकरी मौजूद है। हालांकि कोर्ट ने इस मुद्दे पर अभी कोई भी राय नहीं दी है, सरकार की ओर से पेश किए जाने वाले प्लान के बाद इस पर विचार किया जा सकता है।
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12 अगस्त तक सरकार को देना होगा प्लान
कोर्ट ने सरकार को स्पष्ट निर्देश दिया है कि वह वैज्ञानिक और पर्यावरण विशेषज्ञों की सलाह के बाद एक ठोस रूपरेखा तैयार करे, जिसमें यह तय किया जाए कि वैज्ञानिक तरीके से यह टॉक्सिक राख आबादी क्षेत्र से दूर किस प्रकार नष्ट की जा सकती है। अब इस जनहित याचिका पर अगली सुनवाई 12 अगस्त को होगी, जिसमें सरकार को अपनी विस्तृत कार्ययोजना कोर्ट के सामने पेश करनी होगी।
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कचरा बना राख, लेकिन जहर अब भी जिंदा
यूनियन कार्बाइड से निकली जहरीली गैस ने 1984 में लाखों जिंदगियां तबाह की थीं। अब जब कचरा तो नष्ट हो चुका है, लेकिन उससे निकली राख एक बार फिर खतरे की घंटी बजा रही है। अदालत की सख्ती और याचिकाकर्ताओं की सतर्कता ने इस मामले को फिर केंद्र में ला दिया है। अब निगाहें सरकार पर हैं कि वह विशेषज्ञों के साथ मिलकर कितनी गंभीरता से इस संकट का स्थायी समाधान पेश करती है।
यूनियन कार्बाइड भोपाल | पीथमपुर। हाईकोर्ट आदेश
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