तुलसी ग्रीन्स की टेंडर की शर्तें बदलने से हाउसिंग बोर्ड को 20 करोड़ का घाटा

मप्र हाउसिंग बोर्ड ने नया कारनामा कर डाला है। अफसरों ने बोर्ड के तुलसी ग्रीन्स प्रोजेक्ट के ठेकेदार को फायदा पहुंचाने के लिए केंद्रीय वित्त मंत्रालय के निर्देशों की भी धज्जियां उड़ा दीं। इस कारनामे से बोर्ड को करीब 20 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ेगा।

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Sanjay Sharma
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Photograph: (the sootr)

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BHOPAL. हाउसिंग प्रोजेक्ट्स को लेकर सुर्खियों में रहने वाले मप्र हाउसिंग बोर्ड ने नया कारनामा कर डाला है। अफसरों ने बोर्ड के तुलसी ग्रीन्स प्रोजेक्ट के ठेकेदार को फायदा पहुंचाने के लिए केंद्रीय वित्त मंत्रालय के निर्देशों की भी धज्जियां उड़ा दीं। इस कारनामे से बोर्ड को करीब 20 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ेगा। यही नहीं प्रोजेक्ट में मकान खरीदने वालों को भी ज्यादा कीमत चुकानी होगी। यानी अधिकारियों की मनमानी का खामियाजा अब हाउसिंग बोर्ड और आमजन को उठाना पड़ेगा। 

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शर्त बदलकर जीएसटी को किया अलग  

मप्र हाउसिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेव्लपमेंट बोर्ड ने साल 2023 में तुलसी ग्रीन्स हाउसिंग प्रोजेक्ट का टेंडर जारी किया था। 246 फीट ऊंची और करीब 116 करोड़ रुपए लागत की इस हाईराइज बिल्डिंग का काम अधिकारियों की जल्दबाजी के चलते पुणे की कंपनी पुणे कंस्ट्रक्शन को दे दिया गया। ठेकेदार को फायदा पहुंचाने टेंडर की शर्तों में भी बदलाव कर रेट से अलग 18 प्रतिशत जीएसटी का प्रावधान कर डाला। जबकि केंद्रीय वित्त मंत्रालय के नोटिफिकेशन नंबर 3/2019-केंद्रीय टैक्स (दर) में टेंडर रेट में ही जीएसटी शामिल करने का प्रावधान है। इस नोटिफिकेशन के आधार पर हाउसिंग बोर्ड निविदा प्रपत्रों में संशोधन भी कर चुका है। 

बोर्ड को होगा 20 करोड़ का घाटा 

तुलसी ग्रीन्स हाउसिंग प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी अतिरिक्त कमिश्नर शैलेन्द्र वर्मा संभाल रहे हैं। टेंडर के दौरान शर्तों में बदलाव कर 18 % जीएसटी को टेंडर रेट से अलग रखा गया। इस वजह से हाउसिंग बोर्ड के इस प्रोजेक्ट में मकान खरीदने वालों को अब तय कीमत पर 18% जीएसटी अलग से चुकानी होगी। इस लिहाज से 116 करोड़ रुपए के इस प्रोजेक्ट पर 20 करोड़ 90 लाख रुपए का अतिरिक्त भुगतान ठेकेदार हो करना होगा। अधिकारियों द्वारा टेंडर की शर्तों में जो बदलाव किए गए हैं उससे बोर्ड और खरीददारों को नुकसान होगा। बोर्ड के जिम्मेदारों की यह मनमानी एक तरह के आर्थिक अनियमितता है। 

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अब पेटी कांट्रेक्ट के भरोसे है निर्माण 

टेंडर हासिल करने के बाद ही पुणे की कंपनी मधुर कंस्ट्रक्शन ने निर्माण से हाथ खींच लिए हैं। वर्क ऑर्डर के बाद से ही हाउसिंग प्रोजेक्ट का निर्माण कछुआ चाल से हो रहा है। नतीजा प्रोजेक्ट तय अवधि से 12 महीने पीछे चल रहा है। निर्माण में देरी के बावजूद कंपनी का ठेका निरस्त नहीं किया गया और उसे बचाने के लिए अधिकारियों ने अनाधिकृत रूप से दो स्थानीय ठेकेदारों को काम सौंप दिया है। अब तुलसी ग्रीन्स हाउसिंग प्रोजेक्ट की साइट पर यही पेटी कांट्रेक्टर काम करा रहे हैं। साइट पर निर्माण संबंधी सामग्री से लेकर लेबर भी इनकी ही है। यह भी कहा जा सकता है कि अघोषित पेटी कांट्रेक्टर के नाम पर हाउसिंग बोर्ड के अफसर ही ठेकेदार की भूमिका अदा कर रहे हैं। 

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महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है तुलसी ग्रीन्स 

तुलसी नगर क्षेत्र में निर्माणाधीन तुलसी ग्रीन्स मप्र हाउसिंग बोर्ड का अहम प्रोजेक्ट है। यह भोपाल की सबसे ऊंची बिल्डिंग है जिसमें 25 फ्लोर होंगे। इस हाईराइज बिल्डिंग में 120 फ्लैट बनेंगे जिन्हें लोग खरीद पाएंगे। महत्वपूर्ण होने के बावजूद हाउसिंग बोर्ड के अधिकारियों का ध्यान इस प्रोजेक्ट के पिछड़ने की वजह पर नहीं है। इसके चलते इस प्रोजेक्ट के पूरा होने में कई साल लग सकते हैं। 

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'द सूत्र' के खुलासे से रुका था भुगतान

हाउसिंग बोर्ड द्वारा हाउसिंग प्रोजेक्ट में ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने का यह इकलौता खेल नहीं है। इस फेहरिस्त में ऐसे मामले पहले भी शामिल हो चुके हैं। अधिकारी निर्माण कंपनी को लाभ पहुंचाने के चक्कर में शर्तों को बदलते समय बोर्ड के नुकसान को भी अनदेखा कर रहे हैं। बीते साल ग्वालियर के थाटीपुर हाउसिंग प्रोजेक्ट में भी हाउसिंग बोर्ड के अफसरों की ऐसी ही कारगुजारी सामने आई थी। तब द सूत्र द्वारा नियम विरुद्ध टेंडर रेट से बाहर जीएसटी भुगतान की कोशिश को उजागर किया गया था। जिसके बाद तत्कालीन प्रमुख सचिव के दखल चलते बोर्ड को अतिरिक्त भुगतान रोकना पड़‍ा था। हांलाकि तब निर्माण कंपनी द्वारा काम ही शुरू नहीं किया गया था लेकिन तुलसी ग्रीन में अतिरिक्त जीएसटी का मामला अलग स्तर पर पहुंच चुका है। जिसकी जांच होने पर बोर्ड को चूना लगा रहे अधिकारियों की आर्थिक अनियमितताएं सामने आ जाएंगी। 

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