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Transport Photograph: (The Sootr)
BHOPAL. थाली-चम्मच, यूनिफार्म, साइकिल, खाद, धान जैसे घपले- गड़बड़झाले अब पुरानी बात हो गई है। मध्य प्रदेश में अब अपनी तरह का नया व्हीकल रजिस्ट्रेशन घोटाला सामने आया है। इसका खुलासा भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट ने किया है।
इस घोटाले में प्रदेश के परिवहन अधिकारियों ने अरुणाचल प्रदेश की एनओसी पर लक्षद्वीप में पहले से रजिस्टर वाहनों का पंजीयन कर डाला। इसके लिए न तो वाहनों का भौतिक सत्यापन किया गया और न ही इन वाहनों के संबंधित अपराधिक पृष्ठभूमि की पड़ताल की गई।
अब कैग ने ऐसे वाहनों के रजिस्ट्रेशन को संदेहास्पद मानते हुए परिवहन विभाग से सत्यापन रिपोर्ट मांगी है। जिससे विभाग में हड़कंप मच गया है। अरुणाचल प्रदेश की एनओसी पर हजारों वाहनों के रि-रजिस्ट्रेशन में परिवहन अधिकारियों की एक जैसी लापरवाही किसी बड़ी साजिश की ओर इशारा कर रही है।
वाहनों के पंजीयन में धांधली
विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट सामने आई है। इसके अनुसार प्रदेश में बड़े स्तर पर संदेहास्पद वाहनों का पंजीयन परिवहन पोर्टल पर किया गया है।
भोपाल, इंदौर, उज्जैन, ग्वालियर और देवास सहित अन्य बड़े जिलों में क्षेत्रीय और जिला परिवहन अधिकारियों द्वारा वाहनों के पंजीयन में नियमों की अनदेखी की गई और पोर्टल पर दर्ज करने से पहले उनके संबंध में जांच भी नहीं की गई। ऐसे वाहनों के पंजीयन के लिए जरूरी होने के बावजूद एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराय अभिलेख ब्यूरो) की सहमति लेने से परहेज किया गया है।
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सत्यापन रिपोर्ट की तलब
मध्य प्रदेश के प्रधान महालेखाकार राम हित ने ऑडिट में वाहनों के पंजीयन को लेकर सामने आई अनियमितता के संबंध में परिवहन सचिव मनीष सिंह को पत्र लिखा है। इसके साथ ही लेखा परीक्षा के लिए इन वाहनों के रि-रजिस्ट्रेशन के संबंध में सत्यापन रिपोर्ट मांगी है। मामला शीर्ष अधिकारियों तक पहुंचने से न केवल एमपी परिवहन मुख्यालय बल्कि संभागीय- जिला परिवहन कार्यालयों में भी हड़कंप मच गया है।
ट्रांसपोर्ट कमिश्नर विवेक शर्मा ने सभी क्षेत्रीय और जिला परिवहन कार्यालयों से वाहन पंजीयन के संबंध में रिकॉर्ड तलब किया है। वहीं विभागीय स्तर पर दूसरे राज्यों विशेषकर अरुणाचल प्रदेश की एनओसी पर मध्य प्रदेश में रजिस्टर वाहनों की जांच के निर्देश भी दिए गए हैं।
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वाहनों का रिकॉर्ड गायब
भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट के अनुसार वाहन पोर्टल पर प्रदेश में 33,357 वाहनों का रि-रजिस्ट्रेशन किया गया है। इनमें ज्यादातर दूसरे राज्यों की एनओसी पर पंजीकृत किए गए हैं। बीते दो सालों में अरुणाचल प्रदेश से 1008 वाहनों की एनओसी (नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट) मध्य प्रदेश के लिए जारी की गई थी लेकिन इनमें से 179 वाहनों का पंजीयन नहीं कराया गया। अब इनमें से 150 वाहनों का रिकॉर्ड ही गायब है।
मध्य प्रदेश के लिए एनओसी जारी कराने वाले वाहनों में से 8 वाहन गुजरात, राजस्थान, आंध्रप्रदेश और दिल्ली में 5-5, नागालैंड और दीव में 2-2 जबकि पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ में एक-एक वाहन पंजीकृत हुए हैं। इन वाहनों की एनओसी के दौरान जिन मोबाइल नंबर का उपयोग किया गया था वे फर्जी पाए गए हैं।
ऐसे 656 वाहनों में से केवल 3 के मोबाइल नंबर पर ही संपर्क हुआ है। एनओसी के आधार पर वाहनों के पंजीयन के दौरान अधिकारियों ने भौतिक सत्यापन ही नहीं कराया है। इस वजह संदेह की स्थिति निर्मित हुई है।
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लक्षद्वीप के वाहन, अरुणाचल से एनओसी
दूसरे राज्यों की एनओसी पर वाहनों के भौतिक सत्यापन या पड़ताल के बिना रि-रजिस्ट्रेशन को कैग ने गंभीर लापरवाही माना है। परिवहन अधिकारियों की लापरवाही और नियमों के उल्लंघन करने से बड़ी गड़बड़ी हुई है।
सत्र 2023-24 में अरुणाचल प्रदेश से जिन 402 वाहनों की एनओसी जारी की गई उनमें से 331 वाहन लक्षद्वीप में रजिस्टर पाए गए थे। इन्हीं में से 296 का पंजीयन मध्य प्रदेश के जिला में हुआ है।
उज्जैन परिवहन कार्यालय में 126, देवास में 42, इंदौर में 20, नीमच और ग्वालियर में 19-19, खरगोन में 11, जबलपुर और सिंगरौली में 10-10 जबकि भोपाल में 7 वाहन परिवहन पोर्टल के माध्यम से रजिस्टर कराए गए हैं। प्रदेश के परिवहन रिकॉर्ड में दर्ज कराए गए इन 296 में से 288 वाहनों का एनसीआरबी रिकॉर्ड नहीं मिल रहा है।
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एनसीआरबी डेटा भी नहीं खंगाला
साल 2024-25 में अरुणाचल प्रदेश से जारी 606 वाहनों की एनओसी के आधार पर 460 वाहन एमपी में परिवहन पोर्टल पर दर्ज किए गए हैं। इनमें से उज्जैन में 166, आगर- मालवा में 69, इंदौर में 57, देवास में 30, नीमच में 27, जबलपुर में 23, झाबुआ में 14 और खरगोन परिवहन कार्यालय में 11 वाहनों का रि-रजिस्ट्रेशन हुआ है।
इन वाहनों में से 366 वाहनों का एनसीआरबी रिकॉर्ड गायब है। परिवहन अधिकारियों ने दूसरे राज्यों की एनओसी पर वाहनों को रजिस्टर करने से पहले न तो भौतिक सत्यापन किया और न ही एनसीआरबी से सहमति लेकर डेटा जुटाने की जरूरत समझी।
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