BHOPAL. गुना लोकसभा सीट ( Guna loksabha seat 2024 ) से दावा कर रहे कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव ( Arun Yadav ) को पार्टी ने टिकट नहीं दिया है। इससे ये साफ हो गया है कि अब अरुण यादव के पास सिर्फ खंडवा ही एक मात्र ऑप्शन बचा हुआ है। सियासी गलियारों में इसे अंदरूनी गुटबाजी से भी देखा जा रहा है। कांग्रेस ने गुना सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया ( Jyotiraditya scindia ) के खिलाफ यादवेंद्र सिंह यादव को ही टिकट दिया है, लेकिन अरुण यादव का टिकट आखिर गुना से कटा क्यों? इसके पीछे की सच्चाई राजनीतिक जानकारों ने बताई हैं।
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सिंधिया के खिलाफ थी चुनाव लड़ने की चर्चा
अरुण यादव के नाम को लेकर पिछले दिनों से खूब चर्चा चल रही थी कि गुना लोकसभा सीट से पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव को ही टिकट मिलेगा। दिल्ली तक इस बात की चर्चा होने लगी थी, वहीं अरुण यादव ने तो ऐलान कर दिया था कि वो गुना से बीजेपी के दिग्गज ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ चुनाव लड़ना चाहते हैं। इसके पीछे उनका ये तर्क है कि पिछले चुनाव में सिंधिया को हराने वाले गुना के भाजपा सांसद केपी यादव का टिकट काट दिया है. इससे यादव वोटरों में काफी गुस्सा है। अब अगर वो इस सीट से लड़ते हैं, तो इसे उनका पूरा फायदा मिलेगा।
सिंघार का बयान सोची समझी रणनीति !
कांग्रेस चुनाव समिति की दूसरी बैठक 21 मार्च को हुई। उससे पहले नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने जो बैठक में कहा था वो ही मीडिया के सामने कहा। राजनीतिक पंडितों की माने तो सिंघार का यह बयान किसी सोची समझी रणनीति का हिस्सा था। बैठक में जाने से पहले ही एक पदाधिकारी ने मीडिया तक यह खबर पहुंचा दी कि अरुण यादव का गुना, दिग्विजय सिंह का राजगढ़ और कांतिलाल भूरिया का झाबुआ से लड़ना लगभग तय है। बैठक में सिर्फ इस पर मुहर लगने की औपचारिकता होगी।
आखिर क्यों नहीं मिला टिकट?
अब बात ये उठ रही है कि आखिर ऐसी क्या बात रही कि अरुण यादव के तर्क के बावजूद गुना से उन्हें टिकट नहीं दिया गया? सियासी गलियारों में ये भी चर्चा चल रही है कि क्या दिग्विजय सिंह के वजह से यादव को टिकट नहीं मिला या जातिगत समीकरणों की वजह से ही पार्टी ने ये फैसला लिया है।
पहली वजह-
गुना संसदीय क्षेत्र से अरुण यादव को टिकट नहीं देने की पहली वजह ये है कि अगर पार्टी यादव को गुना से टिकट देती तो बीजेपी इसका स्थानीय और बाहरी का मुद्दा बना लेती। क्योंकि अरुण यादव ना तो गुना से हैं और ना ही कोई रिश्तेदारी उनकी यहां है। ऐसे में अरुण यादव को टिकट देने की रिस्क कांग्रेस नहीं ले सकती थी।
दूसरी वजह-
सियासी गलियारों में अरुण यादव के टिकट कटने की पीछे जिसका हाथ बताया जा रहा है, उनका नाम दिग्विजय सिंह हैं. राजनीतिक पंडितों का मानना है कि अगर गुना से अरुण यादव खड़े होते तो दिग्विजय सिंह और उनके पुत्र जयवर्धन सिंह के भविष्य का क्या होगा? क्योंकि अगर अरुण यादव यहां से चुनाव लड़े और जीत जाए तो दिग्गी राजा का प्रभाव इस क्षेत्र में कम हो जाएगा।
तीसरी वजह-
वहीं तीसरी वजह जातिगत समीकरण भी निकलकर सामने आ रही है। यहां राव यादुवेन्द्र सिंह यादव स्थानीय प्रत्याशी तो है ही और यादव समाज में काफी लंबे समय से जुड़े हैं, और जमीनी स्तर पर उनकी पकड़ अरुण यादव से कहीं ज्यादा मजबूत । खास बात यह है कि राव यादवेंद्र सिंह यादव के पिता देशराज यादव हमेशा सिंधिया परिवार के मुखर रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस एक बार फिर से इसी समीकरण को साधकर चलना चाहती है।
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राव यादवेंद्र को टिकट देने के पीछे क्या है रणनीति ?
कांग्रेस के एक बड़े नेता के मुताबिक पार्टी ने पहले से तय कर लिया था कि सिंधिया को गुना लोकसभा सीट पर पूरी ताकत से घेरा जाएगा। यही वजह है कि केंद्रीय नेतृत्व ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को चुनाव लड़ने के लिए राजी करने का प्रयास किया था लेकिन वे गुना सीट से चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हुए। ऐसे में अरुण यादव पर भी दांव खेलने पर विचार हुआ, लेकिन स्थानीय नेताओं के दबाव में पार्टी बैक फुट पर आ गई। इसके बाद स्थानीय यादव समाज से उम्मीदवार के नाम की तलाश की गई। कांग्रेस के रणनीति कारों का मानना है कि भाजपा ने सिंधिया के दबाव में वर्तमान सांसद का टिकट काटा है। सिंधिया को टिकट देकर क्षेत्र के यादव वोटर्स को नाराज कर दिया है। इसी नाराजगी को भुनाने के लिए भाजपा की मूल विचारधारा से जुड़े रहे मुंगावली से पूर्व विधायक राव देशराज यादव के पुत्र राव यादवेंद्र सिंह को सिंधिया के खिलाफ उतारा है।
खंडवा से मिल सकती है अरुण को टिकट
बता दें कि अब प्रदेश की 28 सीटों में से मात्र 3 सीटों पर ही कांग्रेस उम्मीदवार की घोषणा होना बाकी है. जिसमें खंडवा के साथ-साथ मुरैना और ग्वालियर शामिल हैं। अब माना जा रहा है कि यादव को खंडवा सीट से ही चुनाव लड़ाया जा सकता है। हालांकि पार्टी अंतिम फैसला क्या लेती है, इसका इंतजार करना पड़ेगा. माना जा रहा है कि एक-दो दिन में तीनों लोकसभा के प्रत्याशियों की भी घोषणा हो जाएगी।
अरुण ने गुना से चुनाव लड़ने का किया था फैसला
बताया जा रहा है कि अरुण यादव फरवरी के महीने में अरुण यादव ने अपने करीबी नेताओं के साथ बैठक की थी। इसमें उनकी राय जानना था कि चुनाव लड़ा जाए या नहीं। ज्यादातर ने कहा कि खंडवा की बजाय दूसरी किसी सीट से चुनाव लड़ना चाहिए। क्योंकि खंडवा से चुनाव लड़ना राजनीतिक भविष्य के लिए ठीक नहीं है।