लोकसभा चुनाव : क्यों रोक ली कांग्रेस ने छह सीटें, आखिर क्या पेच फंस गया इन पर

मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटों में से 22 सीटों पर कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार चुनावी मैदान में सामने कर दिए हैं। अभी भी 6 सीटों पर प्रत्याशियों के नामों को होल्ड पर रखा गया है। आखिर इन 6 सीटों पर निर्णय क्यों नहीं हो पाया?

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Sandeep Kumar
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एमपी कांग्रेस को 6 सीटों पर प्रत्याशियों का इंतजार

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BHOPAL. मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव 2024 (  Lok sabha Election 2024 ) के लिए उम्मीदवारों की चौथी लिस्ट जारी कर दी है। लिस्ट में कांग्रेस के कई दिग्गजों को टिकट दिया है। कांग्रेस ने प्रदेश में अब तक 22 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं, जबकि 6 सीटों पर मामला अभी भी फंसा हुआ है। आपको बताते चलें कि कांग्रेस ने गुना, खंडवा, विदिशा, मुरैना, ग्वालियर और दमोह जिलो में कैंडिडेट के नामों का ऐलान नहीं किया है। आइए जानते हैं कि आखिर क्या वजह है कि कांग्रेस ने इन सीटों पर प्रत्याशी का ऐलान नहीं किया है।

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इसे छह पॉइंट में जानते हैं

गुना : पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने ऐलान कर दिया था कि वे गुना में भाजपा उम्मीदवार केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का मुकाबला करना चाहते हैं। गुना से लड़ने के पीछे उनका तर्क है कि पिछले चुनाव में सिंधिया को हराने वाले गुना के भाजपा सांसद डॉ. केपी यादव का टिकट कटने से यादव वोटर में नाराजगी है। केपी यादव मध्यप्रदेश से एकमात्र यादव सांसद हैं। उनका टिकट कटने और किसी दूसरी सीट से किसी यादव को मौका नहीं मिलने से गुना में नाराज यादव वोटर का साथ मिलेगा, लेकिन बताया जाता है कि राघौगढ़ से विधायक और दिग्विजय के बेटे जयवर्धन ने 'बाहरी' का तर्क देकर पेंच फंसा दिया है। आलाकमान चाहता है कि अरुण अपनी परंपरागत सीट खंडवा से चुनाव लड़ें, लेकिन'वे किसी भी कीमत पर इसके लिए राजी नहीं है, क्योंकि वहां के जमीनी हालात उनके अनुकूल नहीं हैं। असल बात यह भी है कि गुना में उनके लिए खोने को कुछ भी नहीं होगा।

खंडवा : गुना के बारे में फैसला नहीं होने से ही खंडवा होल्ड पर है। यहां संगठन की ओर से पहला नाम अरुण यादव का है। यदि वे गुना शिफ्ट होते हैं तो विकल्प के तौर पर पूर्व सांसद ताराचंद पटेल के बेटे नरेंद्र पटेल या सुनीता सकरगाय के नाम हैं। सुनीता के ससुर कालीचरण सकरगाय सांसद रह चुके हैं। नरेंद्र को विधानसभा चुनाव में शिकस्त खा चुके हैं। सुनीता मंत्री विजय शाह की पत्नी के सामने महापौर का चुनाव लड़कर हार चुकी हैं। महिला कोटे का ध्यान रखा जाता है तो सुनीता को मौका मिल सकता है, लेकिन खंडवा में अरुण यादव की राय मायने रखेगी।

विदिशा : पूर्व सांसद प्रताप भानु शर्मा का नाम लगभग तय माना जा रहा था। शर्मा ने तो अपनी तैयारी भी शुरू कर दी थी। इस बीच विधायक देवेंद्र पटेल का नाम भी सामने आया, लेकिन दूसरे नेताओं ने महिलाओं को प्राथमिकता देने का हवाला देते हुए विंग कमांडर (रिटायर्ड) अनुमा आचार्य की पैरवी की है। महिला कोटे को ध्यान में रखकर निर्णय लिया जाता है तो अनुमा आचार्य की संभावना बढ़ गई है।

मुरैना : पार्टी यहां से ठाकुर उम्मीदवार उतारने की तैयारी में थी, लेकिन भाजपा ने विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के करीबी पूर्व विधायक शिवमंगल सिंह तोमर को उम्मीदवार बनाकर कांग्रेस के प्लान को फेल कर दिया। कांग्रेस के पास जौरा विधायक पंकज उपाध्याय और पूर्व विधायक सत्यपाल सिंह सिकरवार (नीटू) मुख्य चेहरे हैं। प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी की पसंद पंकज हैं, लेकिन स्थानीय समीकरणों में वे फिट नहीं बैठ रहे। दूसरा संकट यह है कि यदि नीटू सिकरवार को प्रत्याशी बनाया जाता है तो भाजपा - कांग्रेस से एक ही समाज के उम्मीदवार हो जाने से बसपा या अन्य दल ओबीसी प्रत्याशी उतारकर वोटों ध्रुवीकरण से जातिगत समीकरण बिगाड़ सकती है।

ग्वालियर : पूर्व विधायक प्रवीण पाठक और नीटू सिकरवार के साथ ही पूर्व मंत्री लाखन सिंह यादव और मितेंद्र दर्शन सिंह के नामों में से किसी एक पर सहमति नहीं बन पाई। मुरैना में सहमति नहीं बनने से ग्वालियर सीट का भी फैसला नहीं हो पाया। मुरैना से यदि ब्राह्मण चेहरे के तौर पंकज उपाध्याय को उम्मीदवार बनाते हैं तो ग्वालियर में प्रवीण पाठक की जगह नीटू सिकरवार को लड़ाने पर विचार चल रहा है, लेकिन नीटू सिकरवार के भाई सतीश सिकरवार विधायक और भाभी शोभा सिकरवार महापौर हैं। ऐसे में कांग्रेस एक ही परिवार को बढ़ावा देने के आरोपों का सामना नहीं करना चाहेगी। यह भी नहीं चाहेगी कि पार्टी में बेवजह बगावत का खतरा खड़ा हो।

दमोह : जिला पंचायत अध्यक्ष रंजीता गौरव पटेल, बड़ामलहरा विधायक रामसिया भारती और बंडा के पूर्व विधायक तरवर सिंह लोधी के नाम पैनल में थे, लेकिन रंजिता पटेल ने कदम पीछे खींच लिए। इस बीच राज्यसभा सांसद और ओबीसी लीडर राजमणि पटेल ने दिल्ली में लॉबिंग शुरू कर दी। राजमणि खजुराहो सीट से लड़ना चाहते थे, लेकिन खजुराहो सपा को समझौते में चली गई। दमोह लोकसभा में लोधी और कुर्मी वोटर्स की संख्या निर्णायक है। बीजेपी ने राहुल सिंह लोधी को टिकट दिया है। राजमणि कुर्मी जाति से आते हैं। उनका राज्यसभा कार्यकाल अगले महीने खत्म हो रहा है। यदि पार्टी ने दमोह से किसी महिला को टिकट देने का सैद्धांतिक फैसला ले लिया तो रामसिया भारती की उम्मीदें बढ़ गई हैं।

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जीतू पटवारी को पार्टी क्यों मैदान में नहीं उतारा?

बीजेपी जिस गति से कांग्रेस को तोड़ने की मुहिम में जुटी हुई है, उसे देखते हुए पार्टी को भी लगता है कि पटवारी का फोकस संगठन को संभालने पर जरूरी है। स्वाभाविक है कि यदि वे मैदान में उतरते हैं तो उन्हें पूरा फोकस इंदौर में अपने चुनाव पर ही करना पड़ता। फिर राजनीति के गणित में इंदौर इस बार कांग्रेस के लिए कठिन सवाल की तरह है। विधानसभा चुनाव में इंदौर संसदीय क्षेत्र की आठों सीटों पर भाजपा ने क्लीन स्वीप किया था। दो पूर्व विधायक संजय शुक्ला और विशाल पटेल ने हाल ही में कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा का झंडा थाम लिया। दो बार लोकसभा प्रत्याशी रहे पंकज संघवी भी अब भाजपा के हो गए हैं। ऐसे में इंदौर कांग्रेस के लिए हाई रिस्क जोन जैसा है। 

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