संजय गुप्ता,INDORE. मप्र सरकार दिसंबर माह में जीएसटी के हुए रिकॉर्ड तोड़ कलेक्शन 3423 करोड़ रुपए से बेहद खुश है। सीएम डॉ.मोहन यादव और वित्तमंत्री जगदीश देवड़ा ने दोनों टीम को बधाई दी है। अब एक बार सर्वाधिक टैक्स कलेक्शन वाले राज्यों की सूची पर नजर डालते हैं तो देश में जनसंख्या में देश में पांचवे और एरिया के हिसाब से दूसरे नंबर के मप्र का टैक्स कलेक्शन में टॉप टेन राज्यों से भी बाहर है, उसका नंबर ऊपर से 13वां हैं।
देखिए टॉप 15 राज्यों का दिसंबर में जीएसटी कलेक्शन
1-महाराष्ट्र- 26,814 करोड़
2- कर्नाटक - 11,759 करोड़
3- तमिलनाडु - 9,888 करोड़
4- गुजरात - 9,874 करोड़
5- हरियाणा - 8,130 करोड़
6- उत्तर प्रदेश - 8,011 करोड़
7- दिल्ली- 5,121 करोड़
8- पश्चिम बंगाल - 5,019 करोड़
9- तेलंगाना - 4,753 करोड़
10- ओडिशा - 4,351 करोड़
11- राजस्थान - 3,828 करोड़
12- आंध्र प्रदेश - 3,545 करोड़
13- मध्य प्रदेश- 3,423 करोड़
14- झारखंड- 2632 करोड़
15- छत्तीसगढ़-2612 करोड़
(केरल का 2,458 करोड़, पंजाब- 1,875 करोड़, बिहार 1,487 करोड़, उत्तराखंड 1,470 और असम 1202 करोड़ है)
महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात छोड़िए हरियाणा और तेलागंना से भी पीछे
जीएसटी टैक्स कलेक्शन में हम देश के विकसित राज्यों महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात, कर्नाटक को तो छोड़िए जो हमसे जनसंख्या से लेकर एरिया में भी कई गुना छोटे हैं, वह टैक्स कलेक्शन में आगे हैं। जैसे मप्र से एरिया में सात गुना तक छोटा और जनंसख्या में ढाई गुना छोटा हरियाणा का ही कलेक्शन ढाई गुना करीब (8 हजार करोड़ से ज्यादा) है। वहीं तेलांगना जो मप्र से जनसंख्या में आधा है, उसका कलेक्शन 4735 करोड़ रुपए है।
औद्योगिक मजबूती के चलते आगे हैं यह राज्य,मप्र में समिट के बाद भी निवेश दूर
जीएसटी कलेक्शन में महाराष्ट्र, गुजरात जैसे राज्यों के आगे रहने का सबसे बड़ा कारण मैनुफैक्चरिंग है। यहां सबसे ज्यादा इंडस्ट्री है और अधिक उत्पादन के चलते अधिक टैक्स कलेक्शन होता है। वहीं मप्र की हालत उद्योगों में अभी भी खस्ताहाल है, भले ही यहां पर साल 2007 से ही ग्लोबल समिट हो रही है और लाखों करोड़ के निवेश के करार हुए हैं लेकिन असल में मैदान पर काफी कम आया है। पुराने रिकार्ड के अनुसार मप्र में हर साल दस हजार करोड़ रुपए से भी कम औद्योगिक निवेश धरातल पर आ रहा है।
कमाई कम, अधिक खर्चे से भी परेशान मप्र
मप्र का जीएसटी कलेक्शन का औसत हर साल का कलेक्शन 35 हजार करोड़ के करीब का है। बाकी आय पंजीयन विभाग, आबकारी, खनिज से होती है। उधर कम टैक्स के चलते मप्र को विकास के लिए और योजनाओं को पूरा करने के लिए लगातार कर्ज लेना पड़ रहा है। मप्र तीन माह में 28500 करोड़ रुपए का कर्ज लेने जा रहा है। उस पर पहले से ही साढ़े तीन लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज है।