अजमेर दरगाह ब्लास्ट केस : SC का नोटिस, असीमानंद सहित 7 के बरी होने पर सरकार से मांगा जवाब

अजमेर दरगाह ब्लास्ट केस में सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस देते हुए स्वामी असीमानंद सहित 7 लोगों के बरी होने पर राजस्थान सरकार से जवाब मांगा है। ब्लास्ट में तीन लोगों की मौत हुई थी और दर्जन भर से अधिक लोग घायल हुए थे।

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Amit Baijnath Garg
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Photograph: (the sootr)

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Ajmer. राजस्थान की अजमेर शरीफ दरगाह में 18 साल पहले हुए बम विस्फोट मामले में बरी किए गए स्वामी असीमानंद सहित 7 आरोपियों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। 

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स्पेशल लीव पिटीशन दायर

सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दरगाह कमेटी के सदस्य सैयद सरवर चिश्ती द्वारा दायर स्पेशल लीव पिटीशन पर दिया है। याचिकाकर्ता चिश्ती ने आरोपियों को बरी करने के फैसले को चुनौती देते हुए कहा कि एनआईए कोर्ट का निर्णय और उसके बाद राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा अपील खारिज करना न्याय में गंभीर त्रुटि है। इस मामले की सुनवाई की जाए।

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एनआईए की अदालत ने किया था बरी 

एनआईए विशेष अदालत ने बम विस्फोट मामले में 8 मार्च, 2017 को स्वामी असीमानंद सहित 7 आरोपियों को बरी कर दिया था। मामले में सबूत नहीं पाए जाने पर कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया था। 

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हाई कोर्ट में देरी से चुनौती

एनआईए की विशेष अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली अपील राजस्थान हाई कोर्ट में दायर की गई थी, मगर हाई कोर्ट ने इसे 1135 दिन की देरी बताते हुए खारिज कर दिया था। इसी आदेश को अब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।

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सुप्रीम कोर्ट में लगाई याचिका

सुप्रीम कोर्ट में चिश्ती द्वारा स्पेशल लीव पिटीशन दायर की गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि इतना गंभीर मामला सिर्फ देरी की वजह से खारिज नहीं किया जा सकता और दोषियों को कानून के दायरे में लाना आवश्यक है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा भेजे गए नोटिस के बाद सरकार को स्पष्टीकरण देना होगा और मामला फिर से कानूनी गति पकड़ सकता है। साथ ही बरी हुए स्वामी असीमानंद समेत सात आरोपियों की कानूनी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। 

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18 साल पुरानी दर्दनाक घटना

11 अक्टूबर, 2007 की शाम अजमेर दरगाह में हुए ब्लास्ट में 3 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि करीब डेढ़ दर्जन लोग घायल हुए थे। यह घटना देश को हिला देने वाली आतंकी वारदातों में से एक है। स्वामी असीमानंद समेत 7 जनों को अरेस्ट किया।

साथ ही इनके खिलाफ चालान पेश किया गया। हालांकि दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष आरोपियों पर आरोप साबित करने में विफल रहा। ऐसे में सभी आरोपियों को बरी करने के आदेश कोर्ट ने सुनाए।

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