अंता उपचुनाव : ओम बिरला और वसुंधरा राजे के मनमुटाव में फंसा भाजपा का टिकट, पार्टी सहमति बनाने में जुटी

राजस्थान में अंता विधानसभा उपचुनाव में भाजपा के अंदर चल रही गुटबाजी और जातीय समीकरण के बीच पार्टी के लिए जीत हासिल करना चुनौतीपूर्ण होगा। टिकट के लिए बड़े नेताओं में जोर-आजमाइश चल रही है।

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Rakesh Kumar Sharma
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Photograph: (the sootr)

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Jaipur/Baran. राजस्थान में बारां जिले के अंता विधानसभा उपचुनाव को लेकर अब मतदाताओं की निगाह भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर टिकी हुई है। इस टिकट को लेकर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के बीच रस्साकसी चल रही है। राजस्थान के दोनों भाजपा नेता हाड़ौती में अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए अपने समर्थकों को टिकट दिलाने में जुटे हैं।

कांग्रेस ने प्रमोद जैन भाया को उम्मीदवार घोषित करके पहले बाजी मार ली। अब सबकी निगाहें भाजपा पर है। भाजपा कोर कमेटी की बैठक में सभी समीकरण को देखते हुए आपसी सहमति से जीतने वाले उम्मीदवारों के नाम पर चर्चा की जाएगी। फिर तीन का पैनल बनाकर दिल्ली केंद्रीय बोर्ड को भेजा जाएगा। वहां से ही प्रत्याशी की घोषणा की जाएगी। चुनाव लड़ने के इच्छुक भाजपा नेताओं ने टिकट के लिए लामबंदी शुरू कर रखी है। 

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बिरला और वसुंधरा ने ताकत झोंकी

भाजपा सूत्रों का कहना है कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अंता विधानसभा सीट पर अपने समर्थक नेता को टिकट दिलाने में लगे हुए है। इसके लिए दोनों तरफ से खूब जोर-अजमाइश चल रही है। भाजपा के संगठनात्मक हिसाब से बारां जिला कोटा में आता है, जबकि संसदीय क्षेत्र के हिसाब से यह झालावाड़-बारां लोकसभा सीट में आता है। बिरला कोटा से सांसद हैं, वहीं वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह झालावाड़-बारां सीट से लोकसभा सदस्य हैं।

इस आधार पर पार्टी के दोनों दिग्गज नेता ओम बिरला और वसुंधरा राजे अपने-अपने समर्थक को टिकट दिलाने में लगे हैं। इसके लिए तगड़ी लॉबिंग भी कर रहे हैं। आपराधिक मामले में तीन साल की सजा के बाद विधायकी गंवाने वाले कंवरलाल मीणा वसुंधरा राजे के वफादार माने जाते हैं। अंता सीट कंवरलाल मीणा की सजा के बाद खाली हुई है। वसुंधरा राजे ने ही उनकी सजा माफ करवाने के लिए राज्यपाल तक फाइल भिजवाई, ताकि सजा में माफी मिल जाए तो चुनाव की नौबत नहीं आए, लेकिन यह दांव फेल हो गया। 

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भाजपा जुटी सहमति बनाने में

अब वसुंधरा राजे जेल में सजा काट रहे कंवरलाल मीणा की पत्नी और बेटे को टिकट दिलवाने में लगी है, ताकि सहानुभूति कार्ड खेला जा सके। वहीं सीट पर मीणा समाज के वोटर भी बहुतायत में है। कंवरलाल की संघ पृष्ठभूमि के साथ संगठन में मजबूत पकड़ भी रही है। इस आधार पर राजे और झालावाड़ बारां से सांसद दुष्यंत सिंह कंवरलाल मीणा के परिजनों को ही टिकट दिए जाने की जोरदार वकालत कर रहे हैं। इसके लिए वसुंधरा राजे  अपने पुत्र दुष्यंत के साथ दिल्ली में हैं। 

वहीं भाजपा राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़, कोर कमेटी के सदस्यों और अंता सीट के प्रभारी दामोदर अग्रवाल को भी अवगत करा दिया है। उधर, ओम बिरला गुट भी दिल्ली और राजस्थान के वरिष्ठ नेताओं के संपर्क में हैं। ओम बिरला अंता सीट से पूर्व मंत्री प्रभुलाल सैनी के पक्ष में हैं। प्रभुलाल सैनी अंता सीट से जीतकर भाजपा सरकार में मंत्री रह चुके हैं। उधर, प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ और प्रभारी दामोदर अग्रवाल की ओर से वसुंधरा राजे, ओम बिरला समेत समेत जिलाध्यक्ष और स्थानीय नेताओं से वार्ता करके आपसी सहमति के प्रयास किए जा रहे हैं। जल्द ही कोर कमेटी की मीटिंग में आपसी सहमति से तीन उम्मीदवारों का पैनल दिल्ली भेजा जाएगा। 

राजे साइडलाइन, बिरला का प्रभाव ज्यादा 

भाजपा में अब राजनीतिक समीकरण बदले हुए हैं। दो बार की मुख्यमंत्री रहीं वसुंधरा राजे का पार्टी में प्रभाव कम हो गया है। पिछले चुनाव में भी पार्टी ने राजे को ज्यादा महत्व नहीं दिया था। सिर्फ झालावाड़-बारां संसदीय सीट के टिकट में राजे की चली। चुनाव में राजे के कई समर्थकों को टिकट तक नहीं मिल पाए थे। वहीं सत्ता में आने पर उनके समर्थक मंत्री नहीं बन पाए। 

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मनमुटाव से भाजपा आलाकमान में तनाव

अभी जो हालात हैं, उसमें वसुंधरा राजे को न तो दिल्ली और ना ही राजस्थान में ज्यादा तवज्जो दी जा रही है। इससे यह कयास लगाया जा रहा है कि पार्टी अंता सीट से वसुंधरा राजे समर्थक के बजाय अन्य को टिकट दे सकती है। वैसे भी पार्टी में अभी हाड़ौती में कोटा के सांसद और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का प्रभाव अधिक है। पार्टी के वरिष्ठ नेता भी उन्हें खासी तवज्जो दे रहा है। 

बिरला गुट का तर्क है कि संगठन के हिसाब से बारां जिला कोटा में है। इस आधार पर वे अपने समर्थक को टिकट दिए जाने की दावेदारी कर रहे हैं। हालांकि राजे का प्रभाव बारां जिले में चार दशक से है। वे यहां के लोगों से निरंतर संपर्क में रहती हैं। मुख्यमंत्री रहते हुए कोटा संभाग में खूब विकास करवाए गए। राजे के प्रभाव को भी पार्टी मानती है। पार्टी जानती है कि अगर राजे को इग्नोर किया, तो इस सीट पर समीकरण बिगड़ सकते हैं। ऐसे में दोनों ही नेताओं में सहमति बनाकर एक नाम तय करने का प्रयास किया जा रहा है।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अंता विधानसभा उपचुनाव में दोनों धड़ों को नहीं साधा तो इसका खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ सकता है। दोनों गुट भीतरघात करके पार्टी उम्मीदवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं। उधर, दोनों गुट से इतर कुछ नेता स्थानीय को ही टिकट दिए जाने की मांग कर रहे हैं। स्थानीय चेहरे को ही अवसर देने की मांग भी जोर पकड़ रही है। उधर एकराय के लिए भाजपा में दो-तीन दिन तक चिंतन-मंथन का दौर चल सकता है।

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पार्टी देख रही है जीत के समीकरण 

अंता सीट पर कांग्रेस की ओर से बारां के कद्दावर नेता प्रमोद जैन भाया को टिकट की घोषणा होने पर भाजपा भी मजबूत और जिताऊ कैंडिडेट को उतारेगी। इसके लिए सीट के जातीय समीकरण भी देखे जा रहे हैं। इस सीट पर सर्वाधिक वोट माली समाज के 40 हजार हैं। इसके बाद मीणा समाज के 30 हजार वोट हैं। 35 हजार वोट एससी वर्ग से हैं। धाकड़, ब्राह्मण, वैश्य, मुस्लिम वोट भी अच्छी तादाद में हैं। 

तीन बार विधायक रहे भाया की जाति के वोट कम हैं, लेकिन राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक सक्रियता के कारण उनकी सभी वर्ग में अच्छी पकड़ है। कांग्रेस में भी उनका विरोध नहीं है। ऐसे में भाजपा ऐसे नेता को टिकट देने के पक्ष में है, जिसके जातीय समीकरण के साथ सीट के मतदाताओं में अच्छी पकड़ हो और सभी को साथ लेकर चुनाव लड़ सके। 

पार्टी जानती है कि एकजुटता से चुनाव लड़े तो भाया को चुनावी मैदान में पटखनी दी जा सकती है। पिछला चुनाव भाया करीब पौने छह हजार वोटों से ही हारे थे। ऐसे में पार्टी जिताऊ उम्मीदवार के तौर पर पूर्व मंत्री प्रभुलाल सैनी, कंवरलाल मीणा की पत्नी, भाजपा नेता आनंद गर्ग, पूर्व जिला प्रमुख नंदलाल सुमन और अंता प्रधान प्रखर कौशल के नामों पर विचार कर रही है। 

सभी समाज को साधेगा, जीत उसकी

अंता सीट में माली, मीणा समाज बहुतायत में हैं, लेकिन दूसरी जातियां एससी, धाकड़, वैश्य, ब्राह्मण, चारण, मुस्लिम आदि भी अच्छी तादाद में हैं। जो सभी जातियों का साध लेगा, वो चुनावी वैतरणी पार कर सकता है। इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार प्रमोद जैन भाया का जातीय आधार न के बराबर है, लेकिन एससी, धाकड़, वैश्य आदि वर्ग कांग्रेस के साथ है। भाया की व्यक्तिगत पकड़ सभी वर्ग में है। 

2008 से पहले अंता विधानसभा क्षेत्र बारां विधानसभा का हिस्सा हुआ करता था। तब बारां विधानसभा से ब्राह्मण नेता रघुवीर सिंह कौशल भाजपा व धाकड़ जाति का प्रतिनिधित्व करने वाले शिवनारायण नागर कांग्रेस से तीन-तीन बार विधायक रहे थे। ऐसे में साफ है कि एकमात्र जातीय समीकरण यहां जीत का आधार नहीं हो सकते। अंता विधानसभा में भाजपा से चुनाव जीते प्रभुलाल सैनी व निवर्तमान विधायक कंवरलाल मीणा अपने जाति के मतों के बूते ही विजयी रहे, यह बात भी बेमानी ही है। दूसरी जातियों के वोट मिलने से उनकी जीत हो पाई थी। 

विधायकी जाने से उपचुनाव

वर्ष 2013, 2018 व 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने यहां से जिले के बाहर के उम्मीदवार को ही मैदान में उतारा है। इनमें टोंक जिले के उनियारा के रहने वाले प्रभुलाल सैनी एक बार 3399 मतों के अंतर से चुनाव जीते थे, लेकिन 2018 में वे 34 हजार से अधिक मतों से प्रमोद जैन से हार गए थे, जबकि 2023 के चुनाव में भाजपा ने यहां से झालावाड़ जिले के अकलेरा कस्बा निवासी कंवरलाल मीणा को मैदान में उतारा, तो वे 5861 मतों से चुनाव जीते थे। अब उनकी विधायकी जाने से उपचुनाव हो रहा है।

परिसीमन के बाद 2008 में अस्तित्व में आई इस सीट पर तब भाया जीते थे और कांग्रेस सरकार में राज्य मंत्री के रूप में मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था। 2013 में वे चुनाव जीते। 2018 में फिर से चुने गए कांग्रेस के प्रमोद जैन भाया 2023 तक कैबिनेट मंत्री रहे थे। 2023 में यहां से भाजपा के कंवरलाल मीणा विजयी रहे थे।

FAQ

1. अंता उपचुनाव में भाजपा के टिकट को लेकर क्या समस्या है?
अंता उपचुनाव में भाजपा के टिकट को लेकर ओम बिरला और वसुंधरा राजे के बीच विवाद चल रहा है, और दोनों नेता अपने समर्थकों को टिकट दिलवाने के लिए लॉबिंग कर रहे हैं।
2. भाजपा में वसुंधरा राजे का प्रभाव कितना कम हो गया है?
वसुंधरा राजे का पार्टी में प्रभाव पिछले कुछ वर्षों में घटा है, और ओम बिरला का प्रभाव अब ज्यादा बढ़ गया है, खासकर अंता उपचुनाव में।
3. अंता उपचुनाव के जातीय समीकरण क्या हैं?
अंता उपचुनाव में माली, मीणा, एससी, धाकड़, ब्राह्मण, वैश्य, और मुस्लिम समुदाय के वोट महत्वपूर्ण हैं, जो चुनावी रणनीति को प्रभावित करेंगे।

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