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Photograph: (TheSootr)
राजस्थान में अंता (बारां) के पूर्व विधायक कंवरलाल मीणा की दया याचिका ने राज्य की राजनीति में एक नया मोड़ लिया। मीणा, जिन्हें 20 साल पुराने मामले में सजा मिली थी, अपनी सजा कम कराने के लिए दया याचिका दायर करने की कोशिश कर रहे थे। उनकी करीबी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रयासों के बाद, सोमवार को अचानक फाइल में तेजी आई, लेकिन एकाएक इसे रोक दिया गया, जिससे सियासी हलचल मच गई।
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दया याचिका की प्रक्रिया और राजनीति
दया याचिका राज्यपाल के पास भेजी जानी थी, लेकिन इससे पहले ही इसे रोक दिया गया। यह प्रक्रिया ठीक उस समय पर रुकी, जब अंता सीट पर उपचुनाव की घोषणा होने वाली थी। सूत्रों के मुताबिक, वसुंधरा राजे ने इस याचिका के समर्थन में कई बड़े नेताओं को सहमत भी किया था, जिससे यह फाइल एक बार फिर से गति पकड़ने लगी। हालांकि, जब तक यह फाइल राज्यपाल तक पहुंचती, उसे अचानक रोक दिया गया।
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कंवरलाल मीणा का विधायकी से हाथ धोना
कंवरलाल मीणा की विधायकी 20 साल पुराने एक मामले में कोर्ट से सजा मिलने के बाद समाप्त हो गई थी। इस मामले में उन्हें एसडीएम (Sub-Divisional Magistrate) पर पिस्टल तानने का आरोप था, जिसके कारण उन्हें तीन साल की सजा मिली। सजा के बाद, उनकी विधायकी समाप्त हो गई और अंता सीट खाली हो गई। संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल से सजा कम करने की याचिका दायर की गई थी, जिससे उनकी विधायकी बहाल हो सकती थी।
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उपचुनाव की राजनीति और कंवरलाल की संभावनाएं
कंवरलाल मीणा की विधायकी समाप्त होने के बाद अंता सीट पर उपचुनाव अनिवार्य हो गया था। उपचुनाव के परिणाम से भले ही सरकार की सेहत पर कोई फर्क न पड़े, लेकिन इसका राजनीतिक संदेश काफी महत्वपूर्ण था। यदि बीजेपी इस सीट पर जीतती है, तो इसे सरकार के कामकाज पर जनता की मुहर के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा। वहीं, यदि बीजेपी हारती है, तो विपक्ष को हमलावर होने का एक और मौका मिल जाएगा।
उपचुनाव के नतीजे का होगा राजनीतिक असर
अंता सीट पर होने वाले उपचुनाव के परिणाम भी काफी महत्वपूर्ण होंगे। यह चुनाव सरकार के कामकाज का एक बड़ा पैमाना बन सकता है। यदि बीजेपी जीतती है, तो इसे सरकार के कार्यकाल का समर्थन माना जाएगा, और यदि विपक्षी दल जीतते हैं, तो यह सरकार की आलोचना का कारण बन सकता है। इसलिए, अंता उपचुनाव के नतीजे केवल अंता क्षेत्र तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि पूरे राजस्थान में राजनीतिक माहौल को प्रभावित करेंगे।
दया याचिका और वसुंधरा राजे का दबाव
सूत्रों के मुताबिक, पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने इस दया याचिका के समर्थन में प्रभावी कदम उठाए थे। उन्होंने न केवल पार्टी के नेताओं से इस मामले में समर्थन लिया, बल्कि केंद्र तक भी बातचीत की। उनके प्रयासों के बाद, याचिका की फाइल में तेजी आई थी। हालांकि, जैसे ही यह फाइल राज्यपाल के पास भेजी जानी थी, अचानक उसे रोक दिया गया। सूत्रों के मुताबिक, यह कदम इस वजह से उठाया गया ताकि वसुंधरा राजे को संतुष्ट किया जा सके, लेकिन साथ ही दया याचिका भी खारिज हो जाए।
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कंवरलाल मीणा कौन हैं?बीजेपी नेता कंवरलाल मीणा झालावाड़ जिले की मनोहरथाना विधानसभा क्षेत्र के अकलेरा के रहने वाले हैं। संघ बैकग्राउंड से आने वाले मीणा मेडिकल सेक्टर से जुड़े हैं। अकलेरा में उनका नर्सिंग होम और झालावाड़ा में उनका नर्सिंग कॉलेज है। कंवरलाल मीणा 2023 में दूसरी बार विधायक बने थे। पहली बार उन्होंने साल 2008 में झालावाड़ की मनोहरथाना विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर जीता था। वहीं 2023 में उन्होंने बारां जिले की अंता विधानसभा सीट से जीत हासिल की थी। यहां उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व मंत्री प्रमोद जैन भाया को हराया था। | |
राजनीति का एक नया मोड़
इस कदम के बाद, सियासी चर्चा तेज हो गई है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह फैसला एक रणनीति के तहत लिया गया है, जिससे बीजेपी और वसुंधरा राजे दोनों को संतुष्ट किया जा सके। हालांकि, मीणा की दया याचिका के खारिज होने से एक बार फिर से यह सवाल उठने लगा है कि राजस्थान की राजनीति में एक बड़ा बदलाव आ रहा है।
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कंवरलाल मीणा और उनकी संघ पृष्ठभूमि
कंवरलाल मीणा की राजनीतिक पृष्ठभूमि संघ से जुड़ी हुई है। वह भाजपा के बड़े नेताओं से करीबी रिश्ते रखते हैं, और उनके संघ परिवार से गहरे संबंध हैं। उनके लिए यह सजा और विधायकी का मसला सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, बल्कि पार्टी और क्षेत्रीय राजनीति से भी जुड़ा हुआ है। मीणा के खिलाफ एसडीएम पर पिस्टल तानने के आरोप में जो केस था, वह न केवल उनके लिए, बल्कि उनकी पार्टी के लिए भी एक चुनौती बन चुका था।
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