कहीं नहीं चला गहलोत की राजनीति का जादू, अब बिहार के मुख्य पर्यवेक्षक बनने के बाद क्या होगा?

राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का चुनावी अनुभव कांग्रेस के लिए अहम, लेकिन क्या बिहार में उनका जादू चलेगा? जानिए उनकी राजनीतिक यात्रा और पूर्व चुनावी अनुभव।

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Amit Baijnath Garg
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Photograph: (the sootr)

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Jaipur. राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को कांग्रेस हाईकमान ने बिहार विधानसभा चुनाव के लिए मुख्य पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। यह पहला मौका नहीं है, जब पार्टी ने उन्हें महत्वपूर्ण चुनावी जिम्मेदारी सौंपी है। गहलोत अब बिहार में चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी संभालेंगे और कांग्रेस पार्टी के लिए नए रणनीतिक कदमों का रूपरेखा तैयार करेंगे।

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पार्टी में गहलोत पर क्यों है विश्वास?

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और अधीर रंजन चौधरी को बिहार विधानसभा चुनाव के लिए वरिष्ठ पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। इससे साफ है कि पार्टी का गहलोत पर पूरा विश्वास है। गहलोत का राजनीति में लंबा अनुभव है और वे चुनावी रणनीतियों के लिए जाने जाते हैं। हालांकि गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस को किसी भी राज्य में सत्ता नहीं मिली।

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हरियाणा में कांग्रेस की हार

2022 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने गहलोत को वरिष्ठ पर्यवेक्षक बनाया था। हालांकि उनके प्रयासों के बावजूद भाजपा को हराने में कांग्रेस सफल नहीं हो पाई। पार्टी केवल 37 सीटों तक सीमित रही, जबकि भाजपा ने बहुमत हासिल किया।

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महाराष्ट्र में गहलोत का जादू विफल

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी गहलोत को पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया था, लेकिन उनकी रणनीतियां राज्य में कांग्रेस की सत्ता में वापसी नहीं करवा पाईं। यहां भी कांग्रेस को सत्ता से बाहर रहना पड़ा। महाराष्ट्र में भी गहलोत कोई कमाल नहीं दिखा पाए। 

गुजरात चुनाव में भी नहीं बनी बात

गुजरात विधानसभा चुनाव में भी अशोक गहलोत की रणनीति काम नहीं आई। गहलोत ने गुजरात के कई विधानसभा क्षेत्रों में पैदल मार्च कर कांग्रेस के पक्ष में मतदान की अपील की, लेकिन पार्टी को कोई खास सफलता नहीं मिली।

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राजस्थान में भी नहीं चला जादू?

अशोक गहलोत को राजनीति का जादूगर कहा जाता है, लेकिन उनके नेतृत्व में कांग्रेस को कभी भी सत्ता को रिपीट करने में सफलता नहीं मिली। 1998 से 2003 तक गहलोत की सरकार थी, लेकिन वे 2003 में सत्ता रिपीट करने में नाकाम रहे। फिर 2008 से 2013 तक गहलोत ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद संभाला, लेकिन 2013 के चुनाव में भी कांग्रेस को सत्ता दोबारा नहीं मिल पाई। 2018 से 2023 तक गहलोत तीसरी बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन उन्हें सत्ता को बनाए रखने में सफलता नहीं मिली।

गहलोत का राजनीतिक जादू कहां गया?

गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस कई राज्यों में अपना जादू नहीं दिखा पाई। उनका चुनावी अनुभव अच्छा तो है, लेकिन क्या यह बिहार में काम करेगा? गहलोत का यह नया चुनावी सफर कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है, लेकिन उनके पिछले प्रयासों से यह सवाल उठता है कि क्या गहलोत अपने जादू से बिहार में कांग्रेस को सफलता दिला पाएंगे या नहीं।

FAQ

1. अशोक गहलोत को क्यों मुख्य पर्यवेक्षक बनाया गया है?
अशोक गहलोत को उनकी चुनावी रणनीति और अनुभव के कारण बिहार विधानसभा चुनाव के लिए मुख्य पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया है। उनका चुनावी अनुभव कांग्रेस के लिए अहम है।
2. गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस के चुनावी परिणाम कैसे रहे हैं?
गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस को कई राज्यों में हार का सामना करना पड़ा है, जैसे हरियाणा, गुजरात, और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में, जहां उनकी रणनीतियां काम नहीं आईं।
3. क्या गहलोत बिहार चुनाव में सफलता दिला पाएंगे?
अशोक गहलोत का चुनावी अनुभव उन्हें बिहार में सफलता दिला सकता है, लेकिन पिछले चुनावों में उनकी रणनीतियां काम नहीं आईं, इस कारण यह देखना होगा कि बिहार में वे किस तरह से प्रदर्शन करते हैं।

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