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चित्तौड़गढ़ के एक गांव में एक बंदर की मौत के बाद शोक का माहौल है। राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के भदेसर क्षेत्र के धीरजी का खेड़ा गांव में घटित हुई एक अद्भुत घटना ने पूरे गांव को शोक में डुबो दिया। 7 सितंबर को एक बंदर की मौत के बाद गांव के सैकड़ों लोग उसकी आत्मा की शांति के लिए एकत्रित हुए और उसे श्रद्धांजलि अर्पित की। इस बंदर को गांववाले हनुमानजी का स्वरूप मानते थे। उनका विश्वास था कि यह बंदर एक दिव्य अस्तित्व था, जिसके साथ उनके संबंध बहुत गहरे थे।
बंदर की मृत्यु पर शोक
चित्तौड़गढ़ के एक गांव में एक बंदर को माना जाता था हनुमानजी का स्वरूप। 7 सितंबर 2025 को चित्तौड़गढ़ जिले के भदेसर क्षेत्र स्थित धीरजी का खेड़ा गांव के पास खाकल देवजी के मंदिर में रहने वाला एक बंदर अचानक मृत पाया गया। यह बंदर पिछले दो सालों से मंदिर के आसपास रह रहा था और वहां के लोगों के साथ एक गहरे संबंध में था।
खास बात यह थी कि यह बंदर कभी भी इंसानों को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाता था, बल्कि उसकी आदतें इंसानों जैसी थीं। वह हमेशा शांति से गांव के लोगों के बीच घूमता और धार्मिक आयोजनों में भाग लेता था। उसकी मृत्यु के बाद, गांव के लोग शोक संतप्त हो गए और उसे एक दिव्य प्राणी मानते हुए उसका अंतिम संस्कार वैदिक विधियों से करने का निर्णय लिया।
हनुमानजी का स्वरूप मानते थे बंदर कोगांववाले इस बंदर को हनुमानजी का स्वरूप मानते थे, क्योंकि उसकी आदतें और व्यवहार अन्य सामान्य बंदरों से बहुत अलग थे। इस बंदर का व्यवहार पूरी तरह से धार्मिक था। वह नियमित रूप से मंदिर में पूजा और आरती में भाग लेता था। कुछ ग्रामीणों का मानना था कि यह बंदर हनुमानजी का अवतार था, क्योंकि वह हमेशा शांति से मंदिर में बैठता और वहां आने वाले श्रद्धालुओं से अच्छे से मिल-जुल कर रहता। गांव वाले बताते हैं कि वह कई बार श्रद्धालुओं की गोद में बैठता था, बच्चों के साथ खेलता और बुजुर्गों के पास जाकर बैठता था। इस प्रकार के आचरण ने उसे केवल एक साधारण जानवर के बजाय एक धार्मिक प्रतीक बना दिया। | |
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पूरे गांव में शोक की लहर
जैसे ही बंदर की मृत्यु की खबर फैली, पूरे गांव में शोक की लहर दौड़ गई। गांववासियों ने यह तय किया कि बंदर का अंतिम संस्कार पूरी वैदिक परंपराओं के अनुसार किया जाएगा। इसके लिए गांव के लोगों ने एक बड़ा आयोजन किया, जिसमें सभी धार्मिक रस्में निभाई गईं।
बंदर की शवयात्रा मंदिर के पास स्थित उस स्थान तक निकाली गई, जहां वह अक्सर बैठता था। इस यात्रा के दौरान ढोल-ताशे बजाए गए और लोग श्रद्धा से उसे अंतिम विदाई देने के लिए जुटे थे। शवयात्रा में गांव के कई लोग रोते हुए शामिल हुए, और सभी ने बंदर की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थनाएँ कीं।
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बंदर की मौत के बाद कराया मुंडन संस्कार
गांववासियों का मानना था कि इस बंदर का स्थान उनके परिवार के सदस्य जैसा था। इसलिए, एक विशेष रस्म के रूप में 11 हनुमान भक्तों ने इस बंदर का मुंडन संस्कार कराया। यह रस्म आम तौर पर किसी व्यक्ति के मृत्यु के समय की जाती है। मुंडन संस्कार के बाद, इन भक्तों ने बंदर का पिंडदान भी किया, जो हिंदू परंपरा के अनुसार मृतात्मा की शांति के लिए किया जाता है।
8 सितंबर को बंदर के अस्थियों को विधिपूर्वक मातृकुंडिया में विसर्जित किया गया। इसके बाद गांव में पगड़ी की रस्म भी निभाई गई, जो विशेष रूप से सम्मान और श्रद्धा का प्रतीक मानी जाती है। इस रस्म के बाद गांव में एक विशाल भंडारा आयोजित किया गया, जिसमें लगभग 900 लोग शामिल हुए। भंडारे में श्रद्धालुओं को भोजन दिया गया और साथ ही बंदर की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थनाएँ की गईं।
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साधारण बंदर से ज्यादा एक धार्मिक प्रतीक
चित्तौड़गढ़ के एक गांव में बंदर का किया अंतिम संस्कार। बंदर के साथ गांववासियों का संबंध केवल एक सामान्य जीव के रूप में नहीं था, बल्कि उसे एक धार्मिक और पवित्र प्राणी माना जाता था। उसकी दिनचर्या और व्यवहार ने उसे गांववासियों के दिलों में विशेष स्थान दिलवाया था। वह हमेशा मंदिर के पास रहता था और वहां आने वाले भक्तों के साथ घुल-मिल कर रहता था। उसका विश्वास और भक्ति लोगों के दिलों में एक गहरी छाप छोड़ गया था।
गांव के बंटी सिंह और अन्य ग्रामीणों के अनुसार, यह बंदर साधारण बंदर नहीं था। उसकी दिनचर्या और आदतें इस बात को प्रमाणित करती थीं कि वह किसी दिव्य शक्तियों से जुड़ा हुआ था। वह मंदिर में नियमित रूप से आता और पूजा अर्चना में भाग लेता। जब वह श्रद्धालुओं की गोद में बैठता और उनके साथ खेलता, तो लोग इसे एक आशीर्वाद के रूप में मानते थे। जब उसकी मृत्यु हुई, तो उसका अंतिम संस्कार किया गया। जरूरी था।