/sootr/media/media_files/2025/10/07/bharatpur-2025-10-07-13-18-18.jpg)
Photograph: (the sootr)
Bharatpur. राजस्थान की उपजाऊ धरती ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि नवाचार और किसान की मेहनत मिलकर कैसे नए कीर्तिमान स्थापित कर सकते हैं। भरतपुर जिले के पीपला गांव के प्रगतिशील किसान दिनेश चंद तैनगुरिया ने इजराइल से मंगाए गए विशेष इजरायली कनक गेहूं से शानदार परिणाम हासिल किए हैं।
34 क्विंटल प्रति एकड़ का रिकॉर्ड उत्पादन कर उन्होंने साबित कर दिया कि मेहनत और विज्ञान के मेल से कृषि में नई राह खोली जा सकती है। अब उनके इस खास किस्म के गेहूं की मांग केवल राजस्थान के विभिन्न राज्यों से ही नहीं, बल्कि नेपाल तक से हो रही है।
इजरायली कनक की बढ़ती लोकप्रियता
तैनगुरिया ने बताया कि दो साल पहले उन्होंने इजराइल से इस विशेष गेहूं का बीज मंगवाया था। यह बीज उन्होंने लगभग 700 रुपए प्रति किलो की दर से खरीदा था। पहले साल ट्रायल के तौर पर इस बीज का उपयोग किया और परिणाम बेहतर मिलने के बाद उन्होंने इसे इस साल एक एकड़ में बोने का निर्णय लिया। इस एक एकड़ में उन्होंने 34 क्विंटल गेहूं का उत्पादन किया, जो शानदार उपलब्धि है। पारंपरिक गेहूं की वैरायटी से यह लगभग दोगुनी पैदावार है, जिससे दिनेश का यह प्रयास अब अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुका है।
भरतपुर मेले में बीजेपी जिलाध्यक्ष का स्वागत न होने पर बवाल, मेला अधिकारी से की तीखी बहस
विशेष गुण और फसल की गुणवत्ता
इजरायली कनक गेहूं के दाने का आकार अन्य गेहूं से काफी अलग है। यह दाना बड़ा, मोटा और लालिमा लिए हुए चमकदार होता है, जिससे इसे पकड़ते ही अलग पहचान मिल जाती है। साधारण गेहूं की बालियां लगभग 3-4 इंच की होती हैं, जबकि इजरायली कनक की बालियां 6 से 12 इंच तक की होती हैं। पौधे की ऊंचाई भी अधिक होती है और इसके तने की मोटाई ऐसी होती है कि यह हवा और बारिश के दौरान गिरता नहीं है। इससे फसल को नुकसान होने की संभावना बहुत कम हो जाती है।
फसल के बढ़ने की प्रक्रिया
इस विशेष किस्म की फसल को 125 दिनों में पकने के लिए चारे और पानी की आवश्यकता होती है। पहला पानी अंकुरण के बाद, दूसरा बढ़ने के दौरान, तीसरा फूल आने के समय और चौथा दाना बनने के समय दिया जाता है। इस फसल की बुवाई का सबसे उपयुक्त समय 25 अक्टूबर से 15 नवंबर तक है।
मोती महल भरतपुर झंडा विवाद में नया मोड़, रात को गेट तोड़ कर घुसे लोग, नहीं लगा पाए पुराना झंडा
मांग बढ़ी और अंतरराष्ट्रीय पहचान
तैनगुरिया का बीज झारखंड, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश (अलीगढ़) और नेपाल तक भेजा जा चुका है। हाल ही में सऊदी अरब से भी बीज की मांग आई है, जहां भारतीय किसान इसे प्राप्त करने के इच्छुक हैं। एक छोटे से गांव का यह बीज अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना रहा है और देशभर में किसान इसकी फसल लगाने के लिए उत्साहित हैं।
Rajasthan में नहीं थम रहा मोतीमहल भरतपुर झंडा विवाद, अब क्या हुआ ?
आत्मनिर्भरता की ओर कदम
तैनगुरिया मानते हैं कि यदि किसान नई तकनीक अपनाने से झिझकेंगे नहीं तो खेती में बदलाव निश्चित है। उनका कहना है कि बीज बहुत हैं, लेकिन सही बीज वही है, जो उत्पादन और वजन दोनों में बढ़ोतरी करे। यह थोड़ा महंगा हो सकता है, लेकिन एक बार इस बीज को बोने के बाद किसान अगली बार खुद बीज रख सकता है। यह असली आत्मनिर्भरता है। भरतपुर और आसपास के क्षेत्रों में तैनगुरिया की पहल को अब एक मॉडल के रूप में देखा जा रहा है। उनके खेत पर कई किसान आकर इस नई वैरायटी को देख चुके हैं और बीज खरीदने के बारे में जानकारी ले रहे हैं।