कोटा चंबल रिवर फ्रंट : 79 टन वजनी घंटी रच सकती है इतिहास, उसे सफेद हाथी बता रहे मंत्री

राजस्थान के कोटा के चंबल रिवर फ्रंट पर स्थित देश की सबसे बड़ी घंटी दो साल से सांचे में फंसी हुई है। विशेषज्ञों की कमी और हादसे के कारण यह अभी तक बाहर नहीं निकल पाई है। ऐतिहासिक घंटी खुद इतिहास बनने जा रही है।

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Amit Baijnath Garg
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kota river front bell

Photograph: (the sootr)

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Kota. राजस्थान के कोटा शहर में चंबल रिवर फ्रंट पर स्थापित की जाने वाली 79 टन वजनी देश की सबसे बड़ी सिंगल पीस कास्टिंग घंटी पिछले दो साल से सांचे में फंसी हुई है। इस घंटी को आकार देने में 13 धातुओं का इस्तेमाल किया गया था और इसे पूरी दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे मजबूत घंटियों में गिना गया था, लेकिन अब तक इसे सांचे से बाहर निकालने में कोई सफलता नहीं मिल पाई है।

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घंटी का ऐतिहासिक महत्व

इस घंटी का व्यास 8.5 मीटर और ऊंचाई 9.25 मीटर है और इसका वजन लगभग 79,000 किलोग्राम है। इंजीनियरों का दावा था कि यह घंटी जब बजेगी तो ॐ की ध्वनि उत्पन्न होगी, जिसे आठ किलोमीटर तक सुना जा सकेगा। इसे दुनिया की सबसे मजबूत घंटियों में शामिल किया गया था।

घंटी के निर्माण में विशेषज्ञों की भूमिका

घंटी का निर्माण करने के लिए 200 से ज्यादा विशेषज्ञ और 1000 कर्मचारियों की टीम काम कर रही थी। 17 अगस्त 2023 को जब धातु को सांचे में ढाला गया, तो यह प्रक्रिया बेहद चुनौतीपूर्ण रही और इसमें लगभग 60 मिनट का समय लगा।

सांचे से बाहर निकलने में विशेषज्ञों की कमी

राजस्थान सरकार के यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने चंबल रिवर फ्रंट का दौरा करते हुए घंटी को लेकर बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि घंटी को सांचे से बाहर निकालने के लिए तकनीकी विशेषज्ञ नहीं मिल पा रहे हैं। अगर यह प्रक्रिया ऐसे ही चलती रही, तो घंटी का ढांचा खंडहर की तरह रह जाएगा।

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रिवर फ्रंट की स्थिति पर चिंता

यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने इसे सफेद हाथी बताते हुए कहा कि कोटा चंबल रिवर फ्रंट पर हर महीने करीब डेढ़ करोड़ रुपए का खर्च हो रहा है। इस पर नए आय स्रोत तलाशे जा रहे हैं। उन्होंने इसके लिए पिछली गहलोत सरकार को भी कोसा है।

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हादसा और जान का नुकसान

2023 में घंटी को सांचे से बाहर निकालने के प्रयास के दौरान एक बड़ा हादसा हुआ, जिसमें कास्टिंग इंजीनियर देवेंद्र आर्य और एक मजदूर की जान चली गई। इस घटना के बाद से घंटी को बाहर निकालने की प्रक्रिया पूरी तरह से ठप हो गई है।

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भारी संसाधन और खर्च

इस परियोजना पर अब तक लगभग 19 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं और 200 से अधिक विशेषज्ञों और 1000 कर्मचारियों की टीम ने इस पर काम किया। हालांकि इस बड़ी और मजबूत घंटी के निर्माण के बाद भी सांचे से बाहर निकालने में आ रही दिक्कतें इस परियोजना की सफलता पर सवाल उठा रही हैं।

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79 टन वजनी घंटी रच सकती है इतिहास

वजन : 79,000 किलोग्राम
व्यास : 8.5 मीटर
ऊंचाई : 9.25 मीटर

मुख्य बिंदु

  • घंटी को सांचे से बाहर निकालने के लिए आवश्यक तकनीकी विशेषज्ञों की कमी और एक दुर्घटना के कारण प्रक्रिया में काफी देरी हो रही है।
  • इस घंटी के निर्माण में 200 से अधिक विशेषज्ञ और 1000 कर्मचारियों ने काम किया था और अब तक इस परियोजना पर लगभग 19 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं।
  • इंजीनियरों ने दावा किया था कि इस घंटी के बजने से ॐ की ध्वनि निकलेगी, जिसे 8 किलोमीटर तक सुना जा सकेगा।
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