राजस्थान में साइबर ठगी का बढ़ता खतरा: डिजिटल अरेस्ट के जाल में फंसा रहे हैं बुजुर्गों को

राजस्थान में साइबर ठगी बढ़ी। 50 से 73 साल के लोग विशेष रूप से टारगेट हो रहे हैं। डेढ़ साल में 300 से अधिक ऐसे मामले सामने आए हैं, 50 करोड़ से अधिक की ठगी हुई है। सुरक्षा उपाय जानें।

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Gyan Chand Patni
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आजकल साइबर अपराध (Cyber Crime) का एक नया रूप सामने आया है, जिसे "डिजिटल अरेस्ट" कहा जा रहा है। खासकर 50 से 73 वर्ष आयु वर्ग के लोगों को ठगों ने अपना निशाना बनाया है। राजस्थान में पिछले डेढ़ साल में 300 से अधिक ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें 50 करोड़ से ज्यादा की ठगी की गई।

बैंक खातों की जानकारी पहले ही ले लेते हैं साइबर ठग

इस अपराध का एक प्रमुख पहलू यह है कि ठग पहले बैंक खातों की जानकारी प्राप्त करते हैं और फिर जिन खातों में अधिक धन होता है, उन्हें टारगेट करते हैं। ठग पहले बैंक अकाउंट्स को हैक करते हैं और फिर बुजुर्गों से संपर्क करके उन्हें फर्जी अफसर या एजेंसी के रूप में पेश आते हैं। इसके बाद बुजुर्गों से रकम प्राप्त करने के लिए उनका विश्वास जीतने की कोशिश करते हैं।

राजस्थान में डिजिटल अरेस्ट के जाल में फंस रहे हैं बुजुर्ग। इस बारे में दैनिक भास्कर में पत्रकार शिव कुमार शर्मा की विशेष स्टोरी भी प्रकाशित हुई हैं।

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साइबर ठगों के चार प्रमुख जाल

साइबर ठगी Cyber ​​fraud करने के तरीके दिन-प्रतिदिन बदलते जा रहे हैं। यहां उन चार प्रमुख जालों का विवरण दिया गया है, जिनका ठग अक्सर इस्तेमाल करते हैं:

1. फर्जी कॉल और सरकारी एजेंसी के नाम पर धमकी देना

पहला तरीका है ठग खुद को सीबीआई, ईडी या पुलिस अफसर बताकर फोन कॉल करते हैं। वे पीड़ितों पर मनी लॉन्डिंग, ड्रग्स तस्करी या देशविरोधी गतिविधियों के आरोप लगाते हैं। ठग यह दावा करते हैं कि आरोपी के खिलाफ केस दर्ज किया गया है और जल्दी ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। इस स्थिति में बुजुर्ग लोग डर के मारे तुरंत पैसे ट्रांसफर करने या जरूरी दस्तावेज साझा करने को तैयार हो जाते हैं।

2. वीडियो इंट्रोगेशन

दूसरे तरीके में, ठग वीडियो कॉल के माध्यम से बुजुर्गों को एक इंट्रोगेशन (पुलिस पूछताछ) का हिस्सा बनाते हैं। वे कॉल को तब तक जारी रखते हैं, जब तक पीड़ित को पूरी तरह से डर और भ्रमित नहीं कर लेते। इस दौरान, ठग बुजुर्गों से धन और अन्य व्यक्तिगत जानकारी लेने में सफल हो जाते हैं।

3. वर्चुअल कैद का खेल

तीसरे तरीके में, ठग पीड़ितों से अपने फोन का कैमरा ऑन करने और बातचीत न करने का दबाव डालते हैं। वे पीड़ितों को यह भरोसा दिलाते हैं कि उन्हें फर्जी गिरफ्तारी से बचने के लिए यह सब करना होगा। इस खेल में ठग अंततः पीड़ित से बैंक डिटेल्स और ओटीपी (OTP) प्राप्त कर लेते हैं।

4. मोबाइल पर कंट्रोल 

चौथा तरीका है जब ठग किसी एनी डेस्क जैसे ऐप्स को डाउनलोड करने के लिए बुजुर्गों को मजबूर करते हैं। इसके बाद, वे पीड़ित के मोबाइल का पूरा कंट्रोल ले लेते हैं और उनके बैंक अकाउंट्स से पैसे ट्रांसफर कर लेते हैं।

जयपुर में डिजिटल अरेस्ट की घटनाएं

केस 1: 67 वर्षीय व्यापारी से 50 लाख की ठगी

जयपुर के बजाज नगर निवासी एक 67 वर्षीय व्यापारी को ठगों ने फर्जी पासपोर्ट और हेरोइन के आरोप में 50 लाख रुपए की ठगी की। उन्होंने यह रकम 9 अलग-अलग राज्यों में ट्रांसफर करवाई।

केस 2: 75 वर्षीय बुजुर्ग से मनी लॉन्डिंग का डर दिखाकर ठगी

मानसरोवर निवासी एक 75 वर्षीय बुजुर्ग को ठगों ने मनी लॉन्डिंग का डर दिखाकर 23 लाख रुपए की ठगी की।

केस 3: 70 वर्षीय बुजुर्ग से सीबीआई का डर दिखाकर 56 लाख की ठगी

झोटवाड़ा के 70 वर्षीय बुजुर्ग से ठगों ने एनआईए-सीबीआई का डर दिखाकर 56 लाख रुपए विभिन खातों में ट्रांसफर करवा लिए।

क्यों मुश्किल है साइबर ठगों के खिलाफ कार्रवाई?

साइबर ठगों के खिलाफ कार्रवाई करना इसलिए मुश्किल हो जाता है क्योंकि वे कुछ उन्नत तकनीकों का उपयोग करते हैं, जैसे कि बीओआईपी (BOIP) और बीपीएन (VPN) तकनीक, जो उनकी असली लोकेशन को छुपा देती है।

ठग इंटरनेट कॉलिंग का उपयोग करके अपनी लोकेशन छिपाते हैं और ऐसे अपराधों का पता लगाना कठिन हो जाता है। इसके अलावा, क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) जैसे तरीकों का इस्तेमाल करके वे पैसों के ट्रैकिंग को भी बेहद मुश्किल बना देते हैं।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाले कई गिरोह इस साइबर अपराध में शामिल हैं, जिससे कानून प्रवर्तन एजेंसियों को कार्रवाई करने में कठिनाई होती है।

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 साइबर ठगी से बचाने के उपाय

साइबर एक्सपर्ट्स का मानना है कि सबसे महत्वपूर्ण उपाय जागरूकता है। यदि लोगों ठगी के तरीकों के बारे में सही जानकारी दी जाए, तो वे इससे बच सकते हैं।

संदिग्ध कॉल आए तो क्या करें?
यदि आपको किसी संदिग्ध कॉल का सामना हो, तो तुरंत साइबर हेल्पलाइन 1930 पर कॉल करें या cybercrime.gov.in पर शिकायत दर्ज करें।

अजनबी कॉल पर क्या न करें?
किसी भी अजनबी कॉल पर अपना बैंक डिटेल, आधार, पैन या ओटीपी न दें।

स्क्रीन शेयरिंग ऐप से बचें
एनी डेस्क और टीम वीवर जैसे स्क्रीन शेयरिंग ऐप्स को डाउनलोड न करें।

FAQ

1. लोगों को साइबर ठगी से कैसे बचाया जा सकता है?
साइबर ठगी से बचने के लिए लोगों को सबसे पहले जागरूक करना जरूरी है। संदिग्ध कॉल और वेबसाइट से दूर रहना चाहिए और अपनी व्यक्तिगत जानकारी को सुरक्षित रखना चाहिए।
2. क्या साइबर अपराध के लिए पुलिस से संपर्क करना चाहिए?
जी हां, अगर किसी साइबर अपराध का शिकार हो जाएं तो तुरंत 1930 पर कॉल करें या cybercrime.gov.in पर शिकायत दर्ज करें। पुलिस या साइबर विशेषज्ञ आपकी मदद करेंगे।
3. साइबर ठग किस तरह से बैंक डिटेल्स प्राप्त करते हैं?
साइबर ठग पहले फोन कॉल या वीडियो कॉल के माध्यम से पीड़ितों से बैंक डिटेल्स, ओटीपी और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी हासिल करते हैं। वे उन्हें डराकर या भ्रमित करके जानकारी प्राप्त करते हैं।
4. क्या एनी डेस्क जैसे ऐप्स से बचना चाहिए?
हां, एनी डेस्क और अन्य स्क्रीन शेयरिंग ऐप्स से बचना चाहिए, क्योंकि ये ठगों को आपके मोबाइल पर पूरा कंट्रोल देने का रास्ता देते हैं।
5. ठगी के बाद क्या करना चाहिए?
अगर आप ठगी का शिकार हो जाएं, तो तुरंत अपने बैंक से संपर्क करें और 1930 हेल्पलाइन पर रिपोर्ट करें।

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