पूर्व उपराष्ट्रपति धनखड़ के दिन की शुरुआत योग से, सुबह पढ़ना तो शाम को खेल रहे टेबल टेनिस

पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ कहते हैं कि उन्हें आराम की जरूरत है, लेकिन राजनीति के जानकार मानते हैं कि उनकी कोई नई चाल राजस्थान और हरियाणा की राजनीति में हलचल मचा सकती है।

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Amit Baijnath Garg
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jagdeep dhankar

Photograph: (the sootr)

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पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ इस्तीफे के बाद दिल्ली के छत्तरपुर स्थित चौटाला परिवार के फार्म हाउस में रह रहे हैं। पहले दिन उनके इस कदम ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचाई, वहीं अब उनकी नई दिनचर्या चर्चा का विषय बनी हुई है।

फार्म हाउस में धनखड़ का दिन सुबह जल्दी योग से शुरू होता है। नाश्ते के बाद वे कुछ समय अखबारों और किताबों के साथ बिताते हैं। दोपहर में परिवार के साथ साधारण भोजन और शाम को टेबल टेनिस खेलना उनकी नियमित दिनचर्या का हिस्सा है। करीबी बताते हैं कि वह इन दिनों कठिन राजनीतिक शेड्यूल से दूरी बनाकर मानसिक सुकून तलाश रहे हैं।

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परिवार को प्राथमिकता दे रहे

लंबे समय तक संवैधानिक पदों की व्यस्तताओं के बाद अब धनखड़ परिवार को प्राथमिकता दे रहे हैं। पोते-पोतियों संग समय बिताना उन्हें सबसे प्रिय लगता है। करीबी कहते हैं कि यह उनके जीवन का पहला ऐसा मौका है, जब वह राजनीति और संवैधानिक दायित्वों से पूरी तरह दूर हैं। इस्तीफे के बाद 42 दिन गुजर गए, लेकिन धनखड़ ने कोई सार्वजनिक कार्यक्रम अटेंड नहीं किया। न कोई राजनीतिक बयान दिया और ना ही किसी बड़ी बैठक में हिस्सा लिया। उनकी चुप्पी को लेकर अटकलें तेज हैं। 

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राजनीति में वापसी या संन्यास?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि धनखड़ का इतना चुप रहना असामान्य है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या वह पूरी तरह सक्रिय राजनीति से किनारा करना चाहते हैं? या चौटाला परिवार के सहारे जाट राजनीति में दोबारा वापसी की रणनीति बना रहे हैं? क्या उनकी चुप्पी किसी बड़े फैसले से पहले का मौन है? धनखड़ की चौटाला परिवार से नजदीकियां पुरानी हैं। झुंझुनूं से पहला चुनाव जितवाने वाले देवीलाल को वे हमेशा अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं। यही वजह है कि आज भी उनका पहला सहारा वही परिवार है।

फिलहाल सुकून, आगे राजनीति?

धनखड़ कहते हैं कि उन्हें आराम की जरूरत है, लेकिन राजनीति के जानकार मानते हैं कि उनकी सियासी यात्रा अधूरी है। लोकसभा, विधानसभा, राज्यपाल और उपराष्ट्रपति हर पद पर वे पहुंचे पर किसी भी सफर को अंत तक नहीं ले जा सके। इसलिए आने वाले समय में उनकी कोई नई चाल राजस्थान और हरियाणा की राजनीति में हलचल मचा सकती है।

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धनखड़ की चुप्पी और समीकरण

पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद से जारी चुप्पी अब राजनीतिक हलकों में सबसे बड़ा सवाल बन गई है। दिल्ली के छत्तरपुर स्थित चौटाला फार्म हाउस में आराम फरमा रहे धनखड़ फिलहाल किसी गतिविधि में नजर नहीं आ रहे, लेकिन उनकी खामोशी ने भाजपा और क्षेत्रीय राजनीति दोनों में हलचल पैदा कर दी है।

भाजपा में साइडलाइन या रणनीति?

धनखड़ को भाजपा ने उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचाया, लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि संवैधानिक पद छोड़ने के बाद पार्टी में उन्हें उतना महत्व नहीं मिल रहा। राजस्थान की राजनीति में भाजपा ने गुलाबचंद कटारिया, गजेंद्र सिंह शेखावत और वसुंधरा राजे जैसे चेहरों को प्राथमिकता दी है, जबकि धनखड़ को किनारे रखा गया। यही वजह है कि अब उनकी चुप्पी को साइडलाइन होने का परिणाम भी माना जा रहा है। हालांकि कुछ विश्लेषक कहते हैं कि धनखड़ रणनीतिक मौन साधकर सही मौके का इंतजार कर रहे हैं।

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हरियाणा का जाट समीकरण

धनखड़ का राजनीतिक कॅरियर हरियाणा से भी गहराई से जुड़ा रहा है। देवीलाल के सहारे राजनीति में आए और चौटाला परिवार से गहरे रिश्ते अब भी कायम हैं। हरियाणा की मौजूदा राजनीति में जाट समाज का असंतोष साफ दिख रहा है। ऐसे में धनखड़ अगर चौटाला के साथ खड़े होते हैं, तो हरियाणा की राजनीति में बड़ा फेरबदल संभव है। उनकी छवि जाट नेता के तौर पर दोनों राज्यों हरियाणा और राजस्थान में खासा असर डाल सकती है।

राजस्थान में संभावनाएं

राजस्थान में भाजपा का फोकस फिलहाल वसुंधरा राजे और केंद्रीय नेताओं पर है। मगर मारवाड़ और शेखावटी में धनखड़ का प्रभाव माना जाता है। अगर वे सक्रिय राजनीति में लौटते हैं, तो भाजपा में पावर बैलेंस बदल सकता है। वसुंधरा समर्थक खेमे को नई चुनौती मिल सकती है। कांग्रेस और अन्य दलों में भी जाट वोट बैंक की नई गणना करनी होगी।

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चुप्पी से उठे सवाल

धनखड़ के इस्तीफे को 42 दिन से अधिक हो गए हैं। न मीडिया में बयान, ना राजनीतिक बैठक, ना सार्वजनिक कार्यक्रम। सियासी जानकारों की नजर में यह असामान्य है। क्या वे नाराज हैं? या चौटाला परिवार के साथ नया मोर्चा खड़ा करने की तैयारी में हैं? या फिर यह सब केवल आराम का दौर है और सही समय पर वे दोबारा सक्रिय होंगे?

भविष्य की ओर इशारा?

राजनीतिक पंडित मानते हैं कि धनखड़ का मौन तूफान से पहले की शांति भी हो सकता है। उनके पास संवैधानिक अनुभव, जाट राजनीति की पकड़ और चौटाला परिवार का सहारा है। ऐसे में आने वाले विधानसभा चुनावों या 2029 की राजनीति में उनकी भूमिका अहम हो सकती है।

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