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Photograph: (the sootr)
राजस्थान में प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण-पत्र के नाम पर एक बड़ी धोखाधड़ी सामने आई है। प्रदेश में सैंकड़ों वाहन मालिक हरियाणा से फर्जी तरीके से प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण-पत्र प्राप्त कर रहे हैं। यह काम ऑनलाइन फोटो भेजकर और कुछ मिनटों में पूरा हो रहा है। सिर्फ वाहन की फोटो मोबाइल पर भेजने और ऑनलाइन भुगतान करने से हरियाणा से प्रमाण पत्र प्राप्त किया जा सकता है।
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कैसे हुआ खुलासा?
जांच में यह खुलासा हुआ कि जयपुर के परिवहन कार्यालय से सीज किए गए वाहनों और आरटीओ उड़नदस्ते द्वारा भेजी गई वाहन की फोटो हरियाणा भेजी गई थी। वहां से 15 मिनट में फर्जी प्रदूषण प्रमाण-पत्र जारी कर दिए गए। इस प्रक्रिया को राजस्थान के प्रादेशिक अधिकारी के सामने सबूत के तौर पर सौंपा गया है। अनुमान के मुताबिक, राजस्थान में प्रतिदिन 15,000 से अधिक फर्जी प्रमाण-पत्रों की आपूर्ति हो रही है।
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हरियाणा में सख्ती का अभाव
राजस्थान में प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण-पत्र बनाने के लिए वाहनों को प्रमाण-पत्र केंद्र में लाकर प्रदूषण की जांच करवानी पड़ती है। इसके अलावा, विभाग ने पेट्रोल पम्प और वैन के जरिए प्रमाण-पत्र बनाने के लिए लाइसेंस जारी कर रखे हैं, जिनका सॉफ्टवेयर एनआईसी (NIC) से लिंक है, लेकिन हरियाणा में इस प्रक्रिया पर कोई सख्ती नहीं है। इसी का फायदा उठाकर फर्जी प्रमाण-पत्र बनाए जा रहे हैं।
सबसे ज्यादा शिकार कॉमर्शियल वाहन
यह फर्जीवाड़ा राजस्थान के कई शहरों में हो रहा है, लेकिन सबसे ज्यादा कॉमर्शियल वाहनों में देखा गया है। जयपुर, कोटपूतली, बहरोड़, शाहपुरा, अलवर और भरतपुर जैसे शहरों में फर्जी प्रमाण-पत्र बनाने के एजेंट सक्रिय हैं। ये एजेंट बड़ी संख्या में वाहनों की फोटो भेजकर एक साथ हरियाणा से फर्जी प्रमाण-पत्र बनवा रहे हैं।
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सीज वाहनों पर भी बन रहे फर्जी प्रमाण-पत्र
यहां तक कि उन वाहनों पर भी फर्जी प्रमाण-पत्र बन रहे हैं, जिन्हें पहले से आरटीओ द्वारा सीज किया गया है। उदाहरण के तौर पर, वाहन संख्या डीएल 3सी बीई 5296 जो पिछले एक साल से जयपुर के प्रादेशिक कार्यालय में खड़ा था, उसका प्रदूषण प्रमाण-पत्र हरियाणा से फर्जी तरीके से बनकर आया है। इसी तरह वाहन संख्या आरजे 14 यूडी 4295 के बारे में भी ऐसा ही हुआ, जो आरटीओ उड़नदस्ते का वाहन था।
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समझौते और सख्ती की जरूरत
यह पूरा मामला राजस्थान में विभागीय सख्ती की कमी और हरियाणा में किसी भी प्रकार की निगरानी न होने का परिणाम है। इन घटनाओं ने राजस्थान के परिवहन विभाग और प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। विभाग को जल्द ही इस फर्जीवाड़े को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की जरूरत है।