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Photograph: (the sootr)
राकेश कुमार शर्मा @ जयपुर
Jaipur. दुनिया में जेन जेड (GEN-Z) की वजह से तनाव हो रखा है। चाहे वह नेपाल हो या इंडोनेशिया या यूरोप के देश। हर तरफ GEN-Z अपने अधिकारों और सुशासन के लिए सड़क पर संघर्ष करके सरकारें हिला रहा है, लेकिन भारत में GEN-Z की स्थिति ठीक उलट दिख रही है।
भारत में जेन जेड तनाव में है। यह तनाव है कॅरियर संबंधित एग्जाम का। इस वर्ग के काफी छात्र तो परीक्षा व कॅरियर के तनाव को झेलकर आगे निकल जाते हैं, लेकिन GEN-Z में हजारों किशोरवय के छात्र ऐसे भी हैं, जो कॅरियर का प्रेशर झेल नहीं पाते हैं और फिर अपने जीवन को समाप्त कर लेते हैं।
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चौंकाने वाली है एनसीआरबी की रिपोर्ट
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, देश में परीक्षा व कॅरियर का तनाव झेलकर खुद की जान गंवाने वाले किशोरवय के छात्रों की तादाद बढ़ रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2023 में देश भर में 13,892 स्टूडेंट ने अपनी जान दे दी। ये सभी 15 से 18 साल की उम्र के थे। इनमें से 685 स्टूडेंट राजस्थान के हैं।
राजस्थान में भी सबसे ज्यादा छात्रों ने सुसाइड कोटा में की है। इस अवधि में 29 बच्चों ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली है। किसी ने फांसी का फंदा लगाकर जान दी तो कोई ऊंचाई से कूदकर मरा। कोई पानी में कूदा तो किसी ने जहरीला पदार्थ खा लिया। कोटा के बाद जयपुर में सात तो जोधपुर के चार छात्रों ने सुसाइड किया है।
आत्महत्या करने वाले कोटा के कोचिंग छात्रों में से 92.5 फीसदी नीट एस्पायरेंट थे। जान देने वाले अधिकतर किशोरों की उम्र महज 17-18 वर्ष थी। कोटा में मरने वाले अधिकांश छात्र दूसरे राज्यों उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल, ओडिशा और दिल्ली के थे। GEN-Z के युवा उसे कहा जा रहा है, जो 1997 से 2012 के बीच पैदा हुए और अपने कॅरियर को लेकर ज्यादा ही संजीदा है।
मेट्रो सिटी में भी हालात भयावह
कोटा ही नहीं, दूसरे बड़े शहरों में भी स्टूडेंट की मौत चिंताजनक है। आईटी सिटी के तौर पर विख्यात बेंगलूरु में 66 छात्रों ने सुसाइड की तो पुणे में 29 स्टूडेंट ने अपना जीवन समाप्त कर लिया। रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकांश छात्र पढ़ाई के तनाव को झेल नहीं पाए। घर से दूर दूसरे शहर में अकेले पढ़ाई करते वक्त छात्र पढ़ाई के साथ कॅरियर से तनाव में रहे और फेल होने के डर के चलते अधिकांश ने सुसाइड कर लिया। मरने वाले अधिकांश छात्र नीट, जेईई के थे। हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहे थे।
फेल हो गए तो माता-पिता व रिश्तेदार क्या कहेंगे। माता-पिता ने पढ़ाई पर लाखों खर्च किए, लेकिन बेटा-बेटी कॅरियर नहीं बना पाए। इस तरह के तनावपूर्ण ख्यालों के बीच छात्र-छात्राएं पढ़ाई तो कर रहे हैं, लेकिन फेल होने का डर भी मन में बैठा हुआ है। फिर यहीं डर धीरे-धीरे इनके मन-मस्तिष्क पर इतना हावी हो जाता है कि स्टूडेंट को जीने की तमन्ना खत्म होने लगती है। यही कारण है कि उचित मार्गदर्शन नहीं मिलने के कारण बहुत से बच्चे अपनी जीवन को खत्म कर रहे हैं।
लड़के हैं ज्यादा तनाव में
देश भर में सुसाइड करने वाले स्टूडेंट में से लड़कों की तादाद ज्यादा है। रिपोर्ट के मुताबिक, 13,892 स्टूडेंट में से 7330 लड़कों ने खुदखुशी की। वहीं इस अवधि में लड़कियों की तादाद 6559 रही। तीन ट्रांसजेंडर ने भी सुसाइड किया। राजस्थान में सुसाइड के 685 केस में से 433 मेल हैं, तो 252 फीमेल। हालांकि लड़कियों की तादाद भी बढ़ रही है, जो समाज के लिए एक गंभीर चिन्ता का विषय है।
कॅरियर का तनाव लड़के व लड़कियां दोनों पर ही हावी हो रहा है। खासकर अभिभावकों का लड़के पर कॅरियर बनाने का ज्यादा दबाव रहता है। दसवीं-बारहवीं कक्षा से नीट, जेईई जैसी परीक्षाओं की पढ़ाई शुरू करवा देते हैं। चाहे बच्चे में रुचि हो या नहीं हो। यही कारण है कि अभिभावकों की जिद में बच्चा कॅरियर बनाने में लग जाता है, लेकिन जब वह तनाव झेल नहीं पाता है तो अपनी लाइफ को खत्म कर देता है।
युवा भी फेल होने के डर से डरे हुए
स्टूडेंट ही नहीं, राजस्थान के युवा भी प्रतियोगी परीक्षाओं के तनाव को झेल रहे हैं। उनमें भी परीक्षाओं में फेल होने का डर समाया हुआ है। एनसीआरबी 2023 की रिपोर्ट बता रही है कि राजस्थान में वर्ष 2023 में 5552 लोगों ने सुसाइड किया, जिनमें 2415 युवा ऐसे थे, जिन्होंने परीक्षा में फेल होने या फेल होने के डर के कारण सुसाइड कर लिया है।
मरने वाले युवाओं में 1383 मेल और 1032 फीमेल थी। इन सभी की उम्र 20 से 35 साल की थी। वे लंबे समय से सरकारी नौकरी की चाह में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे, लेकिन सफल नहीं हो पा रहे थे। ऐसे में दुखी होकर इन्होंने सुसाइड कर लिया। दूसरे राज्यों में भी स्थिति नाजुक है। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 2048 स्टूडेंट ने जान दे दी तो आंध्रप्रदेश में 1459, मध्यप्रदेश में 1373 छात्रों एवं तमिलनाडु में 1339 छात्रों ने सुसाइड कर लिया। देश में 8 फीसदी दर से सुसाइड केस बढ़ रहे हैं।
लगातार बढ़ रहे हैं सुसाइड के मामले
वर्ष 2023 में देशभर में कुल 1,71,418 लोगों ने सुसाइड की, जिनमें युवा, छात्र, किसान, गृहिणी समेत सभी वर्ग के लोग शामिल थे। सुसाइड केस में सर्वाधिक वृद्धि छात्रों की रही। पिछले 10 साल के आंकड़े बता रहे हैं कि छात्रों में सुसाइड दर 65 फीसदी दर से बढ़ी है। 2013 में देशभर में 8,423 छात्रों ने सुसाइड किया था। वहीं 2023 में यह आंकडा बढ़कर 13,892 तक पहुंच गया है, जो काफी चिंताजनक है।
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सुप्रीम कोर्ट भी जता चुका है चिंता
देश में स्टूडेंट और युवाओं के बढ़ते सुसाइड केस पर सुप्रीम कोर्ट भी चिंता जता चुका है। साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों को इसकी रोकथाम के लिए कई दिशा-निर्देश भी दिए हैं। कोर्ट के निर्देशों पर राज्य सरकारों ने कार्य तो शुरू किया है, लेकिन जमीनी तौर पर स्थिति कमजोर ही है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर निशुल्क हेल्पलाइन टेलीमानस भी तनाव झेल रहे युवाओं और स्टूडेंट की समझाइश कर रही है।
वहीं हॉस्टल के कमरों में पंखे में एक डिवाइस लगाई गई है, जिससे फांसी लगाकर सुसाइड करने वाले छात्रों के बारे में सूचना मिल जाती है। हालांकि डिवाइस के बाद भी फांसी के मामले सामने आ चुके हैं। वहीं कोचिंग सेंटर में काउंसलिंग सेंटर खोले गए हैं। हॉस्टल में भी काउंसलिंग की जा रही है। कोटा में तो कलेक्टर, एसपी भी कोचिंग संस्थानों में तनाव मुक्त होकर पढ़ाई करने की सीख दे रहे हैं। तनाव होने या किसी की तरह परेशानी होने पर टीचर्स, पुलिस या माता-पिता से बात करने को कहा जा रहा है।
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माता-पिता न डालें अनावश्यक बोझ
मनोचिकित्सक डॉ. राकेश यादव का कहना है कि कुछ सालों से कॅरियर को लेकर बच्चों में काफी तनाव है। कॅरियर को लेकर बच्चे भी गंभीर हैं, तो माता-पिता का प्रेशर भी काफी है। परिजन बच्चों के कॅरियर के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। लाखों रुपए खर्च कर रहे हैं। चाहे बच्चे में मेडिकल या इंजीनियरिंग करने की क्षमता हो या नहीं हो, लेकिन माता-पिता की जिद में बच्चा जी-जान से जुट तो जाता है, लेकिन जब वह फेल हो जाता है तो हताश हो उठता है।
डॉ. यादव के अनुसार, उचित मार्गदर्शन नहीं मिलने पर ऐसे बच्चे सुसाइड तक कर लेते हैं। ऐसे में परिजनों को चाहिए कि वे बच्चों पर पढ़ाई या कॅरियर का अनावश्यक बोझ ना डालें। उन्हें मनमाफिक पढ़ाई करने दें, क्योंकि हर बच्चे का दिमाग मेडिकल व इंजीनियरिंग जैसी कठिन परीक्षाओं के तनाव को झेल नहीं सकता है। किसी बच्चे में तनाव या अवसाद के लक्षण दिखाई देते हैं, तो उसको मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक तक पहुंचाने में मदद करें। इससे बच्चे के दिमाग में आ रहे बुरे ख्यालों को दूर करने में काफी मदद मिलती है। कोचिंग सेंटर, स्कूल, हॉस्टल में काउंसलिंग की उचित व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि कमजोर व अवसाद में आए बच्चों को उचित सलाह मिल सके।
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एंटी हैंगिंग रॉड लगाने की सिफारिश
कोटा मेडिकल कॉलेज के फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग ने सुसाइड करने वाले बच्चों के परिजनों, दोस्तों, पुलिस और टीचर्स से वार्ता के बाद एक रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें उन्होंने माना है कि देश-दुनिया में कॅरियर को लेकर युवाओं में काफी कॉम्पीटिशन है। एक तरफ तो युवा कॅरियर में नई ऊंचाई छू रहे हैं, तो दूसरी तरफ कॅरियर के लिए स्टडी और एग्जाम का भारी प्रेशर है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा, प्रतियोगी परीक्षाओं का दबाव या फेल होने के डर के कारण कई छात्र तनाव झेल नहीं पाते हैं और खुदखुशी कर लेते हैं। सबसे ज्यादा आत्महत्या फांसी लेकर की गई। इसलिए डॉक्टरों ने सभी हॉस्टल के कमरों में एंटी हैंगिंग रॉड लगाने सिफारिश की है।