राजस्थान की सियासत में डसने की कहानी, पूनियां की किताब के विमोचन में राजनीति बनी सांप-सीढ़ी का खेल

सतीश पूनियां की किताब 'अग्निपथ नहीं जनपथ' ने राजस्थान की सियासत में नया मोड़ ला दिया। इस किताब का विमोचन एक बड़े राजनीतिक आयोजन के रूप में हुआ, जिसमें कई प्रमुख नेता उपस्थित रहे।

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Amit Baijnath Garg
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Jaipur. राजस्थान की राजधानी जयपुर में रविवार को भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और हरियाणा प्रभारी डॉ. सतीश पूनियां की पहली पुस्तक 'अग्निपथ नहीं जनपथ' का विमोचन हुआ। यह कार्यक्रम कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में आयोजित किया गया, जहां सियासत, संवाद और सियासी चुहलबाजी का शानदार मेल देखने को मिला। इस मौके पर पंजाब के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया, पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली, राजस्थान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ और भीलवाड़ा जिला प्रमुख बरजी बाई भील जैसे कई प्रमुख नेता मंच पर मौजूद थे।

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सियासी चुहलबाजी, सांप डसने वाली राजनीति

कार्यक्रम में सबसे ज्यादा चर्चा सियासी रणनीतियों और सत्ता की ओर बढ़ते कदमों पर रही। पूर्व नेता प्रतिपक्ष राठौड़ ने मंच से कहा कि पूनियां और उन्होंने सत्ता में आने से पहले ही सांप के डसने का सामना किया। उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा कि सांप तो हमें पहले ही डस चुका था, अब किताब लिखी गई तो मैं भी आलेख लिख रहा हूं, उम्मीद है मेरी किताब के विमोचन में भी कटारिया आएंगे। इस पर टीकाराम जूली ने व्यंग्य करते हुए कहा कि प्रदेश में इन दिनों सांप बहुत डस रहे हैं, जो राजनीति में ताजगी और मस्ती के संकेत थे। इस पर मदन राठौड़ ने कहा कि डसने के मामले में मेरा नाम भी जोड़ लीजिए।

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सोने के पिंजरे में कैद कर दिया : कटारिया

पंजाब के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया ने अपने संबोधन में कहा कि लोकतंत्र की खूबसूरती इसी में है कि नेता हर वक्त अग्निपरीक्षा देने को तैयार रहें। उन्होंने कहा कि हमारी पहचान पद से नहीं, जनता के बीच के कार्यकर्ता से है। पद आज है कल चला जाएगा, लेकिन कार्यकर्ता की पहचान कोई नहीं मिटा सकता। मैं महामहिम बन गया तो क्या जनता से दूर हो जाऊं? कार्यक्रम खत्म होते ही मैं फिर से कार्यकर्ता हो जाऊंगा। सबको लगता है मेरे मजे हैं, लेकिन मुझे सोने के पिंजरे में कैद कर दिया है। 

संघर्षों से जुड़ा भजनलाल सरकार का आधार

राठौड़ ने कार्यक्रम में पूनियां के संघर्षों को भजनलाल सरकार के जन्म का आधार बताते हुए कहा कि प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए जिन मुद्दों को पूनियां ने सड़क पर संघर्ष करते हुए उठाया, उसी पर आज भजनलाल सरकार की नींव खड़ी है। उनका मानना था कि यह किताब न केवल राजनीति के छात्रों के लिए, बल्कि नए कार्यकर्ताओं के लिए भी प्रेरक साबित होगी। किताब का शीर्षक 'अग्निपथ नहीं जनपथ' राजनीति में सही दिशा दिखाता है, जिसमें संघर्ष से जनसेवा तक का रास्ता तय होता है।

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राजनीति में नॉलेज, संवाद और संवेदना जरूरी

पूनियां ने अपने संबोधन में कहा कि राजनीति में नॉलेज, संवाद और संवेदना तीनों का होना आवश्यक है। उन्होंने इस किताब को अपने विधायक कार्यकाल के अनुभवों का संकलन बताते हुए कहा कि यह राजनीति में संघर्ष, जनसेवा और संवाद की झलक पेश करती है। पूनियां ने आगे कहा कि यह उनकी पहली किताब है और जल्द ही दूसरी किताब भी आएगी, जिसमें उनके छात्र जीवन से लेकर अब तक की राजनीतिक यात्रा और पर्दे के पीछे की कई कहानियां दर्ज होंगी।

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बरजी बाई भील का प्रेरणादायक संदेश

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भीलवाड़ा जिला प्रमुख बरजी बाई भील ने कहा कि संविधान की किताब की बदौलत ही वह बकरियां चराने से जिला प्रमुख बन पाई। उन्होंने कहा कि पहले किताबें अलमारियों में बंद रहती थीं, लेकिन जब किताबों के ताले खुले, तो हमारे जैसे महिलाओं को भी आगे बढ़ने का रास्ता मिला। उनका यह संदेश महिलाओं को प्रेरित करने वाला था, जो समाज में अपनी भूमिका को और मजबूत करने के लिए संघर्ष कर रही हैं।

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वहां निगलने का खेल चल रहा : जूली

कार्यक्रम से आने के बाद नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने कहा कि मैं सतीश पूनियां के पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में गया था। वहां मैं विपक्ष के नेता के तौर पर गया था, लेकिन वहां मंच पर तो मुझे ये देखने को मिला कि आधे मंच का मुझे समर्थन है। वहां तो अलग ही सांप और सीढ़ी का खेल चल रहा था। ये तो निजी कार्यक्रम था वरना आपको बहुत कुछ मिल जाता। वहां पर तो ये बात चल रही थी कि ये उसको निगल गया। वो उसको निगल गया। वहीं एक अलग ही खेल चल रहा है। 

FAQ

1. सतीश पूनियां की किताब 'अग्निपथ नहीं जनपथ' का मुख्य संदेश क्या है?
यह किताब राजनीति में संघर्ष, जनसेवा और संवाद की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाती है और यह बताती है कि व्यक्ति अपनी जीवन यात्रा में कैसे जनपथ पर पहुंचता है।
2. सतीश पूनियां ने अपनी किताब में कौन सी बातें साझा की हैं?
सतीश पूनियां ने इस किताब में अपने विधायक कार्यकाल के अनुभवों को संकलित किया है, जिसमें राजनीति के संघर्ष और जनसेवा की झलक है।
3. बरजी बाई भील ने अपनी बातों में क्या संदेश दिया?
बरजी बाई भील ने बताया कि संविधान की किताब की बदौलत वह बकरियां चराते-चराते जिला प्रमुख बनीं और अब उनका संदेश महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है।

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