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Photograph: (the sootr)
Jaipur. आज राजस्थान की राजधानी जयपुर का हैप्पी बर्थडे है। 18 नवम्बर को ही जयपुर की नींव रखी गई थी। आज जयपुर 298 साल का हो गया है। जब जयपुर शहर की स्थापना हुई, तब उसकी आबादी करीब दो लाख थी। 298 साल पहले आमेर के शासक सवाई जयसिंह ने जयपुर शहर को नगर नियोजन के हिसाब बसाने की परिकल्पना करते हुए नींव रखी थी। देश का यह पहला नगर नियोजन से तैयार नगर था, जिसकी ख्याति देश-दुनिया में फैली।
अब आबादी 45 लाख
जब जयपुर शहर अस्तित्व में आया, तब उसकी आबादी दो लाख थी, जो अब बढ़कर 45 लाख तक पहुंच गई है। तब यह शहर परकोटे के अंदर था। परकोटे के बाहर चारों तरफ राजे-रजवाड़ों के बड़े-बड़े हाउस-हवेलियां थीं, जो एक तरह से जयपुर को बाहरी आक्रमण से बचाने के लिए था। तब परकोटे की चारदीवारी में सिमटा जयपुर अब जवान हो चुका है। महानगर का रूप ले चुका है। आधुनिकता रंग में रंगा भी हुआ है।
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अब बहुत फैल चुका है जयपुर
प्राचीनता के साथ आधुनिकता लिए जयपुर अब बहुत फैल चुका है। हालांकि महानगरीय संस्कृति इस सुनियोजित शहर पर भारी पड़ रही है। पिंकसिटी के नाम से मशहूर जयपुर आधुनिकता के रंग में अपनी प्राचीन धरोहर को भूलता जा रहा है। परकोटे की प्राचीन हवेलियां जहां कॉमर्शियल मॉल्स और कॉम्प्लेक्स में तब्दील हो रही है, वहीं परकोटे की सुरक्षा के लिए सीना ताने खड़ा लम्बा-चौड़ा परकोटा गायब ही हो गया है।
परकोटे पर कर लिया कब्जा
लोगों ने परकोटे पर कब्जा करके इसका वजूद खत्म कर दिया है। कई धरोहर सार-संभाल के अभाव में नष्ट हो रही हैं। आधुनिकता और रखरखाव नहीं होने के कारण इस सुनियोजित शहर की पहचान और मूल स्वरूप को नुकसान पहुंचाया है। हालांकि बहुत से प्राचीन स्मारक, किले-महल, हवेलियां, मंदिर जयपुर के हेरिटेज स्वरूप को बचाए रखे हुए हैं। हर साल लाखों विदेशी सैलानी देखने आते हैं। भारतीय पर्यटकों की संख्या तो करोड़ों में है।
पहला वास्तु आधारित सुनियोजित शहर
जयपुर के नगर नियोजन की गिनती देश-दुनिया के चुनिंदा शहरों में रही है। यह एकमात्र प्राण-प्रतिष्ठित शहर, जिसकी नींव अश्वमेध यज्ञ और वैदिक वास्तु पर रखी गई। जयपुर दुनिया का एकमात्र शहर माना जाता है, जिसकी स्थापना चूने-पत्थर या इंजीनियरिंग आधारित प्लानिंग से नहीं, बल्कि प्राण-प्रतिष्ठा के आधार पर हुई।
जयपुर ऐसा शहर था, जिसे धार्मिक, आध्यात्मिक, खगोलिक और वैज्ञानिक सभी सिद्धांतों के समन्वय से खड़ा किया गया। सवाई जयसिंह द्वितीय की दूरदृष्टि और वैदिक नगर-योजना की परिकल्पना पर यह शहर बसाया गया।
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वास्तुविद थे सवाई जयसिंह
जयपुर शहर को बसाने वाले सवाई जयसिंह द्वितीय ज्योतिष, वास्तुविद, खगोल विज्ञान और गणितज्ञ के तौर पर जाने जाते थे। उनकी इन विषयों पर गहरी रुचि थी। जयपुर शहर को बसाने से पहले उन्होंने देश-दुनिया के नगर नियोजन की जानकारी ली।
फिर वास्तुविद और ज्योतिषों की सलाह पर जयपुर को व्यवस्थित नगर नियोजन के हिसाब से बनवाया और बसाया भी। सभी वर्ग और समाज के लिए निश्चित स्थान तय किया। सुरक्षा का भी बड़ा ख्याल रखा। शहर के चारों तरफ पक्का परकोटा बनाया, ताकि शत्रु देश, डाकू-चोर के हमलों से शहर और शहरवासियों को सुरक्षित रखा जा के।
वैदिक और वैज्ञानिक आधार पर निर्माण
जयपुर शहर को वैदिक और वैज्ञानिक आधार पर बसाया गया। उत्तर दिशा में स्थित पहाड़ियां अभिजित नक्षत्र का प्रतीक मानी जाती हैं, इसलिए यहां विद्वानों की बस्ती ब्रह्मपुरी बसाई गई। पूर्व दिशा में जलाशय था, जो वास्तु के अनुसार ईशान कोण में अत्यंत शुभ होता है।
इसी जलाशय को संरक्षित कर जल महल झील बनाई गई। दक्षिण में मोती डूंगरी पर्वत मेरू रूप में स्थित था और दाईं ओर की ये दिशा मंगल, शुक्र और राहु के प्रभाव क्षेत्र के रूप में नगर के शासन, सुरक्षा और विकास के लिए उपयुक्त मानी गई।
इस दिन कराया भूमि पूजन
चैत्र शुक्ल द्वितीया, संवत 1782 को भूमि पूजन कराया गया। ये दिन वैदिक दृष्टि से वर्ष का सबसे शुभ काल माना जाता है, जब सूर्य और चंद्रमा की ऊर्जा संतुलित होती है। जयपुर की स्थापना से पहले अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया गया।
यज्ञशाला के भीतर बनी बावड़ी में जल की जगह घी भरा गया और उसी के माध्यम से अनुष्ठान संपन्न किया गया। हजारों ऋषियों, तपस्वियों और विद्वानों ने यज्ञ में भाग लिया। वैदिक रीति रिवाज और प्राण-प्रतिष्ठा से शहर की नींव रखी गई।
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नीचे दुकान और ऊपर मकान
जयपुर को बसाने से पहले हर वर्ग और समाज के लिए अलग-अलग स्थान तय किए गए। व्यापारियों के लिए अलग-अलग चौकड़ी में बाजार बनाए। नीचे दुकान और ऊपर मकान की तर्ज पर बाजार डवलप किए गए। मकानों में आने-जाने की व्यवस्था बाजारों की तरफ नहीं रखी गई। जयपुर शहर के चारों दिशाओं पर देव-ऊर्जा विराजमान की गई।
गढ़ गणेश बने ऊर्जा संरक्षक
गढ़ गणेश उत्तर-पूर्व दिशा का ऊर्जा संरक्षक बने। नगर के द्वारों, चौकों और मार्गों पर देव-प्रतिष्ठा की गई। बड़ी चौपड़, छोटी चौपड़ और रामगंज चौपड़ को भी महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली के यंत्र स्थापित कर विशेष अनुष्ठान किए गए। यही वजह है कि आज भी ये चौपड़े व्यापार, कला, संस्कृति और जन-जीवन के सक्रिय केंद्र बने हुए हैं।
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नौ चौकड़ियों वाला शहर
जयपुर को चौपड़ों का शहर भी कहते हैं। पुराने शहर की संरचना आज भी अपने आप में अद्वितीय है। नौ ग्रहों की नौ चौकड़ियों के सिद्धांत पर यहां घरों और बाजारों का निर्माण हुआ। यहां के भवन वर्गाकार, आयताकार और वृत्ताकार श्रेणी में बनाए गए, ताकि प्रत्येक ग्रह से संबंधित ऊर्जा दिशाओं में संतुलित रहे। शहर की नींव के नीचे श्रीयंत्र, बीसा यंत्र और पंद्रह यंत्र स्थापित किए गए। नगर के साथ भवनों का निर्माण करते समय भी यहां वास्तु का ध्यान रखा गया।
विश्व धरोहर की सूची में शामिल
सुनियोजित जयपुर शहर वैदिक नगर वास्तु का जीवित उदाहरण है। इसका अद्भुत नगर नियोजन देखने लायक है। अपनी धरोहर और प्राचीन वैभव को समेटे हुए जयपुर विश्व धरोहर की सूची में भी शामिल है। जयपुर दुनिया में अपनी तरह का अकेला, अनोखा और अद्वितीय शहर है, जो आधुनिकता के शिखर पर है, लेकिन जिसकी नींव वैदिक ज्ञान, विज्ञान, यज्ञ और दिशाओं पर टिकी हुई है।
आमेर में आबादी बढ़ी तो जयपुर की नींव पड़ी
जयपुर शहर की स्थापना 18 नवंबर, 1727 को कछवाहा राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने की थी। वे आमेर के शासक थे। आमेर पहाड़ियों से घिरा हुआ था। धीरे-धीरे इसकी आबादी बढ़ने लगी तो सवाई जयसिंह को दूसरा शहर बसाने की सोची। ऐसा शहर जो पूरी तरह से सुनियोजित हो, जहां सभी वर्ग-समाज के लोग रह सके और व्यापार में भी सिरमौर बन सके। इसी सोच के साथ सवाई जयसिंह ने आमेर को जयपुर में स्थानांतरित करने का फैसला किया।
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विद्याधर भट्टाचार्य ने किया डिजायन
जयपुर के बड़े वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य ने भारतीय वास्तु सिद्धांतों के अनुसार जयपुर शहर की डिजायन तैयार की। उनके निर्देशानुसार जयपुर का निर्माण हुआ, जो करीब चार साल तक चला। 1876 में प्रिंस ऑफ वेल्स के आगमन पर जयपुर शहर को गुलाबी रंग से रंगा गया था। तब से जयपुर पिंकसिटी के तौर पर देश-दुनिया में जाना लगा।
स्मारकों में पर्यटकों का स्वागत
जयपुर की स्थापना दिवस पर कई स्थानों पर आयोजन हुए। जयपुर के हवामहल, आमेर महल समेत अन्य स्मारकों में पर्यटकों का तिलक लगाकर स्वागत किया गया तो रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हुए, जहां पर्यटकों ने लोक कलाकारों के साथ नृत्य भी किया। सवाई जयसिंह की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए गए। केक भी काटे गए।
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