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Photograph: (the sootr)
Jaipur. राजस्थान के जयपुर, जोधपुर, कोटा नगर निगम फिर से एक हो गए हैं। इन तीनों शहरों में ग्रेटर और हेरिटेज नाम के अलग-अलग निगम इतिहास हो गए हैं। सोमवार से एकीकृत नगर निगम कार्य शुरू कर चुका है। इसके साथ ही तीनों नगर निगमों की कमान महापौर और पार्षदों के हाथों से निकल गई है। कुल मिलाकर मेयर और पार्षदों के शहरी सरकार में पावर खत्म हो गए हैं।
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चुनाव के बाद मिलेगी ताकत
निकाय चुनाव होने के बाद ही मेयर और पार्षदों के हाथों में सत्ता आ सकेंगी। तब तक जयपुर, जोधपुर और कोटा नगर निगम की कमान संभागीय आयुक्तों ने संभाल ली है। मेयर और पार्षदों का दखल अब वित्तीय और प्रशासनिक स्तर पर खत्म हो गया है। पांच साल का कार्यकाल खत्म होने के कारण सभी नगर निगमों और पंचायतों में प्रशासक नियुक्त कर दिए हैं।
पहले दिन काम में दिक्कत
हेरिटेज और ग्रेटर निगम फिर से जयपुर नगर निगम हो गया। एक होने से कुछ जरूरी कामों में पहले दिन दिक्कतें आई हैं। सॉफ्टवेयर अपडेट नहीं होने, नई स्टेशनरी नहीं आने से जन्म, विवाह, मृत्यु जैसे काम नहीं हो सके। काफी लोग यह काम करवाने आए, लेकिन उन्हें वापस भेज दिया गया। साथ ही अब कौनसा अधिकारी और कर्मचारी कहां काम करेगा, वह भी तय नहीं होने से वे पशोपेश में रहे।
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संभागीय आयुक्त के हाथों में कमान
राजस्थान की शहरी सरकारें सोमवार से पूर्णतया जनप्रतिनिधियों के हाथों से मुक्त हो गई हैं। वैसे तो 9 नवम्बर को ही प्रदेश की तीनों नगर निगमें महापौर-पार्षदों के हाथों से निकल गई थी, लेकिन रविवार के अवकाश के चलते सत्ता का हस्तांतरण नहीं हो पाया। सोमवार से जयपुर, जोधपुर, कोटा नगर निगम की कमान संभागीय आयुक्त के हाथ में आ गई है।
इन्होंने संभाला कामकाज
जयपुर में संभागीय आयुक्त पूनम, जोधपुर में प्रतिभा सिंह, कोटा में पीयूष सामरिया ने निगम के वित्तीय और प्रशासनिक कामकाज संभाल लिया है। नगर निगमों के एकीकरण होने से संभागीय आयुक्त के हाथों में कमान आने से नगर निगमों का प्रशासनिक ढांचे में भी बदलाव कर दिया है। जल्द ही सरकार इसकी घोषणा करके अफसरों की नियुक्ति करेगी।
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कांग्रेस में दो, भाजपा ने एक किए
2019 में पिछली अशोक गहलोत सरकार ने जयपुर, कोटा और जोधपुर में दो-दो निगम बना दिए थे। ग्रेटर और हेरिटेज के नाम से अलग-अलग निगम बने। दोनों के अलग-अलग मेयर-पार्षद चुने गए। शहर को दो हिस्सों में बांटकर प्रशासनिक व्यवस्था भी चेंज कर दी गई। इसके पीछे सरकार ने महानगर की श्रेणी में जयपुर, कोटा और जोधपुर के सुनियोजित विकास की बात कही, लेकिन विकास के बजाय दोनों निगमों पर अरबों का अतिरिक्त बोझ बढ़ गया।
खर्चों का लग गया अंबार
जयपुर हेरिटेज निगम पर अकेले पांच साल में करीब 500 करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च आ गया। ऐसे ही ग्रेटर नगर निगम में हुआ। दो साल पहले प्रदेश में भाजपा सरकार ने आते ही दो-दो निगमों को गलत बताते हुए इनके एक ही निगम की घोषणा की। पांच साल का कार्यकाल समाप्त होते ही जयपुर, कोटा और जोधपुर के दो-दो निगमों के कॉन्सेप्ट को खत्म कर दिया है।
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एसआईआर के बाद निकाय चुनाव
राजस्थान समेत कई राज्यों में मतदाता विशेष पुनरीक्षण (एसआईआर) का काम चल रहा है। फरवरी तक यह कार्य चलेगा। इसके बाद ही राज्य निर्वाचन आयोग निकाय चुनाव की घोषणा कर पाएगा। सरकार की भी मंशा है कि एसआईआर के कार्य के बाद राजस्थान में निकाय चुनाव एक साथ करवाए जाए।
फरवरी के बाद ही चुनाव
प्रदेश में 50 निकायों का कार्यकाल दिसंबर में, 90 निकायों का जनवरी में और एक निकाय का फरवरी में कार्यकाल पूरा होना है। फरवरी तक एसआईआर का कार्य पूरा हो सकेगा। इसके बाद कभी भी चुनाव अधिसूचना जारी हो सकती है। राजस्थान में 309 नगरीय निकाय हैं। इनमें से 116 निकाय तो ग्राम पंचायतों को अपग्रेड करके बनाए गए हैं।
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जयपुर नगर निगम में डेढ़ सौ वार्ड
जयपुर नगर निगम में अब 150 वार्ड बनाए गए हैं। पहले हेरिटेज में ही डेढ़ सौ वार्ड थे और ग्रेटर नगर निगम क्षेत्र में 100 वार्ड थे। अब दोनों में डेढ़ सौ वार्ड किए गए हैं। हर वार्ड का क्षेत्र बढ़ा दिया है। वार्ड नंबर 31 सबसे छोटा है, तो वार्ड नंबर 135 सबसे बड़ा वार्ड होगा। कोटा नगर निगम में 100 वार्ड बनाए गए हैं। क्षेत्र की सीमा तय होने के बाद जनसंख्या के लिहाज से वार्ड 74 सबसे छोटा और वार्ड 20 एवं 38 सबसे बड़े होंगे।
हेरिटेज और ग्रेटर निगम हुआ इतिहास
राजधानी जयपुर के दोनों नगर निगम हेरिटेज और ग्रेटर अब इतिहास हो गए हैं। इसी तरह से कोटा और जोधपुर के दो-दो निगम भी खत्म हो चुके हैं। इनके स्थान पर पहले की तरह जयपुर नगर निगम, कोटा और जोधपुर नगर निगम हो गए हैं। एकीकरण के साथ ही नगर निगम का शासन ढांचा बदल गया है। कैडर भी बदल दिया है। पहले दो निगमों को दो-दो आयुक्त थे। अब एक को हटाना होगा।
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चुनाव नहीं होने से लगे प्रशासक
राजस्थान सरकार की ओर से पांच साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले वार्डों का आरक्षणवार विभाजन, पुनर्गठन, परिसीमन समेत कई कार्य होने थे। राज्य सरकार तय समय में इसे पूरा नहीं कर पाई, जिसके चलते नगर निगमों का पांच साल का कार्यकाल समाप्त हो गया। कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही चुनाव करवाए जाने के प्रावधान हैं।
विपक्ष हमलावर, भाजपा कार्यकर्ताओं में भी नाराजगी
समय पर निकाय और पंचायत चुनाव नहीं होने को लेकर कांग्रेस, आरएलपी भाजपा सरकार पर हमलावर हैं। उनका कहना है कि हमेशा से ही कार्यकाल से पहले चुनाव होते रहे हैं। यह पहली बार है, जब चुनाव नहीं करवाकर सरकार जनता को धोखा दे रही है। उधर, अंदरखाने भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं में भी नाराजगी है। निकाय और पंचायत सरकार में भागीदारी खत्म होने के पीछे सरकार की विफलता मान रहे हैं।
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