घरेलू विवाद में वकील पत्नी से परेशान पति को राहत, केस जयपुर ट्रांसफर, पत्नी नहीं होने दे रही थी पेश

राजस्थान हाई कोर्ट ने सवाई माधोपुर में घरेलू विवाद में वकील पत्नी से परेशान पति को राहत दी है। कोर्ट ने केस सवाई माधोपुर से जयपुर ट्रांसफर कर दिए हैं। वकील पत्नी अपने पति को कोर्ट में नहीं होने दे रही थी पेश।

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Amit Baijnath Garg
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Photograph: (the sootr)

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Jaipur. राजस्थान हाई कोर्ट ने घरेलू विवाद मामले में वकील पत्नी से परेशान पति को राहत देते हुए उनसे जुड़े दो केस (दहेज उत्पीड़न और भरण-पोषण) को सवाई माधोपुर से जयपुर ट्रांसफर कर दिया है। जस्टिस अनूप ढंड की अदालत ने यह आदेश बैंक मैनेजर पति की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।

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सभी को न्याय का अधिकार

अदालत ने कहा कि न्यायालय न्याय का मंदिर है और हर व्यक्ति को निष्पक्ष सुनवाई का संवैधानिक अधिकार है। इस मामले में पत्नी निचली अदालत में वकील होने के अपने पद का दुरुपयोग कर रही है और याचिकाकर्ता की ओर से किसी भी वकील को पेश नहीं होने दे रही है।

इसलिए पति सवाई माधोपुर में लाभदायक कानूनी प्रतिनिधित्व प्राप्त करने में असमर्थ है। ऐसे में यह न्यायालय न्याय के हित में दोनों केस को सवाई माधोपुर से जयपुर ट्रांसफर करने का निर्देश देती है। 

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पति के वकीलों के खिलाफ शिकायत की

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता रामरतन गुर्जर ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता और प्रतिवादी का विवाह साल 2010 में हुआ था, लेकिन बाद में दोनों के बीच वैवाहिक विवाद उत्पन्न हो गया। पत्नी ने सवाई माधोपुर के महिला थाने में दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया। 

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पति को नहीं मिल पा रहा वकील

पत्नी की ओर से फैमिली कोर्ट में भरण-पोषण के लिए धारा 125 सीआरपीसी के तहत याचिका दायर की गई। पति की ओर से दोनों केस में सवाई माधोपुर के तीन वकील उपस्थित हुए, लेकिन पत्नी ने कहने पर सवाई माधोपुर बार एसोसिएशन ने तीनों वकीलों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का नोटिस जारी कर दिया। 

वहीं पति को किसी भी तरह की विधिक सहायता प्रदान करने से मना किया, जिसकी वजह से पति को सवाई माधोपुर में कोई वकील नहीं मिल पा रहा है। 

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बार एसोसिएशन का कृत्य सराहनीय नहीं

वहीं पत्नी की ओर से कहा गया कि जो नोटिस पति के वकीलों को जारी किए गए थे। वे उसी दिन वापस भी ले लिए गए थे, लेकिन पति ने अपनी याचिका में इस तथ्य की जानकारी नही दी। वहीं हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश का हवाला देते हुए पति ने भरण-पोषण देना भी बंद कर दिया हैं। ऐसे में उसकी याचिका खारिज की जाए।

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कोर्ट ने कृत्य की निंदा की

दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पत्नी और स्थानीय बार एसोसिएशन का कृत्य और आचरण सराहनीय नहीं है और इसकी निंदा की जानी चाहिए। हालांकि कोर्ट ने पति को भी निर्देशित किया है कि वह भरण-पोषण के 15 हजार रुपए हर माह अदा करेगा।

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