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Photograph: (the sootr)
Jodhpur. राजस्थान हाई कोर्ट जोधपुर पीठ के एक फैसले से उन बुजुर्ग माता-पिता या सास-ससुर को राहत मिलेगी, जिनके सरकारी नौकरी में कार्यरत बेटे-बेटी की आकस्मिक मौत के बाद अनुकंपा नियुक्ति लेने वाले आश्रित सेवा नहीं कर रहे हैं और ना ही उनके भरण-पोषण व जरूरतों का ध्यान दे पा रहे हैं।
हाई कोर्ट ने एक ऐसे ही मामले में अनुकंपा नियुक्ति पाई बहू को आदेश दिए हैं कि वह अपने ससुर को हर महीने बीस हजार रुपए दे। कोर्ट ने अजमेर डिस्कॉम को बहू की सैलरी से ससुर को हर महीने 20 हजार रुपए देने के आदेश दिए हैं।
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जोधपुर बेंच ने सुनाया फैसला
जोधपुर बेंच के जस्टिस फरजंद अली ने अनुकंपा नियुक्ति के एक मामले में यह फैसला सुनाया है। यह मामला अलवर के खेड़ली कस्बे से जुड़ा हुआ है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि अजमेर डिस्कॉम शशि कुमारी के वेतन से हर महीने 20 हजार रुपए काटकर ससुर भगवान सिंह सैनी के बैंक खाते में जमा करवाए। यह बीस हजार रुपए की कटौती 1 नवंबर, 2025 से मानी जाएगी। जब तक ससुर भगवान सिंह जीवित हैं, तब तक यह जारी रहेगी।
अनुकंपा नियुक्ति का लाभ पूरे परिवार के लिए
हाई कोर्ट के न्यायाधीश फरजंद अली ने कहा कि जब किसी कार्मिक की मौत के बाद उस परिवार के किसी सदस्य को अनुकंपा नियुक्ति का लाभ दिया जाता है, तो वह उस व्यक्ति की व्यक्तिगत क्षमता में नहीं दिया जाता है, बल्कि पूरे परिवार के प्रतिनिधि के तौर पर उसे यह नियुक्ति दी जाती है। परिवार के अन्य सदस्यों के हितों, उनके भरण-पोषण और जरूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी भी उस पर आ जाती है। परिवार में सास-ससुर, माता-पिता और अन्य परिजन भी आते हैं।
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बहू को मिली है अनुकंपा नियुक्ति
याचिकाकर्ता भगवान सिंह सैनी ने हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की थी। याचिका में बताया कि उनका बेटा राजेश कुमार सैनी अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में तकनीकी सहायक के पद पर कार्यरत था। 15 सितंबर, 2015 को सेवा के दौरान उसका निधन हो गया। राजेश की मौत के बाद विभाग की तरफ से उसे अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन करने का पत्र आया।
खुद की जगह बहू को लगाया
उधर, राजेश की पत्नी शशि कुमारी ने भी अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया। हालांकि विभाग ने अनुकंपा नियुक्ति का प्रस्ताव सबसे पहले भगवान सिंह को दिया गया था, लेकिन उन्होंने स्वेच्छा से अनुकंपा नियुक्ति उनकी जगह बहू को दिए जाने की सिफारिश की।
11 मार्च, 2016 को अजमेर डिस्कॉम ने शशि कुमारी को अनुकंपा नियुक्ति दे दी। नियुक्ति के समय शशि कुमारी ने को एक शपथ-पत्र दिया था, जिसमें वह अपने पति के माता-पिता के साथ रहने, उनका भरण-पोषण करने, उनके कल्याण की पूर्ण जिम्मेदारी लेने और दूसरी शादी नहीं करने की शपथ ली।
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शपथ-पत्र के वादे झूठे
याचिकाकर्ता भगवन सिंह ने याचिका में बताया कि शपथ-पत्र में जो शपथ दी गई, उसका बहू ने पालन नहीं किया। बेटे की मौत के 18 दिन बाद ही बहू ने ससुराल छोड़ दिया और अपने माता-पिता के पास रहने लगी थी। भरण-पोषण की जिम्मेदारी भी नहीं निभाई। खेड़ली नगरपालिका अध्यक्ष की रिपोर्ट में बताया गया है कि भगवान सिंह बुजुर्ग हैं। उनके पास आय का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं है और वे गंभीर आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।
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बहू ने साथ नहीं दिया
बहू ने नियुक्ति तो ले ली, लेकिन सास-ससुर का भरण-पोषण नहीं किया। बुजुर्ग ने 3 जून, 2017 को अधीक्षण अभियंता को रिप्रजेंटेशन भेजा और 7 दिसंबर, 2017 को रजिस्टर्ड नोटिस भी भेजा, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद साल 2018 में उन्होंने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर शशि कुमारी के वेतन का 50 प्रतिशत हिस्सा उनके बैंक खाते में जमा कराने की मांग की।
बहू की व्यक्तिगत योग्यता नहीं
जस्टिस फरजंद अली ने आदेश में कहा कि शशि कुमारी को व्यक्तिगत योग्यता, क्षमता या पात्रता के आधार पर नियुक्ति नहीं मिली। विभाग ने कोई विज्ञापन नहीं निकाला। न ही प्रतिस्पर्धी चयन हुआ और ना ही कोई लिखित परीक्षा या साक्षात्कार दिया। यह राज्य की ओर से एक दयापूर्ण कार्य था, जो अपने दिवंगत कर्मचारियों के आश्रितों की रक्षा और सहायता के लिए किया गया।
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बहू वादे से मुकर नहीं सकती
हाई कोर्ट ने कहा कि शशि ने शपथपूर्वक जो वादा किया था, उससे अब मुकर नहीं सकती। उसने शपथ-पत्र की ताकत पर रोजगार प्राप्त किया। इसलिए वह अब उस वादे से पीछे नहीं हट सकती। रिकॉर्ड से पता चलता है कि अनुकंपा नियुक्ति के बाद शशि ने भविष्य निधि और मुआवजे की राशि का लगभग 70 प्रतिशत भी प्राप्त किया। बावजूद उसके उन्होंने सास-ससुर को छोड़ दिया। यह सही नहीं कहा जा सकता।
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