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Jaipur.राजस्थान की राजधानी जयपुर के सवाई मानसिंह (SMS) अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में रविवार रात बड़ा हादसा हुआ। अस्पताल के आईसीयू में आग लगने से आठ मरीजों की मौत हो गई, जिसमें तीन महिलाएं भी शामिल हैं। यह हादसा अस्पताल के स्टोर रूम में शॉर्ट सर्किट होने के कारण हुआ बताया जा रहा है। ट्रॉमा सेंटर, जो मरीजों को जीवनदान देने के लिए बनाया गया था, वहां लाशों का ढेर लग गया। यह घटना न केवल चिकित्सा विभाग की नाकामी को उजागर करती है, बल्कि अस्पताल प्रशासन की लापरवाही का भी पर्दाफाश करती है। इस घटना ने न केवल जयपुर बल्कि पूरे देश को स्तब्ध कर दिया।
किसकी लापरवाही ने ली जान?
एसएमएस हॉस्पिटल अग्निकांड के बाद कई ऐसे उच्च अधिकारी और मंत्री सामने आए हैं, जिनकी लापरवाही के कारण यह दुखद घटना घटी। अगर इन लोगों ने अपनी जिम्मेदारियां सही से निभाई होती, तो शायद इस तरह की दुर्घटना से बचा जा सकता था।
आइए जानते हैं, इस हादसे के लिए कौन—कौन कटघरे में हैं—
1. चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर
जिम्मेदारी: मंत्री का मुख्य कार्य अस्पताल का निरीक्षण करना और समय-समय पर अस्पताल की सुविधाओं का आंकलन करना था।
क्या किया? एसएमएस हॉस्पिटल अग्निकांड के कई घंटों बाद मंत्री मौके पर पहुंचे। वे केवल रूटीन निरीक्षणों पर ध्यान देते रहे, लेकिन इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार करने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किए।
बयान: "सूचना मिलते ही जयपुर की ओर निकल पड़ा था। जांच के आदेश दे दिए हैं और कमेटी गठित की है।"
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2. IAS गायत्री राठौड़ (प्रमुख चिकित्सा सचिव)
जिम्मेदारी: लगातार अस्पतालों का निरीक्षण करना और इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार करवाना।
क्या किया? अस्पतालों का केवल एक-आध बार निरीक्षण किया और सिस्टम में सुधार की दिशा में कोई बड़ा कदम नहीं उठाया।
3. अंबरीश कुमार (सचिव, चिकित्सा शिक्षा)
जिम्मेदारी: अस्पतालों के इन्फ्रास्ट्रक्चर की सुरक्षा को सुनिश्चित करना।
क्या किया? अस्पतालों का केवल दो-चार बार निरीक्षण किया और कोई ठोस कदम नहीं उठाए।
मंत्री और अफसर चौकस होते तो इनकी बच सकती थी जान
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4. दीपक माहेश्वरी (कार्यवाहक प्रिंसीपल, एसएमएस मेडिकल कॉलेज)
जिम्मेदारी: अस्पताल के प्रशासनिक प्रबंधन और इन्फ्रास्ट्रक्चर की देखरेख।
क्या किया? अस्पताल के इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार की गति धीमी थी और संसाधनों का उचित इस्तेमाल नहीं हुआ।
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5. सुशील भाटी (कार्यवाहक अधीक्षक, एसएमएस हॉस्पिटल)
जिम्मेदारी: अस्पताल की सुरक्षा और अव्यवस्थाओं को दूर करने का जिम्मा इनका था।
क्या किया? अस्पताल के जर्जर ढांचे में कोई सुधार नहीं किया और कई पुराने वायरिंग और टूटे-फूटे कमरे छोड़ दिए गए थे।
6. प्रदीप शर्मा (अतिरिक्त अधीक्षक, एसएमएस हॉस्पिटल)
जिम्मेदारी: ट्रॉमा सेंटर में शॉर्ट सर्किट के लिए जिम्मेदारियों की मॉनिटरिंग और सुधार।
क्या किया? उन्होंने कोई सुधार नहीं किया और ट्रॉमा सेंटर में होने वाली खामियों को नजरअंदाज किया।
7. डॉ. मनीष अग्रवाल (एचओडी, न्यूरो सर्जरी, आईसीयू)
जिम्मेदारी: आईसीयू के भीतर सुरक्षा और उपकरणों की देखरेख।
क्या किया? इस आईसीयू में आग लगने के बाद, उन्होंने कोई कदम नहीं उठाया था और अनदेखी के कारण यह घटना घटी।
बयान: "हम सुधार के लिए कई बार लिख चुके थे, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।"
8. अनुराग धाकड़ (ट्रामा सेंटर के नोडल अधिकारी)
जिम्मेदारी: ट्रॉमा सेंटर में मरीजों की व्यवस्था और सुरक्षा सुनिश्चित करना।
क्या किया? उन्होंने कई बार प्रशासन को खतरे के बारे में चेतावनी दी थी, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
बयान: "हमने कई बार मेंटेनेंस और इलेक्ट्रिक इशू के बारे में लिखा था।"
9. मुकेश सिंघल (एक्सईएन बिजली निगम)
जिम्मेदारी: एसएमएस अस्पताल के लिए सभी बिजली संबंधित कार्यों की जिम्मेदारी।
क्या किया? पुरानी वायरिंग को हटाने में उन्होंने सुस्ती दिखाई, और उपकरणों के रखरखाव में भी कोई सुधार नहीं किया।
एसएमएस हॉस्पिटल अग्निकांड का सबकFire in SMS Hospital यह हादसा हमें यह सिखाता है कि अस्पतालों की सुरक्षा और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर गंभीरता से ध्यान देना आवश्यक है। यदि प्रशासन और उच्च अधिकारी अपनी जिम्मेदारी का पालन सही से करते, तो शायद इतने बड़े हादसे से बचा जा सकता था। अब इस घटना के बाद यह सवाल उठता है कि क्या सरकार और संबंधित विभाग इस घटना से कुछ सीखेंगे या फिर दूसरे हादसे का इंतजार करेंगे। | |