नवरात्र पर कोटसुवा का चमत्कार : पानी से जलते हैं दीपक, 900 साल पुराना है मंदिर का इतिहास

राजस्थान के कोटा के कोटसुवा गांव का मंदिर हर साल नवरात्र में अद्भुत चमत्कार का गवाह बनता है, जिसे विज्ञान भी समझ नहीं पाया। यहां स्थित चामुंडा माता मंदिर में नवरात्र में पानी से दीपक जलते हैं।

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Amit Baijnath Garg
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Photograph: (the sootr)

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Kota. नवरात्र का पर्व वैसे तो पूरे देश में श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है, लेकिन राजस्थान के कोटा जिले के सुल्तानपुर क्षेत्र का कोटसुवा गांव हर साल एक ऐसे अद्भुत चमत्कार का गवाह बनता है, जो विज्ञान भी आज तक समझ नहीं पाया। यहां स्थित चामुंडा माता मंदिर में नवरात्र की पंचमी, षष्ठी और सप्तमी के दिन दीपक पानी से जलते हैं। हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस अनोखी परंपरा को अपनी आंखों से देखने आते हैं और माता के चरणों में नतमस्तक होते हैं।

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आस्था और परंपराओं का जीवंत उदाहरण

कोटसुवा गांव आस्था और परंपराओं का जीवंत उदाहरण है। यहां स्थित चामुंडा माता मंदिर हर वर्ष नवरात्र में अपने अनोखे चमत्कार से हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि नवरात्र की पंचमी, षष्ठी और सप्तमी को माता के आशीर्वाद से पानी से दीपक जलते हैं। यह दिव्य घटना प्रतिवर्ष सैकड़ों-हजारों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में घटित होती है। इसे देखने के लिए दूर-दराज से भक्त पहुंचते हैं।

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900 साल पुराना इतिहास

मंदिर की स्थापना विक्रम संवत 1169 में हुई थी। स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार, इस स्थान की शुरुआत एक दिव्य कथा से जुड़ी है। कहा जाता है कि चंबल नदी के किनारे एक दिव्य कन्या ने नाविक कालू कीर से पार कराने की इच्छा जताई। नाविक ने उसके प्रति गलत इरादा किया, जिसे जानकर दिव्य कन्या ने उसे नाव में ही गोंद की तरह चिपका दिया।

इसके बाद दिव्य कन्या ने गांववालों को दर्शन देकर कहा कि 14 वर्ष बाद नाविक पुनः सही-सलामत मिलेगा और तब तक मंदिर की स्थापना की जाए। ठीक 14 वर्ष बाद वही हुआ और गांव में आचार्य आखाराम पटेल ने इस मंदिर की नींव रखी। तब से आज तक कालू कीर की वंशावली ही यहां पूजा-अर्चना करती आ रही है।

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पानी से जलते हैं दीपक

मंदिर की सबसे अद्भुत परंपरा नवरात्र के दौरान देखने को मिलती है। प्रथम दिन माता का आह्वान भोपा के शरीर में होता है और फिर उसे ढोल-नगाड़ों के साथ चंबल नदी ले जाया जाता है। वहां से दो घड़े भरकर पानी लाया जाता है और मंदिर में स्थापित किया जाता है। भोपा इन नौ दिनों तक निराहार रहकर माता का ध्यान करता है और केवल एक गिलास दूध से जीवन व्यतीत करता है। 

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भोपा के शरीर में माता का प्रवेश

नवरात्र की पंचमी को महाआरती के बाद भोपा के शरीर में माता का प्रवेश होता है। फिर चमत्कारिक रूप से उस पानी को माता की ज्योत में डाला जाता है और दीपक जल उठता है। यह दिव्य ज्योति अगले 24 घंटे तक लगातार जलती रहती है। यह क्रम सप्तमी तक चलता है। इस चमत्कार को देखने के लिए हजारों श्रद्धालु मंदिर परिसर में जुटते हैं।

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भक्ति और उत्साह का माहौल

नवरात्र में सुबह चार बजे से ही भक्तों की भीड़ मंदिर में उमड़ने लगती है। दिनभर भजन-कीर्तन, जसगान और आरती का आयोजन चलता है। मंदिर परिसर गगनभेदी स्वर से गूंज उठता है और वातावरण भक्तिमय हो जाता है। भक्त मानते हैं कि यहां मांगी गई हर सच्ची मुराद पूरी होती है। यही कारण है कि कोटसुवा गांव का यह चामुंडा माता मंदिर नवरात्र में आस्था और भक्ति का केंद्र बन जाता है।

FAQ

1. कोटसुवा मंदिर में दीपक पानी से क्यों जलते हैं?
कोटसुवा मंदिर में दीपक नवरात्र के दौरान पानी से जलते हैं, जिसे विज्ञान भी समझ नहीं पाया है। यह मंदिर की अद्भुत परंपरा का हिस्सा है, जो हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
2. कोटसुवा मंदिर का इतिहास क्या है?
कोटसुवा मंदिर का इतिहास विक्रम संवत 1169 का है। यह मंदिर एक दिव्य कथा से जुड़ा हुआ है, जिसमें एक नाविक कालू कीर और दिव्य कन्या की कहानी शामिल है।
3. नवरात्र के दौरान कोटसुवा मंदिर में कौन-कौन सी परंपराएं होती हैं?
नवरात्र के दौरान, कोटसुवा मंदिर में हर दिन विशेष पूजा होती है। सबसे अद्भुत परंपरा यह है कि नवरात्र की पंचमी, षष्ठी और सप्तमी को पानी से दीपक जलते हैं, जो अगले 24 घंटे तक जलते रहते हैं।

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