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Photograph: (the sootr)
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के पूर्व पीएचईडी मंत्री महेश जोशी की जमानत याचिका पर ईडी और राजस्थान सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट ने जल जीवन मिशन से जुड़े करीब 900 करोड़ रुपए के घोटाले से जुड़े मामले में ईडी सहित अन्य को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब तलब किया है।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने यह आदेश महेश जोशी की जमानत याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए दिए। राजस्थान हाई कोर्ट ने 26 अगस्त को जोशी की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। जोशी ने इसी आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर कर नियमित जमानत मांगी है।
जोशी की ओर से कहा गया है कि इस मामले में सह-अभियुक्तों को नियमित जमानत मिल चुकी है। मामले में शिकायत पहले ही दायर हो चुकी है। मामले में 19 आरोपी और 66 गवाह हैं। इनके साथ 14,562 पेज के दस्तावेज हैं। ऐसे में निकट भविष्य में ट्रायल पूरी होना तो दूर शुरू होने की भी संभावना नहीं है। बड़ी मात्रा में दस्तावेजी सबूतों के साथ छेड़छाड़ होने की संभावना भी है।
जोशी पर रिश्वत लेने के आरोप
साल 2021 में श्याम ट्यूबवेल कंपनी और गणपति ट्यूबवेल कंपनी के ठेकेदार पदमचंद जैन और महेश मित्तल ने फर्जी अनुभव प्रमाण-पत्र दिखाकर जलदाय विभाग से करोड़ों रुपए के टेंडर हासिल किए थे। घोटाले का खुलासा होने पर एसीबी ने मामले की जांच की थी। बाद में ईडी ने मामला दर्ज कर मार्च, 2024 को महेश जोशी को समन जारी कर तलब किया था। जोशी पर आरोप है कि उन्होंने पीएचईडी मंत्री रहते हुए गणपति ट्यूबवेल और श्याम ट्यूबवेल को टेंडर देने के लिए सह-अभियुक्त संजय बड़ाया के साथ मिलकर रिश्वत ली थी।
बेटे की फर्म में लिए थे 50 लाख
ईडी का आरोप है कि जोशी ने अपने बेटे की फर्म सुमंगलम लैंडमार्क में 50 लाख रुपए लिए थे। जोशी की ओर से कहा गया है कि यह राशि ऋण के रुपए में ली थी, जिसे इस मामले में एफआईआर होने से पहले ही लौटा भी दिया था। इसलिए इस राशि को अपराध के लिए अग्रसर होने की श्रेणी में नहीं माना जा सकता। इसके अतिरिक्त फर्म के खाते में ऐसा कोई लेन-देन नहीं है, जिसे अपराध माना हो।
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जोशी ने तो ब्लैक लिस्ट की थी दोनों फर्म
जोशी की ओर से कहा गया है कि उनके पीएचईडी मंत्री बनने से पहले ही दोनों फर्म को दूसरे टेंडर मिल चुके थे। अनियमितताओं की शिकायत मिलने पर उन्होंने जांच करवाई और दोनों फर्म के खिलाफ एक्शन लेकर ब्लैक लिस्ट किया था।
पूर्व मंत्री महेश जोशी की एसएलपी में मनीष सिसोदिया मामले के आदेश के आधार पर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट व्यक्तिगत स्वतंत्रता व त्वरित ट्रायल का महत्व बताकर कह चुका है कि ट्रायल के बिना लंबे समय तक जेल में रखना संविधान के अनुच्छेद-21 के विपरीत है और हिरासत में रखने का उद्देश्य आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित करना है, ना कि सजा देना।