राजपूताना में केवल अजमेर में रहा मराठों का शासन, वहां भी लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ा

राजस्थान के प्रोफेसर टीके माथुर ने दावा किया है कि राजपूताना में सिर्फ अजमेर में मराठों का शासन था। इसके लिए भी उन्हें लंबा संघर्ष करना पड़ा। जैसलमेर, मेवाड़ और बूंदी पर कभी उनका नियंत्रण नहीं था।

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Amit Baijnath Garg
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राजस्थान के इतिहासकार प्रो. टीके माथुर ने हाल ही में एक बड़ा दावा किया है कि राजपूताना में केवल अजमेर (Ajmer) ही वह स्थान था जहां मराठों का शासन रहा था। उनका कहना है कि अन्य क्षेत्रों जैसे जैसलमेर, मेवाड़ और बूंदी में कभी भी मराठों का आधिपत्य नहीं था, जैसा कि एनसीईआरटी की किताब में बताया गया है। उनका यह बयान शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण विवाद को जन्म दे रहा है, जिसमें किताबों में ऐतिहासिक तथ्यों के गलत प्रस्तुतिकरण पर सवाल उठाए जा रहे हैं।

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एनसीईआरटी की किताब पर सवाल

हाल ही में एनसीईआरटी की आठवीं कक्षा की सामाजिक विज्ञान की पुस्तक को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ है। इस पुस्तक में जैसलमेर, मेवाड़ और बूंदी को मराठों के अधीन बताया गया है, जबकि प्रो. टीके माथुर का स्पष्ट कहना है कि यह जानकारी तथ्यों के खिलाफ है।

उन्होंने कहा कि इस पुस्तक के लेखक को प्रमाण पेश करने चाहिए, ताकि अन्य इतिहासकार भी इसे सही मान सकें। उनका कहना है कि इस प्रकार की गलत जानकारी छात्रों के दिमाग में गलत धारणाएं बना सकती हैं, जो भविष्य में ऐतिहासिक तथ्यों के साथ भ्रम उत्पन्न करेंगी। उनका कहना है कि एनसीईआरटी पुस्तक ऐतिहासिक तथ्यों पर विवाद पैदा कर रही है।

अजमेर का ऐतिहासिक महत्व

प्रो. माथुर ने बताया कि अजमेर का राजपूताना में विशेष महत्व रहा है। यह न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि इसकी सांस्कृतिक और व्यापारिक स्थिति भी अद्वितीय थी। सम्राट पृथ्वीराज चौहान से लेकर मुगलों तक सभी ने अजमेर को अपनी सत्ता का केंद्र बनाया। मुगलों के समय में भी अजमेर को दिल्ली सल्तनत की दूसरी राजधानी के रूप में देखा गया। इस कारण ही मराठों ने अजमेर में अपनी पकड़ बनाने का प्रयास किया था।

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मराठों का संघर्ष और अजमेर में शासन

प्रो. माथुर ने यह भी कहा कि मराठों का अजमेर में शासन संघर्षपूर्ण था। उनका मुख्य उद्देश्य यहां से गुजरने वाले व्यापारिक मार्गों पर अपना नियंत्रण स्थापित करना था। इसके अलावा, जयपुर और जोधपुर राजवंशों ने भी अजमेर पर अपना अधिकार जमाने के प्रयास किए थे। इस संघर्ष के बीच मराठों ने 1747 से 1818 तक इस इलाके में अपना शासन स्थापित किया, लेकिन यह समय हमेशा संघर्षों से भरा रहा।

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अजमेर में मराठों की शक्ति और संघर्ष

मराठों ने अजमेर में अपना शासन स्थापित करने के लिए कई युद्ध किए। जयपुर और जोधपुर राजवंशों से मुकाबला करते हुए वे अजमेर में अपने साम्राज्य को कायम रखने में सफल हुए। उनके शासन के दौरान सिंधिया की राजशाही का प्रभाव अधिक था। यह संघर्ष मुख्य रूप से गुजरात और दक्षिण भारत के व्यापारिक मार्गों के नियंत्रण को लेकर था।

FAQ

1. क्या जैसलमेर, मेवाड़ और बूंदी में मराठों का शासन था?
प्रो. टीके माथुर के अनुसार, जैसलमेर, मेवाड़ और बूंदी में कभी मराठों का शासन नहीं रहा। केवल अजमेर में उनका शासन था।
2. क्या एनसीईआरटी की किताब में दी गई जानकारी गलत है?
हां, प्रो. माथुर का कहना है कि एनसीईआरटी की किताब में जैसलमेर, मेवाड़ और बूंदी को मराठों के अधीन बताया गया है, जो ऐतिहासिक तथ्यों के खिलाफ है।
3. अजमेर का इतिहास क्या है?
अजमेर का ऐतिहासिक महत्व बहुत बड़ा था। यह दिल्ली सल्तनत की दूसरी राजधानी के रूप में कार्य करता था और मुगलों के समय में भी इसका महत्वपूर्ण स्थान था।

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