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Photograph: (the sootr)
राजस्थान के जयपुर के सीकर रोड पर स्थित नींदड़ गांव में 1350 बीघा कृषि भूमि की जबरन अवाप्ति के खिलाफ किसानों का आंदोलन शुक्रवार रात को फिर से उग्र हो गया। किसान और स्थानीय लोग जयपुर से सीकर मार्ग पर स्थित नींदड़ गांव की भूमि की रक्षा के लिए सड़क पर डेरा डालकर बैठे।
यह धरना अनिश्चितकालीन रूप से 296वें दिन तक जारी रहा। किसान मुख्यमंत्री आवास घेरने के लिए निकले, लेकिन पुलिस प्रशासन ने उन्हें बीच रास्ते में रोक लिया। इसके बावजूद किसान वहीं धरने पर बैठ गए और चेतावनी दी कि जब तक पुलिस हटेगी नहीं, वे भी वहां से नहीं हटेंगे।
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साल 2010 से जारी संघर्ष
नींदड़ बचाओ युवा किसान संघर्ष समिति के प्रमुख डॉ. नगेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि किसान 2010 से अपनी जमीन बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन अब तक उन्हें किसी भी प्रकार की राहत नहीं मिली है। किसानों ने जयपुर विकास प्राधिकरण (JDA) के खिलाफ मोर्चा खोला है। उनकी मांग स्पष्ट है कि वे मुआवजा नहीं चाहते, बल्कि इस आवासीय योजना को रद्द किया जाए।
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किसानों का संकल्प और आंदोलन
डॉ. शेखावत ने कहा कि सरकार और जेडीए की जिद अब किसानों की सहन शक्ति से बाहर हो चुकी है। नींदड़ के किसान अपनी पुश्तैनी जमीन बचाने के लिए हर कीमत चुकाने को तैयार हैं। पुलिस प्रशासन के दबाव और बाधाओं के बावजूद उनका आंदोलन कमजोर नहीं पड़ा, बल्कि और भी मजबूत हुआ है। समिति अध्यक्ष कैलाश बोहरा ने कहा कि यह आंदोलन अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है और यह तब तक जारी रहेगा, जब तक नींदड़ की कृषि भूमि की अवाप्ति पूरी तरह से निरस्त नहीं हो जाती।
अवाप्ति के खिलाफ 296 दिनों से धरना
नींदड़ की 1350 बीघा कृषि भूमि की अवाप्ति के विरोध में किसान पिछले 296 दिनों से अनिश्चितकालीन धरने पर हैं। इस दौरान कई बार प्रशासन और किसानों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हुई, लेकिन किसान पीछे नहीं हटे। नींदड़ के किसान 2010 से इस मुद्दे पर विरोध कर रहे हैं और उन्होंने वर्ष 2017 में जमीन समाधि सत्याग्रह भी किया था।
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दोनों सरकारों का ढुलमुल रवैया
वर्ष 2017 में भाजपा सरकार ने किसानों से समझौता किया था, लेकिन वह समझौता बाद में तोड़ दिया गया। इसके बाद 2020 में फिर से नींदड़ बचाओ आंदोलन शुरू किया गया और कांग्रेस सरकार ने भी किसानों से समझौता कर एम्पावर्ड कमेटी बनाई। हालांकि कमेटी के गठन के बाद कोई भी सार्थक बातचीत नहीं की गई और किसानों की मांगें अब तक पूरी नहीं हो पाई हैं।