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Photograph: (the sootr)
राजस्थान का नाम सुनते ही आमतौर पर सूखी और बंजर जमीन की छवि मन में आती है, लेकिन उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के भैसा गांव के प्रदीप ने इस सोच को बदलने का बीड़ा उठाया। प्रदीप ने दिल्ली में एक निजी कंपनी की इंजीनियरिंग नौकरी छोड़कर अलवर में सरिस्का टाइगर रिजर्व के पास स्थित धीरोड़ा गांव को अपनी कर्मभूमि बनाया। यहां की पथरीली और सूखी जमीन पर उन्होंने पौधारोपण किया और एक ऐसी हरियाली की मिसाल पेश की, जो अब पूरे इलाके के लिए प्रेरणा बन चुकी है।
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प्रदीप की बागवानी यात्रा की शुरुआत
प्रदीप का कहना है कि उन्हें बचपन से ही बागवानी और पौधों में गहरी रुचि थी। दिल्ली में इंजीनियरिंग की नौकरी करते हुए उनके मन में बार-बार यह ख्याल आता कि क्यों न ऐसा काम किया जाए, जिससे न सिर्फ उन्हें बल्कि पूरे समाज और देश को फायदा हो। इस विचार से प्रेरित होकर प्रदीप ने वृक्षारोपण का काम शुरू किया।
पंचवटी से शुरू हुई हरियाली की यात्रा
2010 में प्रदीप ने दिल्ली की नौकरी छोड़कर धीरोड़ा गांव में सरकारी पथरीली जमीन पर काम शुरू किया। सबसे पहले उन्होंने पंचवटी के पांच पौधे लगाए। बरगद, पीपल, बेलपत्र, आंवला और सीताशोक। इन पौधों के चयन में धार्मिक और स्वास्थ्य संबंधी कारण थे। बरगद की ठंडी छाया, पीपल का ऑक्सीजन, बेलपत्र की ठंडक, आंवले का स्वास्थ्य लाभ और सीताशोक की पीड़ा कम करने की मान्यता प्रदीप के चयन का कारण बनीं।
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5000 से अधिक पौधे लगाए
धीरोड़ा पहुंचने के बाद प्रदीप ने सबसे पहले उस क्षेत्र की पथरीली और सूखी जमीन को हरित क्षेत्र में बदलने की शुरुआत की। पहले साल 200 पौधे लगाए गए थे और धीरे-धीरे यह संख्या बढ़कर आज 5000 से अधिक हो गई है। इन पौधों में से सैकड़ों अब 20 से 25 फीट ऊंचे पेड़ बन चुके हैं। यह हरियाली अब पूरे क्षेत्र के स्वरूप को बदल चुकी है और एक किलोमीटर के दायरे में फैली हुई है।
तापमान और जलस्तर में सकारात्मक बदलाव
धीरोड़ा में पौधारोपण का असर केवल हरियाली तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यहां का तापमान भी कम हो गया और कुओं का जलस्तर भी बढ़ा। इस बदलाव को देखकर आसपास के लोग उत्साहित हुए और पर्यावरण संरक्षण में रुचि लेने लगे। इसके बाद कई लोगों ने भी अपने क्षेत्रों में पौधरोपण की शुरुआत की।
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हर्बल नर्सरी और आयुर्वेदिक पौधों का अध्ययन
2021 में प्रदीप को घुटनों के दर्द के इलाज के दौरान आयुर्वेद के पौधों से गहराई से परिचय हुआ। इसके बाद उन्होंने धीरोड़ा गांव में हर्बल नर्सरी स्थापित करने का फैसला किया। अब यहां लगभग 300 प्रजातियों के पौधे उगाए जा रहे हैं, जिनमें हरड़, बहेड़ा, आंवला, रीठा, बालम खीरा, अर्जुन, तुलसी, नीम, अश्वगंधा और गिलोय जैसी औषधीय प्रजातियां शामिल हैं। यह नर्सरी अब शोध और औषधीय पौधों के अध्ययन का एक प्रमुख केंद्र बन चुकी है।
गोशाला की स्थापना और वन्यजीवों की सेवा
धीरोड़ा के जंगल में एक विकलांग गाय को पैंथर के शिकार होते हुए देख प्रदीप को गायों की सुरक्षा का अहसास हुआ। इसके बाद उन्होंने ग्रामीणों के सहयोग से श्री हरिगोपाल गोशाला की स्थापना की। यहां अब 140 से अधिक गायों का पालन-पोषण किया जाता है, साथ ही नीलगाय, मोर, बंदर और हिरण जैसे वन्यजीवों का भी इलाज होता है। वन विभाग के कर्मचारी घायल जानवरों को भी उपचार के लिए यहां लाते हैं।
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धीरोड़ा शोध और शिक्षा का केंद्र
आज प्रदीप का काम इतना बड़ा हो चुका है कि धीरोड़ा गांव पर्यावरण और बागवानी से संबंधित शोध और शिक्षा का केंद्र बन गया है। विभिन्न कॉलेजों के छात्र और शोधकर्ता यहां आकर पौधों के बारे में जानकारी जुटाते हैं। इसके अलावा, स्थानीय किसान और लोग भी यहां से प्रेरणा लेकर नए तरीके अपनाते हैं। कभी-कभी विदेशी मेहमान भी यहां आते हैं और प्रदीप के कार्य की सराहना करते हैं।
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सरिस्का की वनस्पतियों को संरक्षित करने का लक्ष्य
प्रदीप का अगला सपना है कि वह सरिस्का टाइगर रिजर्व में पाई जाने वाली सभी वनस्पतियों को एक स्थान पर उगाएं, जिससे शोधकर्ताओं को अध्ययन का बेहतर अवसर मिले और जलवायु परिवर्तन के कारण विलुप्त हो रही प्रजातियों का संरक्षण किया जा सके। प्रदीप को उनके कार्यों के लिए 2021 के स्वतंत्रता दिवस पर जिला प्रशासन द्वारा सम्मानित किया गया। उनकी यह उपलब्धि धीरोड़ा और पूरे अलवर जिले के लिए गर्व का विषय है।