हाई कोर्ट की बड़ी टिप्पणी : सिर्फ ट्रैप के आधार पर नहीं बनता रिश्वत मांगने का अपराध, वैध रिकवरी जरूरी

राजस्थान हाई कोर्ट का कहना है कि सिर्फ ट्रैप के आधार पर नहीं बनता रिश्वत मांगने का अपराध। डिमांड-स्वीकृति के साथ कानूनी रूप से वैध रिकवरी होना जरूरी। हाई कोर्ट ने तीन पुलिसकर्मियों को सजा का दोषी मानने व सजा के आदेश को किया रद्द।

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Mukesh Sharma
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Photograph: (the sootr)

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Jaipur. राजस्थान हाई कोर्ट ने कहा है कि ​भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत सिर्फ ट्रैप के आधार पर किसी को भ्रष्टाचार का दोषी मानकर सजा नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने कहा है कि कानूनी रूप से रिश्वत के मामले में दोष साबित करने के लिए रिश्वत की मांग, रिश्वत की स्वीकृति तथा रिश्वत मांगने वाले आरोपी के पास शिकायतकर्ता का कोई सरकारी काम लंबित होना जरूरी है। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ ट्रैप के आधार पर नहीं बनता रिश्वत मांगने का अपराध।

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यह है मामला

राजस्थान हाई कोर्ट के जस्टिस आनंद शर्मा ने रींगस आरपीएफ के तत्कालीन थानाधिकारी कैलाश सैनी व कांस्टेबल जगवीर व सांवरमल को ट्रायल कोर्ट से मिली एक-एक साल की सजा व दोष सिद्धि को रद्द करते हुए बरी कर दिया है। सजा होने के बाद से तीनों पुलिसकर्मी ​बर्खास्त चल रहे हैं। 

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ट्रैप या मुकदमा दर्ज होने से दोषी नहीं

कोर्ट ने कहा है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कोई सरकारी अधिकारी या कर्मचारी सिर्फ ट्रैप होने या मुकदमा दर्ज होने से ही दोषी साबित नहीं हो जाता। रिश्वत की डिमांड, स्वीकृति और बरामदगी की चेन कानूनी तौर पर सही और संदेह से परे होना जरूरी है। मामले में एसीबी की ओर से पेश ऑडियो रिकॉर्डिंग की ट्रांसक्रिप्ट में रिश्वत मांगने का कहीं कोई जिक्र तक नहीं है।  

फर्श से रुपए बरामद होना रिश्वत नहीं

कोर्ट ने कहा है कि मामले में रिश्वत की राशि के बताए गए रुपए फर्श से बरामद हुए थे। इससे ना तो रिश्वत की डिमांड साबित होती है और ना ही स्वीकृति तथा ना ही इससे कोई अपराध ही बनता है। कोर्ट ने कहा है कि मामले में रिश्वत की राशि के रुपए की बरामदगी ही कानूनी तौर पर सही नहीं है। 

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रिकवरी ही कानूनी तौर पर सही नहीं

कोर्ट ने कहा कि यह रिकॉर्ड पर है कि अभियुक्त सांवरमल ने नोट स्वीकार नहीं किए थे, बल्कि ट्रैप के दौरान नोट फर्श पर बिखरे हुए थे। इससे साबित है कि नोट शिकायतकर्ता ने दबाव में रखे थे। इसलिए जब अभियुक्त ने ना तो नोट लिए और ना ही उससे बरामद हुए हों तो, ऐसी रिकवरी को कानूनी रूप से वैध नहीं माना जा सकता। इसके अतिरिक्त मामले में परिवादी के अलावा अन्य कोई स्वतंत्र गवाह नहीं है। जो हैं, उन्होंने भी अभियोजन की कहानी को सपोर्ट नहीं किया है। 

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एसीबी में की शिकायत

मामले के परिवादी चिरंजीलाल को आरपीएफ ने फर्जी नामों से टिकट बुक करवाकर ब्लैक करने के मामले में पकड़ा था। उसने एसीबी को शिकायत दी थी अभियुक्त पुलिस वाले मामले से उसका नाम हटाने के लिए पांच हजार रुपए रिश्वत मांग रहे हैं। दो हजार रुपए ले लिए हैं व तीन हजार रुपए बाकी हैं। एसीबी ने 26 जुलाई, 2007 को ट्रैप कार्रवाई की और कांस्टेबल सांवरमल से रिश्वत की राशि के रुपए मिलने का दावा किया। 

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एक साल कैद की हुई थी सजा

एसीबी ने तत्कालीन थानाधिकारी कैलाश सैनी सहित कांस्टेबल जगवीर व सांवरमल के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर लिया था। एसीबी मामलों की स्पेशल कोर्ट जयपुर ने करीब 16 साल तक चले मुकदमे के बाद साल 2023 में तीनों को दोषी मानकर एक वर्ष की कैद और जुर्माने की सजा दी थी। इस आदेश के खिलाफ ही अभियुक्तों ने हाई कोर्ट में अपील की थी। अपीलकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट माधव मित्र, एडवोकेट गिर्राज प्रसाद शर्मा व राजीव सोगरवाल ने पैरवी की।

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