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Photograph: (the sootr)
नवनीत झालानी, कोऑर्डिनेटर, राजस्थान हैंडीक्राफ्ट्स एक्सपोर्टर्स जॉइंट फोरम
भौगोलिक क्षेत्रफल और खनिज संपदा के लिहाज से देश में अग्रणी राजस्थान की औद्योगिक स्थिति आज गंभीर चिंतन का विषय बन चुकी है। सरकारें बदलती रहीं, उद्योग विकास के बड़े-बड़े आयोजन होते रहे, लेकिन जमीनी स्तर पर उद्यमियों की समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं।
हर साल करोड़ों रुपए खर्च कर आयोजित किए जाने वाले राइजिंग राजस्थान, प्रवासी राजस्थानी दिवस जैसे आयोजनों में उद्योग जगत की चमक-दमक जरूर दिखती है, लेकिन इनसे आम और मझोले उद्यमियों को वास्तविक राहत शायद ही मिल पाती है। राजस्थान हैंडीक्राफ्ट्स एक्सपोर्टर्स जॉइंट फोरम के कोऑर्डिनेटर नवनीत झालानी का कहना है कि उद्यमी की व्यथा को समझकर नीतियां बनानी होंगी।
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सबसे ज्यादा परेशान
बाहर से आने वाले प्रभावशाली उद्योगपति, जिन्हें सस्ती जमीन, रियायती दरों पर ऋण और तमाम सुविधाएं आसानी से मिल जाती हैं, वे कुछ समय बाद लाभ कमाकर या तो प्रोजेक्ट समेट लेते हैं या जमीन बेचकर मुनाफा कमा लेते हैं। दूसरी ओर स्थानीय एमएसएमई उद्यमी, जो बाजार भाव पर जमीन खरीदते हैं, बैंक से ऊंची ब्याज दरों पर कर्ज लेते हैं और अपनी व पारिवारिक संपत्ति गिरवी रखकर उद्योग खड़ा करते हैं, वही सबसे ज्यादा परेशान नजर आते हैं।
भारी-भरकम लवाजमा तैनात
प्रदेश के सात करोड़ से अधिक एमएसएमई और उनसे जुड़े करीब 30 करोड़ रोजगार का बड़ा हिस्सा ऐसे ही स्थानीय उद्यमियों के कंधों पर टिका है। उद्योग विभाग की संरचना भी सवालों के घेरे में है। उद्योग विकास के नाम पर एक कैबिनेट मंत्री, एक राज्य मंत्री, एक अतिरिक्त मुख्य सचिव, एक उद्योग आयुक्त और इनके अधीन सैकड़ों अधिकारी-कर्मचारी तैनात हैं, जिन पर हर महीने करोड़ों रुपए वेतन, भत्तों और सुविधाओं पर खर्च करती है।
विभाग की संरचना भी घेरे में
उद्यमियों की समस्याओं का समाधान समय पर नहीं हो पाता। फायर एनओसी, फैक्ट्री लाइसेंस, प्रदूषण नियंत्रण, श्रम विभाग और स्थानीय निकायों से जुड़े निरीक्षण उद्यमियों के लिए राहत की बजाय डर का कारण बने हुए हैं। हालात यह हैं कि निरीक्षण के नाम पर बार-बार दस्तावेज मांगे जाते हैं। टैक्स, ऑडिट और टीडीएस जैसी प्रक्रियाओं में उलझाकर उद्यमी का समय और ऊर्जा नष्ट की जाती है।
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दावे सिर्फ कागजों तक सीमित
कई बार ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के दावे सिर्फ कागजों तक सीमित रह जाते हैं। उद्यमी उद्योग संचालन की बजाय फाइलों और दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर होता है। विडंबना यह भी है कि उद्योग नीति और योजनाएं बनाते समय उद्यमियों की वास्तविक राय को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। संवाद के नाम पर बैठकें जरूर होती हैं, लेकिन निर्णय पहले से तय होते हैं।
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करना ही होगा संवाद
यही कारण है कि राजस्थान जैसे संसाधन संपन्न राज्य में भी कई उद्योग बंद हो रहे हैं या दूसरे राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं। यदि वास्तव में उद्योग विकास को गति देनी है, तो जरूरी है कि मंत्री और शीर्ष अधिकारी एसी कमरों से बाहर निकलें, औद्योगिक क्षेत्रों का नियमित दौरा करें और उद्यमियों से सीधा संवाद करें।
राइजिंग राजस्थान का सपना अधूरा
उद्योग विकास की नीतियां कागजों में होने के चलते संकट में हैं। सिर्फ आयोजन और घोषणाओं से नहीं, बल्कि ईमानदार अमल से ही राजस्थान को औद्योगिक रूप से मजबूत बनाया जा सकता है। जब तक उद्यमी की व्यथा को समझकर नीतियां नहीं बनेंगी, तब तक राइजिंग राजस्थान का सपना अधूरा ही रहेगा। इस तरह के सपनों को पूरा करने के लिए धरातल पर काम करना ही होगा।
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