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Photograph: (the sootr)
योगेंद्र योगी @ जयपुर
जब बाड़ ही खेत को खाने लगे तो सुरक्षा की उम्मीद किससे की जा सकती है। कुछ ऐसा ही हाल राजस्थान पुलिस का है। हाल में ही बजरी माफियाओं की मिलीभगत से चर्चा में आए पुलिस विभाग पर भ्रष्टाचार और अपराधियों की मिलीभगत के इतने दाग चुके हैं कि पूरी खाकी ही दागदार नजर आती है। विवादों में घिरी राजस्थान पुलिस पर भ्रष्टाचार और अपराधियों से मिलीभगत के आरोप लग रहे हैं। इसके चलते उसे अपनों के ही खिलाफ अभियान चलाने पड़ रहे हैं।
प्रचार तक सीमित स्लोगन
भ्रष्टाचार की बहती गंगा में हाथ धोने में महकमे के कांस्टेबल से लेकर भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी तक शामिल रहे हैं। ऐसा शायद ही कोई पखवाड़ा गुजरता हो, जब पुलिस के अपराधियों से मिलीभगत और भ्रष्टाचार के कारनामे सामने नहीं आते हों। पुलिसकर्मियों के काले कारनामों से अपराधियों मे भय और आमजन में विश्वास का पुलिस का स्लोगन सिर्फ प्रचार तक सीमित नजर आता है।
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तस्करों से मिलीभगत में 4 सेवा से बर्खास्त
पाली में मादक पदार्थो की तस्करी में एक तस्कर से सांठ-गांठ करने के मामले में चार पुलिसकर्मी को बर्खास्त किया गया। इन पुलिसकर्मियों ने डोडा-पोस्त से भरी कार लेकर जा रहे एक तस्कर को पकड़ने के बाद दो लाख रुपए में डील कर उसे छोड़ दिया था। 18 दिसंबर को देसूरी पुलिस थाने के हेड कांस्टेबल सोहनलाल, कांस्टेबल बंशीलाल, सादड़ी थाने के हेड कांस्टेबल रामकेश और कांस्टेबल नच्छुराम को सेवा से बर्खास्त कर दिया।
विभाग को अपनों पर नहीं रहा भरोसा
राजस्थान पुलिस हेडक्वार्टर ने पहली बार एक साथ बड़ा डिकॉय ऑपरेशन कर अपनी ही फोर्स के कारनामों का बड़ा खुलासा किया। इस डिकॉय ऑपरेशन में पुलिस अवैध बजरी खनन माफियाओं को प्रोटेक्ट कर रही थी। पुलिस की जाल में उसके अपने 11 थाना प्रभारी फंस गए। ये बजरी माफियाओं के लिए काम करते हुए मिले। इस पर डीजीपी राजीव शर्मा ने इनमें से पांच एसएचओ को सस्पेंड कर दिया और छह को लाइन हाजिर कर दिया।
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9 पुलिस निरीक्षकों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति
पुलिसकर्मी भाजपा सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस नीति की धज्जियां उड़ाते दिख रहे हैं। यही वजह रही आंतरिक जांच के बाद 9 पुलिस निरीक्षकों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई और कई राज्य सेवा अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई। कार्मिकों की कार्य-शैली, कार्य-दक्षता, सत्यनिष्ठा, विभागीय जांच कार्यवाही एवं कार्य मूल्यांकन प्रतिवेदन आदि की जांच कर 9 को बाहर का रास्ता दिखाया।
भ्रष्टाचार में भी अव्वल पुलिस
मार्च, 2024 से अप्रैल, 2025 तक एसीबी ने ट्रैप के 245 मामले दर्ज किए। इनमें सबसे ज्यादा 47 मामले पुलिस विभाग से जुड़े हैं। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि पुलिस विभाग में रिश्वतखोरी के मामले सबसे ज्यादा दर्ज किए गए। गांधी नगर थाने की SI राजकुमारी को 1.25 लाख की रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया। प्रताप नगर थाने के कांस्टेबल कन्हैयालाल मीणा को 5,000 की रिश्वत लेते पकड़ा गया। वहीं एक पुलिसकर्मी के पास से 9 लाख की रिश्वत और 30 लाख नकद मिले थे।
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भ्रष्टाचार के आरोपी आईपीएस को पोस्टिंग
भजनलाल सरकार ने 2010 बैच के आईपीएस मनीष अग्रवाल पोस्टिंग दे दी। ये मनीष अग्रवाल वही हैं, जो फरवरी, 2021 में रिश्वत कांड में गिरफ्तार होकर जेल गए थे। जब वे दौसा जिले के एसपी थे। करीब 8 महीने तक जेल में रहने के बाद वे जमानत पर छूटकर जेल से बाहर आए थे। आईपीएस मनीष के खिलाफ केंद्र सरकार की ओर से अभियोजन स्वीकृति दी जा चुकी है।
आईजी अधिकारी पर भ्रष्टाचार के आरोप
भ्रष्टाचार रोकने का जिम्मा सरकार के जिस डिपार्टमेंट पर है। अगर उसी डिपार्टमेंट के अफसर खुद भ्रष्टाचार में लिप्त हों तो फिर क्या किया जाए। भ्रष्टाचार की जांच करने वाली एसीबी अब खुद भ्रष्टाचार के जाल में फंस गई है। एसीबी में डीआईजी रहते समय आईपीएस विष्णुकांत पर 10 लाख रुपए की रिश्वत लेने का आरोप है। तीन साल पुराने में मामले में एफआईआर दर्ज की गई है।
कांस्टेबल ने अपनों से ही ठगे 50 करोड़
अजमेर पुलिस का एक कांस्टेबल इतना शातिर निकला कि वह अपने ही सैकड़ों साथी पुलिसकर्मियों से करीब 50 करोड़ रुपए से ज्यादा की ठगी करके फरार हो गया। कांस्टेबल को सस्पेंड कर दिया गया है। पड़ताल में सामने आया कि कांस्टेबल ने 1 साल में सैकड़ों पुलिसकर्मियों से 50 करोड़ से अधिक की ठगी की। ठगी का आंकड़ा सामने आते ही अधिकारी सन्न रह गए। अब पूरे मामले की गहराई से जांच शुरू की गई है।
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पुलिस में नहीं थम रहा है भ्रष्टाचार
पुलिस अधिकारी भले ही ऑनलाइन एफआईआर और भ्रष्टाचार मुक्ति की बातें करते हों, लेकिन थानों में छोटे से लेकर बड़े काम के लिए रिश्वत का खुला खेल चल रहा है। घूस के बिना न शिकायत ली जाती है और ना एफआईआर होती है। बदमाशों से मिलीभगत और भ्रष्टाचार के आरोप में कई पुलिस अधिकारी निलंबित हो चुके हैं।
अपनों के खिलाफ चल रहा अभियान
पुलिस महानिदेशक राजीव शर्मा के नेतृत्व में पुलिस ऑपरेशन वज्र प्रहार जैसे अभियान चलाकर अपराधियों पर नकेल कस रही है और अपराध मुक्त राजस्थान बनाने का लक्ष्य रख रही है। वहीं पुलिसकर्मी भ्रष्टाचार और अपराधों में लिप्त हैं। हालात यह हो गए हैं कि पुलिस विभाग को अपने ही कार्मिकों की ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा पर विश्वास नहीं हैं। यही वजह है कि डिकॉय जैसे आपरेशन चलाकर भ्रष्ट पुलिसकर्मियों के खिलाफ पुलिस विभाग को अभियान चलाना पड़ा।
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