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Photograph: (the sootr)
Jaipur. राजस्थान ऊर्जा विकास निगम ने 3200 मेगावाट के बिजली खरीद अनुबंध (प्लांट) के लिए टेंडर जारी कर दिए हैं, जबकि राज्य विद्युत विनियामक आयोग (RERC) की मंजूरी अभी बाकी थी। यह कदम विवादों में घिर गया है, क्योंकि आयोग ने इस अनुबंध पर निर्णय लेने के लिए समय लिया था और अब तक फैसला सुरक्षित रखा गया है।
इस मामले में आयोग से मौखिक रूप से टेंडर जारी करने की अनुमति मांगी गई थी, लेकिन इसके बावजूद निगम ने टेंडर जारी कर दिए। इससे यह सवाल उठता है कि आखिर निगम ने इतनी जल्दबाजी क्यों दिखाई और किसे लाभ पहुंचाने की कोशिश हो सकती है?
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निगम की जल्दबाजी के पीछे क्या कारण?
राजस्थान ऊर्जा विकास निगम ने केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) की रिसोर्स एडिक्वेसी रिपोर्ट के आधार पर 3200 मेगावाट क्षमता के लिए निविदा जारी की। रिपोर्ट में बताया गया था कि वर्ष 2031-32 तक राज्य की बिजली जरूरत 20,532 मेगावाट होगी। डिस्कॉम्स ने राज्य में 6,897 मेगावाट अतिरिक्त बिजली की आवश्यकता जताई थी, जिसमें से 3,756 मेगावाट पहले ही विभिन्न स्रोतों से सुनिश्चित किया जा चुका था। इस शेष 3,141 मेगावाट की आपूर्ति के लिए यह निविदा जारी की गई।
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सीईए की रिपोर्ट में आया संशोधन
इसके बाद केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ने बिजली की वास्तविक मांग का आकलन करते हुए अपनी रिपोर्ट में संशोधन किया। नई रिपोर्ट में 2025-26 से 2035-36 तक राजस्थान की बिजली जरूरत घटाकर 16,561 मेगावाट (15,960 मेगावाट कोयला और 601 मेगावाट गैस) कर दी गई। इससे यह सवाल उठता है कि जब रिपोर्ट में बदलाव आया है, तो क्या निगम ने उसकी जानकारी का सही तरीके से पालन किया?
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बिजली उत्पादन के लिए योजना
3200 मेगावाट के लिए 800-800 मेगावाट की चार यूनिट लगाने का प्रस्ताव है। इन यूनिटों में से पहली यूनिट को 42 माह में चालू किया जाएगा और बाकी यूनिटों का संचालन 6 महीने के अंतराल में होगा। इस योजना के अनुसार, कोयला मंत्रालय ने 60 प्रतिशत (11.11 मीट्रिक टन) कोयला मांड रायगढ़ और 40 प्रतिशत (5.78 मीट्रिक टन) कोरबा फील्ड से आवंटित किया है।
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क्या 25 साल का अनुबंध सही है?
अब सवाल यह उठता है कि जबकि तकनीक लगातार बदल रही है और बिजली उत्पादन की लागत घट रही है, तो फिर 25 साल का अनुबंध क्यों? बाजार में सस्ती दरों पर बिजली के विकल्प उपलब्ध हैं और दिन के समय पर्याप्त सौर ऊर्जा भी उपलब्ध है। ऐसे में 24 घंटे बिजली खरीदने का अनुबंध क्यों किया जा रहा है? क्या केवल पीक आवर्स (Peak Hours) के लिए ही बिजली खरीदने का अनुबंध पर्याप्त नहीं होगा? यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है और इन सभी पहलुओं पर जांच होनी चाहिए।