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Photograph: (the sootr)
Jaipur. सरकारी कर्मचारी और पेंशनरों के लिए चलाई जा रही राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (आरजीएचएस) भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी हुई है। यह योजना प्राइवेट अस्पतालों और मेडिकल स्टोर संचालकों के लिए कमाई का बड़ा माध्यम साबित हुई है। अरबों रुपए का समय पर भुगतान नहीं करने और प्रताड़ित करने जैसे गंभीर आरोप लगाकर बार-बार हड़ताल की धमकी देने वाले प्राइवेट हॉस्पिटल्स की कारगुजारियों को सरकार ने अब पकड़ा है।
सरकार की जांच में सामने आया है कि अस्पताल संचालक भर्ती, ऑपरेशन और दवाइयों के नाम पर भारी-भरकम बिल बनाकर सरकारी खाते से भुगतान उठाने में लगे हुए हैं। इस कृत्य में चिकित्सा विभाग के अधिकारी, कर्मचारी व सरकारी डॉक्टर्स भी लिप्त हैं। भ्रष्टाचार के गठजोड़ की शिकायतें मिली तो सरकार ने आरजीएचएस में शामिल सभी अस्पतालों की ऑडिट जांच करवाई। जांच रिपोर्ट के खुलासे गंभीर वित्तीय अनियमितताओं वाले हैं। जांच में कई नामी-गिरामी हॉस्पिटल समेत सभी तरह के अस्पतालों में भारी गड़बड़ी मिली है।
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अधिकांश हॉस्पिटल्स में मिली गड़बड़ी
राजस्थान के 32 जिलों के हॉस्पिटल्स की जांच की गई तो अधिकांश में गड़बड़ी मिली। कई जिलों में अभी जांच चल रही है। जांच में सामने आया है कि 250 अस्पतालों में आरजीएचएस योजना के तहत अधिक राशि के बिल भेजकर सरकारी कोष को करीब 30 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाया है। चिकित्सा विभाग में प्राइवेट अस्पतालों के बिलों की जांच की उचित व्यवस्था नहीं थी। अस्पतालों ने मनमर्जी से बिल बनाकर भेजे और चिकित्सा विभाग के अधिकारियों ने बिना जांच के ही भुगतान कर दिया। अनुमान है कि मिलीभगत करके निजी हॉस्पिटल्स ने सौ करोड़ रुपए का अधिक भुगतान उठाया है। अब यह राशि वसूलने की तैयारी चल रही है।
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30 करोड़ रुपए की निकाली रिकवरी
चिकित्सा विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि 32 जिलों के अस्पतालों की जांच में 250 में वित्तीय गड़बड़ी मिली है। सबसे ज्यादा गड़बड़ी वाले अस्पताल जयपुर में हैं। 78 अस्पतालों में ज्यादा राशि के बिल पेश करके अधिक भुगतान के मामले पकड़े गए हैं। जोधपुर, झुंझुनूं, सीकर, कोटा, अजमेर, अलवर और उदयपुर के हॉस्पिटल्स भी आरजीएचएस में गड़बड़ी करने में पीछे नहीं रहे हैं। इन सभी अस्पतालों पर करीब 30 करोड़ रुपए की रिकवरी निकाली गई है। विभाग ने रिकवरी वसूलने के लिए नोटिस दिए हैं। नोटिस मिलने के बाद अस्पताल संचालक रिकवरी की राशि जमा करवा रहे हैं। करीब 21 करोड़ रुपए अस्पताल संचालकों ने सरकार को लौटा दिए हैं।
रिकवरी भी, अलग से जांच भी
सबसे ज्यादा जयपुर के अस्पतालों पर करीब साढ़े चार करोड़ रुपए की रिकवरी निकली है। जोधपुर में 3.95 करोड़, उदयपुर में 2.54 करोड़, अलवर के अस्पतालों पर 2.12 करोड़ की पेनल्टी लगाई है। इसी तरह से डूंगरपुर, बारां, बांसवाड़ा, पाली, प्रतापगढ़, जैसलमेर में एक व दो अस्पताल में रिकवरी निकाली गई है, जो कि करीब तीन करोड़ रुपए की है। अभी अस्पतालों पर करीब दस करोड़ रुपए की रिकवरी शेष चल रही है। इसके लिए विभाग लगातार नोटिस दे रहा है। उधर, विभाग ने गड़बड़ी में लिप्त अस्पताल संचालकों और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ अलग से जांच करवा रखी है।
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छह महीने पहले ऑडिट के आदेश
आरजीएचएस योजना में भारी भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों को देखते हुए राज्य सरकार ने मार्च, 2025 में जांच करवाने के आदेश दिए थे। चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर के निर्देश पर वित्त विभाग और स्वास्थ्य विभाग की संयुक्त ऑडिट टीम बनाई गई। जांच में पहली बार सरकारी डॉक्टर्स, सहकारी व प्राइवेट मेडिकल स्टोर्स एवं प्राइवेट हॉस्पिटल्स की आपसी मिलीभगत से करोड़ों रुपए के फर्जी बिलों से भुगतान उठाने के मामले पकड़े गए। इसके बाद सरकार ने लेखा विभाग को योजना में शामिल सभी अस्पतालों की ऑडिट जांच के आदेश दिए गए।
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एआई आधारित डाटा एनालिसिस
चिकित्सा विभाग की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित डाटा एनालिसिस में सामने आया कि कैसे सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों, उनके परिजनों के नाम पर बार-बार एक ही दवाओं के भारी-भरकम बिल बनाकर भुगतान उठा लिया। डॉक्टर्स की पर्चियां भी फर्जी निकलीं, जो बिना ओपीडी नम्बर व रजिस्ट्रेशन की थीं। इस मामले में बीस से अधिक डॉक्टर्स जांच के दायरे में आ चुके हैं।
सरकार एक निजी अस्पताल संचालक, एक मेडिकल स्टोर, तीन डॉक्टरों और एक योजना कार्डधारक के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करवा चुकी है। वहीं डॉ. कविता धनखड़, डॉ. पवन जांगिड़, डॉ. मनीषा, डॉ. नरसीलाल पचौरी, डॉ. कपिल भारद्वाज के अलावा कंपाउंडर मदन मोहन पांडे, चंद्रशेखर जाटव, मोहसिन खान एवं सहायक प्रशासनिक अधिकारी महेश महावर को निलंबित कर चुकी है।
एसीबी भी कर रही घोटाले की जांच
आरजीएचएस के तहत 2021-22 में दवाओं पर 289 करोड़ रुपए खर्च हुए थे, जो 2024-25 में 2500 करोड़ से ज्यादा हो गए। दो साल की अवधि में ही बजट नौ गुणा बढ़ गया। संगठित तरीके से अंजाम दिए गए इस फ्रॉड में सरकारी अधिकारी, डॉक्टर्स, निजी हॉस्पिटल संचालक व अन्य की मिलीभगत देखते हुए राज्य सरकार ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) से भी जांच करवा रही है।
खुल रही फर्जीवाड़े की परतें
घोटाले में कई डॉक्टर और मेडिकल स्टोर संचालक भी शामिल रहे हैं, जिन्होंने फर्जी तरीके से बिल अपलोड कर सरकार को करोड़ों रुपए की चपत लगाई। फर्जी बिल बनाकर भुगतान उठाने को लेकर राज्य में 275 मेडिकल स्टोर्स के लाइसेंस निरस्त हो चुके हैं। अभी कुछ जिलों में हॉस्पिटल्स, मेडिकल स्टोर्स की जांच चल रही है। एसीबी जांच में और भी बड़े खुलासे सामने आ सकते हैं। जांच में सामने आया कि शिक्षा विभाग के कार्यरत शिक्षकों के नाम पर यह फर्जीवाड़ा किया है। अब तक 100 मामले सामने आ चुके हैं। आगे भी इस तरह के कई मामले सामने आने की पूरी संभावना है।