हाई कोर्ट का मानवीय फैसला : पति की हत्या करने वाली पत्नी नहीं जाएगी जेल, आदिवासी महिला से जुड़ा है मामला

राजस्थान हाई कोर्ट की जोधपुर खंडपीठ ने 55 वर्षीय आदिवासी महिला को पति की हत्या के मामले में मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए राहत दी है। कोर्ट ने उसे पुनः जेल नहीं भेजने का फैसला किया। वहीं पूर्व में काटी गई सजा को पर्याप्त बताया।

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Amit Baijnath Garg
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Photograph: (the sootr)

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Jodhpur. राजस्थान हाई कोर्ट की जोधपुर पीठ ने एक पुराने आपराधिक मामले में मानवीय दृष्टिकोण अपनाया और 55 वर्षीय आदिवासी महिला काली को बड़ी राहत दी। कोर्ट ने कहा कि किसी गरीब महिला पर सिस्टम की गलती का बोझ नहीं डाला जा सकता और उसे दोबारा जेल भेजना अमानवीय होगा। इस फैसले ने न्याय प्रणाली में सुधारात्मक दृष्टिकोण को उजागर किया है।

घरेलू विवाद के कारण हत्या

यह मामला वर्ष 2003 का है, जब बांसवाड़ा जिले के पहाड़ी इलाके में रहने वाली काली ने अपने पति से हुए घरेलू विवाद के बाद गुस्से में आकर कुल्हाड़ी से वार किया था। इस घटना में उसके पति की मौत हो गई। ट्रायल कोर्ट ने 2004 में काली को हत्या का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई, जिसके खिलाफ काली ने अपील की थी।

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हाई कोर्ट का आंशिक संशोधन

18 जुलाई, 2011 को हाई कोर्ट ने इस मामले में आंशिक संशोधन करते हुए हत्या को गैर-इरादतन हत्या मान लिया और यह मानते हुए महिला को रिहा कर दिया कि वह करीब 8 साल जेल में रह चुकी थी। बाद में यह तथ्य गलत पाया गया और यह सामने आया कि काली ने केवल 2 साल जेल में बिताए थे।

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तथ्यात्मक गलती का खुलासा

यह तथ्यात्मक गलती 4 अगस्त, 2011 को सामने आई, जब अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने इस बारे में हाई कोर्ट को पत्र लिखा। अदालत ने माना कि यह चूक रजिस्ट्री, ट्रायल कोर्ट और सरकारी तंत्र के बीच समन्वय की कमी के कारण हुई।

कोर्ट का निर्णय

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यह गलती महिला की नहीं थी और उसे दोबारा जेल भेजना अन्यायपूर्ण होगा। जस्टिस फरजंद अली और जस्टिस आनंद शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि घटना अचानक घरेलू विवाद में हुई थी, जिसमें कोई पूर्व योजना नहीं थी और केवल एक ही वार किया गया था।

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महिला का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं

कोर्ट ने यह भी ध्यान में रखा कि काली का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था और रिहाई के बाद उसके खिलाफ कोई शिकायत दर्ज नहीं हुई। खंडपीठ ने कहा कि 20 साल बाद शेष 6 साल की सजा के लिए उसे दोबारा जेल भेजना न तो सुधारात्मक होगा और न ही न्यायसंगत।

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न्याय का उद्देश्य सुधार, प्रतिशोध नहीं

कोर्ट ने कहा कि न्याय का उद्देश्य केवल सुधार है, प्रतिशोध नहीं। इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया कि अगर किसी व्यक्ति ने सजा के रूप में एक बड़ा मानसिक बोझ उठाया है, तो उसे और सजा देना अन्याय होगा। काली को न्याय दिलाने के लिए अब कोई अतिरिक्त कानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी।

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मुख्य बिंदु

  • काली को 2004 में हत्या का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। 2011 में हाई कोर्ट ने आंशिक संशोधन कर उसे रिहा कर दिया था। हालांकि यह तथ्य बाद में गलत पाया गया था कि वह 8 साल जेल में रही थी।
  • हाई कोर्ट ने माना कि काली ने जेल में जो समय बिताया, वह उसके लिए पर्याप्त था। 20 साल बाद शेष 6 साल की सजा के लिए उसे जेल भेजना अन्यायपूर्ण होगा, क्योंकि महिला का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था। उसकी सजा के बाद उसने कोई अपराध नहीं किया।
  • हाई कोर्ट ने काली की सजा को पर्याप्त मानते हुए उसे दोबारा जेल भेजने का आदेश नहीं दिया। न्याय का उद्देश्य सुधार है, प्रतिशोध नहीं। काली को न्याय दिलाने के लिए अब कोई अतिरिक्त कानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी।
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