सां​वलिया सेठ मंदिर का खजाना देवताओं का, राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकती सरकार

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित सांवालिया सेठ मंदिर के खजाने पर सिविल कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी। मंदिर का खजाना देवताओं का है, जिसका राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकती सरकार। हर महीने 28 करोड़ रुपए का आता है चढ़ावा।

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Mukesh Sharma
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Photograph: (the sootr)

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राजस्थान के प्रसिद्ध कृष्णधाम श्री सांवलिया सेठ मंदिर के करोड़ों रुपए के खजाने पर सिविल कोर्ट ने कहा है कि यह सरकारी खजाना नहीं है और चढ़ावे के रूप में मंदिर को प्राप्त होने वाली राशि को किसी भी प्रकार के राजनीतिक दबाव या उद्देश्य के लिए काम में नहीं लिया जा सकता। उल्लेखनीय है कि सांवलिया सेठ मंदिर में हर महीने करीब 28 करोड़ रुपए का चढ़ावा आता है। 

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कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला

कोर्ट के इस फैसले से हर महीने मिलने वाले चढ़ावे पर कब्जा करने की मंशा रखने वाले नेताओं की मंशा पर रोक लगेगी और मनमाने तरीकों से खर्च भी रुकेगा। मंडफिया सिविल जज विकास कुमार ने इस मामले में जनहित याचिका पर यह आदेश दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि सांवलिया जी की संपत्ति को अब मंदिर मंडल के प्रावधानों के विपरीत तथा बाहरी क्षेत्रों में या राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए खर्च नहीं किया जा सकेगा। 

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यह था मामला

साल 2018 में मुख्यमंत्री की बजट घोषणा के तहत मातृकुंडिया तीर्थस्थल विकास के लिए मंदिर मंडल की ओर से 18 करोड़ रुपए जारी करने का प्रस्ताव लाने पर विवाद शुरू हुआ था। इस प्रस्ताव को प्रार्थी मदन जैन, कैलाश डाड और श्रवण तिवारी सहित स्थानीय निवासियों ने मंडफिया कोर्ट में एक जनहित वाद दायर करके चुनौती दी थी। 

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भक्तों की राशि का दुरुपयोग

वाद दायर करने वालों का कहना था कि मंदिर मंडल भक्तों और स्थानीय निवासियों की निशुल्क भोजनशाला, पार्किंग, शौचालय, चिकित्सा सेवा, उच्च स्तरीय अस्पताल और स्कूल जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को नजरअंदाज करके राजनीतिक लाभ के लिए बाहरी क्षेत्रों में भक्तों की राशि का दुरुपयोग कर रहा है। यह रवैया ठीक नहीं कहा जा सकता।

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मंदिर के देवता की संपत्ति है चढ़ावा

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि सांवलिया मंदिर मंडल की संपत्ति सरकार का खजाना नहीं होकर मंदिर के देवता की संपत्ति है। इसका उपयोग किसी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए नहीं किया जा सकता। वहीं कोर्ट ने चेतावनी दी है कि यदि मंदिर मंडल मंदिर की संपत्ति का दुरुपयोग करता है, तो यह आपराधिक न्यास भंग का अपराध होगा और संबंधित अधिकारी इस अपराध के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे। ऐसे लोगों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। 

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जारी ना हो कोई राशि

कोर्ट ने मंदिर मंडल के मुख्य कार्यपालक अधिकारी और अध्यक्ष को इस 18 करोड़ रुपए के प्रस्ताव की पालना में कोई भी राशि जारी न करने के लिए स्थाई निषेधाज्ञा से पाबंद किया है। कोर्ट ने कहा है कि मंदिर मंडल अधिनियम 1992 की धारा 28 के प्रावधान के विपरीत मंदिर निधि का किसी भी रूप में दुरुपयोग नहीं कर सकता। 

नेताओं की मंशा पर लगी लगाम

अदालत के इस फैसले के बाद अब सांवलिया जी के भंडार से बड़ी राशि गौशालाओं या अन्य बाहरी संस्थाओं को देने की मांग करने की राजनेताओं के प्रयासों पर रोक लग गई है। अभी पिछले दिनों ही कुछ भाजपा नेताओं और धर्मगुरुओं सहित कई संस्थाओं ने गौशालाओं के लिए मंदिर के चढ़ावे से फंड देने की मांग की थी। कांग्रेस सरकार में देवस्थान मंत्री रही शकुंतला रावत ने भी गौशालाओं का मंदिर के चढ़ावे में से पैसा देने की कोशिश की थी, लेकिन विरोध के कारण यह यह संभव नहीं हुआ।

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