सांवलिया सेठ : मन्नतें ही नहीं मांगते, कमाई में भागीदार भी मानते हैं भक्त, इस बार सालाना चढ़ावा 225 करोड़ पार

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के सांवलिया सेठ के प्रति भक्तों की आस्था के चलते इस बार चढ़ावा 225 करोड़ पार। भक्त व्यापार में कमाई का एक हिस्सा सांवलिया को समर्पित करते हैं। करोड़ों की राशि के साथ सोने-चांदी के जेवरात भी चढ़ाते हैं।

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Rakesh Kumar Sharma
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Sanwalia seth mandir

Photograph: (the sootr)

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Chittorgarh. राजस्थान के चित्तौड़गढ़ का सांवलिया सेठ मंदिर धार्मिक आस्था का बड़ा केंद्र बन गया है। हर साल लाखों भक्त दर्शनों के लिए आते हैं, साथ ही सेठ को भागीदार मानते हुए कमाई का बड़ा हिस्सा भी अर्पित करते हैं। यही वजह है कि यहां लगातार चढ़ावा बढ़ता जा रहा है। दिन दोगुनी रात चौगुनी गति से चढ़ावा की राशि बढ़ रही है। 

भक्त भगवान को साझेदार मान कमाई राशि के रूप में भेंट करते हैं। बहुत से भक्त सोने-चांदी के जेवरात, मोर पंख, बांसुरी जैसी आकृति मंदिर में चढ़ाते हैं। गुप्त दान भी खूब आता है। हर महीने मंदिर की दान पेटियों को खोला जाता हैं।

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वार्षिक चढ़ावा 225 करोड़ रुपए पार

सांवलिया सेठ मंदिर में चढ़ावा इस साल 225 करोड़ रुपए पार कर गया है, जो कि एक कीर्तिमान है। करीब 35 साल पहले तक मंदिर में पूरे साल 65 लाख रुपए चढ़ावा आया था। तब से यह हर साल लगातार बढ़ता ही जा रहा है। चढ़ावे में तीन सौ गुना वृद्धि हो गई है। साथ ही भक्तों की संख्या हजारों से लाखों में पहुंच गई है। तीज-त्यौहार जैसे चतुर्दशी, अमावस्या और जन्माष्टमी पर तो 10 से 15 लाख भक्त दर्शनों के लिए आते हैं। मंदिर परिसर में पैर रखने की जगह नहीं मिलती है।

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पहली बार 1991 में खोला गया था दान पात्र

सांवलिया सेठ मंदिर में पहली बार 1991 में दान पात्र खोले गए गए थे। तब 65.45 लाख रुपए का चढ़ावा आया था। तब से चढ़ावे की राशि लगातार बढ़ रही है। सांवलिया सेठ के प्रति लोगों की आस्था और भक्ति बढ़ती ही गई। देखते ही देखते सैकड़ों व हजारों में आने वाले भक्त लाखों में पहुंच गए। साथ ही 65 लाख रुपए का चढ़ावा भी हर साल करोड़, दो करोड़, तीन करोड़ से होते हुए अब 2025 में 225 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। यह सब भगवान सांवलिया सेठ में बढ़ते विश्वास और भक्तों की अटूट आस्था के चलते हुआ।

हर महीने चढ़ाते हैं कमाई

भक्त भगवान को सिर्फ मन्नतें नहीं मांगते हैं। वे सांवलिया सेठ को अपना बिजनेस साझेदार भी मानते हैं। व्यापार में जो भी कमाई होती है, उसका एक बड़ा हिस्सा यहां अर्पित करते हैं। भक्त पैसों के रूप में तो सोने-चांदी में सांवरा सेठ को चढ़ावा देते हैं। बहुत से भक्त तो ऐसे हैं, जो नियमित रुप से हर महीने अपनी कमाई भेंट स्वरूप चढ़ाते हैं।

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आस्था के साथ चढ़ावा भी बढ़ा

कई मामले तो ऐसे सामने आए हैं, जिनमें भक्तों ने सांवलिया सेठ के साथ की गई पार्टनरशिप को स्टांप पेपर पर लिखकर मंदिर में अर्पित किया है। इसमें व्यापार और हिस्सेदारी का जिक्र होता है। कोई नया व्यापार में पार्टनर बनाता है, तो कई नौकरी लगने पर तनख्वाह में पार्टनरशिप देते हैं। सांवरिया सेठ के प्रति आस्था के साथ चढ़ावा भी बढ़ता ही जा रहा है।

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चतुर्दशी के दिन खोले जाते हैं दान पात्र

मंदिर में हर महीने अमावस्या से पहले चतुर्दशी के दिन दान पात्र खोले जाते हैं। चढ़ावे में इतनी राशि आती है कि इसे गिनने में कई कर्मचारी लगाने पड़ते हैं। नोटों को छांटने और गिनने में एक सप्ताह से दस दिन का समय लग जाता है। दान पात्र में नकद राशि के साथ बड़ी संख्या में चेक, मनी ऑर्डर भी मिलते हैं। 

ऑनलाइन माध्यमों से भी भेंट

इसके अलावा फोनपे जैसे ऑनलाइन माध्यमों से भी भेंट दी जाती है। विदेशी सैलानी भी सांवलिया सेठ को दान देते हैं। वे अपनी विदेशी करेंसी भेंट स्वरूप चढ़ाते हैं। सोने-चांदी के गहने, सिक्के, आभूषण भी आते हैं। सांवलिया सेठ की ख्याति इतनी हो गई है कि राजस्थान के अलावा देश भर से भक्त यहां आते हैं।

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ग्वाले को दिए दर्शन

बताया जाता है कि करीब तीन सौ साल पहले मंडफिया गांव के एक ग्वाला भोलीराम गुर्जर रोज अपनी गायों को चराने जंगल में जाया करता था। एक दिन दोपहर में वह एक पेड़ के नीचे आराम कर रहा था, तभी उन्हें सपने में भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप सांवलिया सेठ ने दर्शन दिए और कहा कि मैं यहीं दबा हुआ हूं, मुझे बाहर निकालो। भोलीराम ने जब यह बात गांववालों को बताई। गांववालों ने खुदाई शुरू की तो तीन एक जैसी मूर्तियां निकलीं। 

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श्याम वर्ण के कारण दिया नाम

ग्रामीणों ने इन मूर्तियों को श्रीकृष्ण का ही रूप माना और उनके श्याम वर्ण के कारण उन्हें सांवलिया सेठ का नाम दिया। तीनों मूर्तियों में से एक मूर्ति भोलीराम अपने घर मंडफिया लेकर आए और उसे घर के परिंडे में स्थापित कर पूजा-पाठ शुरू कर दी। धीरे-धीरे इन तीनों स्थानों पर मंदिर बने, लेकिन मंडफिया स्थित मंदिर की ख्याति सबसे ज्यादा बढ़ी। यही वह स्थान है, जिसे आज सांवलिया सेठ मंदिर के रूप में जाना जाता है।

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