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Jaipur. राजस्थान के मेड़ता में दीपावली पर मिट्टी के दीयों को प्रोत्साहित करने के लिए अनुकरणीय पहल की गई है। मेड़ता की एसडीएम पूनम ने एक आदेश जारी कर सभी सरकारी कार्यालयों से कहा है कि मिट्टी के दीये बेचने वालों से किसी भी तरह का कर वसूला नहीं जाए।
एक अधिकारी ने बताया कि इस आदेश का उद्देश्य न केवल पारंपरिक कारीगरों और कुम्हार समाज को प्रोत्साहन देना है, बल्कि पर्यावरण की दृष्टि से भी स्वदेशी संस्कृति को बढ़ावा देना है। यह आदेश पीएम नरेंद्र मोदी के वोकल फॉर लोकल के नारे को भी आगे बढ़ाता है।
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मिट्टी के दीये बेचने वालों को परेशानी न हो
आदेश में सभी सरकारी कार्यालयों, स्वायत्त संस्थाओं और निकायों से कहा गया है कि दीपावली के अवसर पर ग्रामीणों की ओर से दीपावली पर मिट्टी के दीये बेचने के लिए बाजार में लाए जाते हैं। ऐसे लोगों को किसी तरह की असुविधा नहीं होनी चाहिए। साथ ही इनसे किसी भी तरह की कर वसूली नहीं की जाए।
मेड़ता एसडीएम कार्यालय के एक अधिकारी का कहना है कि आम तौर त्योहार के समय विशेष बाजार लगाने के समय ऐसे दुकानदारों से भी स्थानीय निकाय या ग्राम पंचायत लेवी वसूलती हैं। इसे रोकने के लिए यह आदेश जारी किया गया है।
स्वदेशी मुहिम बढ़ेगी आगेअधिकारी के मुताबिक, स्वदेशी और पर्यावरण फ्रेंडली बस्तुओं को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है कि चाइनीज लाइट्स और प्लास्टिक सामग्री के बजाय मिट्टी से बने दीयों का उपयोग किया जाए। इस आदेश को अनुकरणीय सामाजिक पहल के रूप में देखा जा रहा है। इस पहल का मकसद स्थानीय कारीगरों को सशक्त बनाना और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना है। संभव हो तो दीयों की खरीद स्थानीय बाजारों से की जाए, ताकि ग्रामीण और अर्धशहरी इलाकों में कार्यरत कुम्हारों की आमदनी में बढ़ोतरी हो। दीपावली पर लाखों रुपए की चाइनीज सजावट खरीदने की बजाय अगर लोग स्थानीय दीये खरीदें तो हजारों परिवारों की आजीविका में प्रकाश लौट आएगा। | |
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मिट्टी के दीयों से पर्यावरण को नुकसान नहीं
पर्यावरण विशेषज्ञों ने भी इस आदेश की सराहना की है। उनका कहना है कि मिट्टी के दीये पूरी तरह प्राकृतिक हैं। जलने के बाद पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुँचाते, जबकि प्लास्टिक लाइट्स बिजली की खपत बढ़ाती हैं और रीसायकल नहीं होतीं।
इस पहल से यह उम्मीद की जा सकती है कि दीपावली का त्योहार अब चमक से ज्यादा चरित्र का प्रतीक बनेगा, जहाँ रोशनी के साथ स्थानीय कला, परंपरा और प्रकृति का संतुलन भी झलकेगा। आमतौर पर इस तरह के दीपकों पर कर नहीं लगता लेकिन हाट बाजार लगाने पर स्थानीय स्तर पर कर की वसूली होती है।