देश सेवा के लिए लंदन से वापस आईं, दूसरे प्रयास में ८वीं रैंक लाकर बनीं आईएएस हर्षिका सिंह

लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़ाई के बाद हर्षिता ने विदेशी जॉब ऑफर ठुकराकर देश सेवा का रास्ता चुना। बिना किसी कोचिंग के उन्होंने 2011 में UPSC में 8वीं रैंक हासिल की। आज वह अपनी ईमानदार, संवेदनशील और निर्भीक कार्यशैली के लिए जानी जाती हैं।

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Abhilasha Saksena Chakraborty
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IAS Harshika Singh
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आईएएस हर्षिका सिंह उन अफसरों में से हैं, जिनके लिए सिविल सेवा नौकरी से कही बढ़कर है। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से मास्टर डिग्री, विदेश में आकर्षक नौकरियों के प्रस्ताव, लेकिन सबकुछ छोड़कर उन्होंने वह रास्ता चुना जहां चुनौतियां ज्यादा थीं।

2012 बैच की IAS अधिकारी हर्षिका सिंह आज मध्य प्रदेश की प्रशासनिक सेवा में एक जाना-माना नाम हैं।

बचपन से ही सपना था कलेक्टर बनने का

हर्षिका का जन्म झारखंड के रांची में हुआ। नामकुम स्थित बिशप वेस्टकॉट गर्ल्स स्कूल से शिक्षा प्राप्त की। उसके बाद सेंट जेवियर्स कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक किया। बचपन से ही वो आईएएस बनना चाहती थीं।

वो बताती हैं कि एक दिन बाजार जाते समय उन्होंने अपने माता-पिता से पूछा कि इस पीली बत्ती वाली गाड़ी में कौन बैठा है? जवाब मिला ये जिला कलेक्टर की गाड़ी है। उसी पल उन्हें लगा कि यही ऐसा पद है जहां आप एक जिले की तकदीर बदल सकते हैं।

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लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से UPSC तक

स्नातक के बाद उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से मास्टर्स किया। इसके बाद उन्हें लंदन में नौकरियों के कई ऑफर मिले।

लेकिन, हर्षिका का मन उस जनता के लिए धड़कता था, जिसका जीवन सुविधाओं, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए आज भी संघर्ष से भरा है। इसलिए वह भारत लौटीं। UPSC की तैयारी शुरू की, और पहले ही प्रयास में परीक्षा पास कर ली।

हालांकि रैंक अच्छी नहीं मिली। कुछ समय के लिए वो डिप्रेशन में भी आ गईं। लेकिन, माता-पिता के समझाने से उन्होंने फिर कोशिश करने का फैसला किया। दूसरे प्रयास में उन्होंने देशभर में AIR 8 लाकर यह लक्ष्य हासिल कर की।

Harshika Singh

बिना कोचिंग के तैयारी की

IAS Harshika Singh ने प्रीलिम्स से लेकर इंटरव्यू तक कोई कोचिंग नहीं ली। मॉक टेस्ट भी नहीं दिए। बस नियमित रूप से 8-10 घंटे सेल्फ स्टडी को दिए। बीच में बोर होने पर 10 मिनट का ब्रेक लेती थीं। कई बार पढ़कर थक जाती थी तो लेट जाती थी। उस समय मेरी माँ मुझे पढ़कर सुनाती थीं। 

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बैकअप जरूरी है

हर्षिका कहती हैं सिविल सेवा में सफलता के लिए मेहनत के साथ ही क़िस्मत का भी महत्व है। इसलिए इसके साथ बैकअप रखना जरूरी है। अगर मेरा चयन नहीं होता तो मैं अकादमिक क्षेत्र में करियर बनाती।

ये संतोष विदेश में नहीं मिल सकता था 

ट्रेनिंग के बाद उनकी पहली नियुक्ति नक्सलवाद से प्रभावित क्षेत्र में हुई। यहां हर कदम जोखिम भरा था और हर निर्णय का सीधा असर वहां के लोगों की जिंदगियों पर पड़ता था। एक चुनाव को शांतिपूर्वक संपन्न कराना उनके शुरुआती बड़े कार्यों में से एक था।

वहीँ एक 80 वर्षीय महिला ने, अपनी जिंदगी में पहली बार पेंशन खाते में आते देख, उनके हाथ में मिठाई खिलाई। वह एक ऐसा क्षण था जिसने हर्षिका को यह भरोसा दिलाया कि विदेश की नौकरी इस संतोष की बराबरी नहीं कर सकती थी।

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मंडला में आईएएस हर्षिका के काम को प्रधानमंत्री ने भी सराहा

मंडला एक आदिवासी बहुल जिला था जहाँ लगभग 2.25 लाख लोग कार्यात्मक रूप से निरक्षर थे। लोगों से लगातार यह शिकायत मिलती कि धोखेबाज उनके बैंक खातों से पैसे निकाल लेते हैं।

हर्षिका सिंह ने इस समस्या को जड़ से खत्म करने का संकल्प लिया। 2020 में उन्होंने पूर्ण कार्यात्मक साक्षरता अभियान शुरू किया।

गांवों की पढ़ी-लिखी महिलाओं को शिक्षक बनाया।  15 अगस्त 2020 से शुरू हुए इस मिशन ने सिर्फ दो साल में पूरे जिले को 100% कार्यात्मक रूप से साक्षर बना दिया। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं हर्षिका सिंह को सम्मानित किया।

IAS Harshika SIngh

अनपढ़ महिलाओं को पढ़ाने का जिम्मा उठाया IAS Harshika ने 

टीकमगढ़ में कलेक्टर रहते हुए, उन्होंने 35 ग्राम पंचायतों में महिला ज्ञानालय विद्यालय शुरू किए। इसमें स्कूली पढ़ाई छोड़ चुकी महिलाओं को फिर से शिक्षा से जोड़ा गया।

इन विद्यालयों की शिक्षिकाएं उन्हीं महिलाओं की बहुएं थीं जो अब अपनी सास को फिर से पढ़ना सिखा रही थीं।

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विवाद भी आए पर हर्षिका रहीं दृढ़

जबलपुर में जिला पंचायत अध्यक्ष से एक ठेके को लेकर हुई झूमाझटकी ने विवाद खड़ा किया। इसकी शिकायत हर्षिका ने कलेक्टर और कमिश्नर तक पहुंचाई।

महिला अधिकारी के रूप में झेली चुनौतियां

हर्षिका सिंह बताती हैं कि अपने दस साल के प्रशासनिक करियर में उन्होंने देश के कई अत्यंत रूढ़िवादी और पितृसत्तात्मक क्षेत्रों में काम किया, जहाँ एक महिला अधिकारी के रूप में स्वीकार्यता और आत्मविश्वास बनाना शुरू-शुरू में काफी चुनौतीपूर्ण था।

लेकिन, समय के साथ उन्होंने एक स्पष्ट बदलाव महसूस किया है। अब वे ऐसे इलाकों में हैं जहाँ लोगों के लिए महिला अधिकारियों के साथ मिलकर काम करना बिल्कुल सामान्य हो चुका है। उनके अनुसार, समाज में यह परिवर्तन वास्तव में एक बेहद सकारात्मक संकेत है।

IAS Harshika

योग और ध्यान से रहती हैं मेंटली फिट

शारीरिक और मानसिक रूप से खुद को फिट रखने के लिए हर्षिका नियमित रूप से योग और ध्यान करती हैं।

इसके अलावा उन्हें किताबें पढ़ने का भी शौक है। वो आज भी हर दिन सोने से पहले किताब पढ़ती हैं। भरतनाट्यम और कथक जैसे शास्त्रीय नृत्यों में भी वो रुचि रखती हैं।

पति भी हैं आईएएस 

आईएएस हर्षिका सिंह के पति भी आईएएस हैं। रीवा के रहने वाले आईएएस रोहित सिंह इस समय मध्‍य प्रदेश सरकार में अतिरिक्त सचिव, वित्त विभाग के पद पर कार्यरत हैं। 

IAS Harshika with husband

करियर एक नजर 

  • नाम: आईएएस हर्षिका सिंह 
  • जन्म: 29-11-1986
  • जन्मस्थान: रांची, झारखंड 
  • एजुकेशन: एमएससी. आर्थिक इतिहास
  • बैच: 2012
  • केडर: मध्य प्रदेश 

पदस्थापना 

आईएएस हर्षिका सिंह वर्तमान में कौशल विकास विभाग, मध्‍य प्रदेश के निदेशक के पद पर कार्यरत हैं। इसके पहले वो इंदौर नगर निगम कमिश्नर के रूप में पदस्थ थीं। वो मण्डला, रीवा कलेक्टर, टीकमगढ़ में जिला पंचायत सीईओ, असिस्टेंट कलेक्टर बालाघाट भी रह चुकी हैं। 

देखें आईएएस हर्षिका सिंह का सर्विस रिकॉर्ड 

Service record of IAS Harshika Singh

IAS Harshika Singh: Social Media Profile

IAS Harshika Singh – Social Media Profiles

IAS Harshika SIngh कई युवाओं के लिए प्रेरणा हैं। उनकी कहानी यह साबित करती है कि जब किसी व्यक्ति के पास सपने हों, सोच हो और सेवा का जज़्बा हो, तो एक अफसर भी बड़े प्रशासनिक बदलाव कर सकता है।

FAQ

AS हर्षिका सिंह कौन हैं?
हर्षिका सिंह 2012 बैच की भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी हैं। उन्होंने मध्यप्रदेश में मंडला कलेक्टर, टीकमगढ़ कलेक्टर, इंदौर नगर निगम कमिश्नर और अन्य महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है।
IAS हर्षिका सिंह की UPSC रैंक क्या थी?
उन्होंने 2011 में UPSC सिविल सेवा परीक्षा में AIR 8 हासिल की थी।
‘महिला ज्ञानालय विद्यालय’ क्या हैं और इन्हें क्यों शुरू किया गया?
ये विशेष विद्यालय हर्षिका सिंह ने टीकमगढ़ में शुरू किए, जिनका उद्देश्य स्कूल छोड़ चुकी महिलाओं को फिर से शिक्षा से जोड़ना था। इन विद्यालयों में महिलाओं की बहुएँ अध्यापन करती थीं।

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