कलेक्टर का पद पुराना हो चुका, एक आदमी के कंधों पर सारा बोझ- यह देश बर्बाद करने जैसा

पूर्व आईएएस अधिकारी टीआर रघुनंदन ने जिला कलेक्टर के पद को पुराना और विकास में बाधक बताते हुए कहा है कि आईएएस ने कलेक्टर के फरफेक्ट होने का मिथक फैला रखा है।

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टीआर रघुनंदन
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जिला मजिस्ट्रेट में प्रशासनिक शक्तियों का केंद्रीकरण विकास में बाधक है। आईएएस समुदाय ने कलेक्टर के परफेक्ट होने के मिथक को सावधानी से पोषित किया है और यह नैरेटिव थोपा है कि नागरिकों को नियंत्रण में रखना चाहिए। यह कहना है पूर्व आईएएस अधिकारी टीआर रघुनंदन का।

द प्रिंट में प्रकाशित एक लेख में वे कहते हैं- जहां तक मेरा सवाल है, मुझे आईएएस अधिकारी होने पर अत्यधिक गर्व है। सेवा में शामिल होने वाले किसी भी व्यक्ति की क्षमता पर कोई आक्षेप नहीं है। तीन-स्तरीय प्रक्रिया के माध्यम से चुना गया कोई भी व्यक्ति, जो लगभग दस लाख उम्मीदवारों में से चुना जाता है, निस्संदेह सक्षम होगा। लेकिन सवाल कई हैं…

T.R. Raghunandan - Accountability Initiative: Responsive Governance

थके आदमी पर पूरी जिम्मेदारी

कर्नाटक कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी टीआर रघुनंदन ने जिला कलेक्टर के पद को भारतीय प्रशासन की पुरानी और अविकसित सोच करार दिया है। उन्होंने कहा कि तीन दशकों के आर्थिक सुधारों और स्थानीय सरकारों को संवैधानिक अधिकार देने के बावजूद, प्रशासन की शक्ति आज भी एक थके हुए अधिकारी के कंधों पर है, जो विकास के रास्ते में बड़ी बाधा बन गया है।

IAS की अचूकता का मिथक गढ़ा गया

रघुनंदन ने आईएएस की उस मानसिकता की आलोचना की, जिसने कलेक्टर की ‘अचूकता’ का मिथक गढ़ रखा है और नागरिकों को नियंत्रित करने का ढोंग रचा है।

वे कहते हैं कि यह केंद्रीकरण विकास की गाड़ी को धीमा कर रहा है और स्थानीय लोकतंत्र को कमजोर बना रहा है। उन्होंने 1987-92 के कर्नाटक के सुधार प्रयोग का उदाहरण देते हुए बताया कि जब कलेक्टर को जिला परिषद के प्रमुख के अधीन कर दिया गया, तो कोई अराजकता नहीं हुई, परंतु आईएएस ने 1992 में पुनः नियंत्रण वापस ले लिया।

विकेंद्रीकरण के विरोधी हैं आईएएस 

उन्होंने यह भी कहा कि आईएएस के कई अधिकारी विकेंद्रीकरण के विरोधी हैं और स्थानीय स्तर की जवाबदेही को कमजोर करते हैं, उदाहरण स्वरूप स्मार्ट सिटी मिशन जैसे कार्यक्रम जो चुनी हुई संस्थाओं को दरकिनार कर विशेष प्राधिकरणों के माध्यम से चलते हैं।

रघुनंदन ने राजनीतिक स्तर पर भागीदारी शासन को बढ़ावा देने की कमी पर भी चिंता जताई और कहा कि बिना सशक्त स्थानीय सरकारों के भारत का विकास अधर में लटका रहेगा।

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    सिविल सेवा और सेना की तुलना? बिल्कुल बेवकूफी!

    सिविल सेवा को सेना से मत मिलाओ! सेना वालों को मारना-मारना सिखाया जाता है, वो अपनी जान पर खेलते हैं। उनके लिए मारना और मरना एक पेशेवर ड्यूटी है, जो पूरी तरह असहज और अनैतिक है। वो अपनी इंसानी स्वाभाविक प्रवृत्ति 'जीओ और जीने देने' को दबा कर काम करते हैं।

    सिविल सेवक मारते नहीं, जनता की सेवा करते हैं! अब सिविल सेवकों से उम्मीद ये नहीं कि वो किसी को मारें या खुद मरें। वे अपने ही नागरिकों की सेवा करते हैं, संविधान और कानून का पालन करते हैं। उनकी कोई भी सोच, झुकाव या समूह की भलाई, जनता की सेवा में बाधा नहीं बननी चाहिए।

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    जिला कलेक्टर का पद—ब्रिटिश साम्राज्य की बकवास

    जिला कलेक्टर वो पद है जो ब्रिटिशों ने बनाया था ताकि वे विदेशी कब्जे के खिलाफ विद्रोहियों को दबा सकें। आज भी उस पद में सारी शक्ति एक ही हाथ में केंद्रीकृत है।

    जबकि भारत ने 30 साल पहले आर्थिक सुधार किए और स्थानीय सरकारों को ताकत दी, पर जिला प्रशासन अभी भी वही पुरानी तानाशाही पर टिका है।

    एक आदमी के कंधों पर सारा बोझ- यह देश को बर्बाद करने जैसा है!

    जिला कलेक्टर इतना काम नहीं संभाल सकता, जितना उसे थमा दिया गया है। वो विकास का सहायक नहीं, बल्कि एक बड़ी अड़चन है। सारे नियम-कानून की जिम्मेदारी एक व्यक्ति पर डालना सिस्टम की सबसे बड़ी कमी है।

    कलेक्टर के पास कमेटियों का जाल- एक आदमी के लिए नामुमकिन

    आंध्र प्रदेश और असम में जिला कलेक्टर 40 से ज्यादा कमेटियों के प्रमुख होते हैं, जो और भी ज्यादा बढ़ गया होगा। क्या आईएएस वालों को ये समझ नहीं आता कि ये केंद्रीकरण बेतुका है? ये सारे काम कैसे संभालेंगे?

    मध्यप्रदेश में वर्कलोड और भी ज्यादा 

    मध्यप्रदेश प्रशासनिक मैनुअल, द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) रिपोर्ट, और जिला स्तरीय अध्ययनों के अनुसार मध्यप्रदेश में जिला कलेक्टर (डीएम/डिप्टी कमिश्नर) विभिन्न विभागों और योजनाओं से जुड़ी 50 से अधिक समितियों की अध्यक्षता या सदस्यता करते हैं। यह संख्या अन्य राज्यों (जैसे आंध्र प्रदेश में 50, असम में 43 समितियों) के समान है, लेकिन वास्तविक आंकड़ा इससे भी अधिक हो सकता है। 

    कर्नाटक मॉडल को आईएएस ने क्यों दबाया

    1987-92 में कर्नाटक ने जिला परिषदों को ताकत दी और कलेक्टर की शक्तियां घटाईं। जनता को फायदा हुआ, विकास तेज हुआ। लेकिन आईएएस को ये पसंद नहीं आया। उन्होंने उस सुधार को खत्म कर कलेक्टर को फिर से वापस लाकर सारे फैसले अपने पास कर लिए।

     स्थानीय सरकारों से नफरत का सिलसिला पुराना 

    आईएएस अधिकारियों को स्थानीय सरकारें मजबूत होती नहीं दिखतीं, ये साफ़ है। वे कहते हैं कि नेताओं की वजह से विकेंद्रीकरण नहीं हो पा रहा, लेकिन असलियत में ये वही आईएएस वाले हैं जो स्थानीय सरकारों की ताकत खत्म करने के जुगाड़ करते हैं।

    स्मार्ट सिटी मिशन और आईएएस का तंत्र

    स्मार्ट सिटी जैसे प्रोजेक्ट में स्थानीय निकायों को छोड़कर खास प्राइवेट कंपनियां आईएएस अधिकारियों के नियंत्रण में होती हैं। इनका कोई जवाबदेह स्थानीय स्तर पर नहीं होता। ये आईएएस की बनाई हुई रणनीति है!

    स्थानीय शक्ति का घोर अभाव 

    आईएएस अधिकारियों के पास स्थानीय सरकारों को कमजोर करने के लिए हमेशा एक ही बहाना होता है — ‘क्षमता की कमी’। यही बहाना बार-बार सुनने को मिलता है, और इसी बहाने से वे सत्ता अपने हाथ में रखते हैं।

    जनता को विकास से दूर रखना- आईएएस का असली खेल

    स्थानीय सरकारों को कमजोर कर के आईएएस देश की जनता को विकास से दूर रखता है। ये सत्ता की हवस और केंद्रीकरण की बीमारी है जो भारत को पीछे खींच रही है। अब समय आ गया है कि इस तानाशाही को खत्म किया जाए और असली लोकतंत्र को मजबूत किया जाए!

    पूर्व आईएएस टीआर रघुनंदन की इस आलोचना के बाद जब thesootr ने भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) की चुनौतियों और नकारात्मक रिपोर्ट के बारे में Data Mining की तो कई रोचक जानकारियां सामने आईं। इन्हें रिफ्रेंस के साथ देखा जा सकता है… 

    भारतीय प्रशासनिक सुधार आयोग (Administrative Reforms Commission - ARC) ने अपनी विभिन्न रिपोर्ट्स में भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियों और नकारात्मक पहलुओं की ओर इशारा किया है।  

    लालफीताशाही और अकुशलता  

    द्वितीय ARC (2005-2009) ने अपनी रिपोर्ट "Refurbishing of Personnel Administration" (4th Report, 2008) में IAS की कार्यप्रणाली को अक्सर लालफीताशाही, धीमी और नौकरशाही अड़चनों से भरा बताया। 

    आयोग ने कहा कि IAS अधिकारियों को नियम-कानूनों के पालन में इतना उलझा दिया जाता है कि नवाचार और जनहित की गति प्रभावित होती है।  
    [स्रोत: 2nd ARC, 4th Report (2008), Chapter 4]

    राजनीतिक दबाव और निष्पक्षता की कमी 

    द्वितीय ARC ने अपनी 12वीं रिपोर्ट (2008) "Citizen Centric Administration" में कहा कि IAS अधिकारी अक्सर राजनीतिक नेतृत्व के दबाव में काम करते हैं, जिससे नीतिगत निर्णयों में पक्षपात होता है।  

    कुछ मामलों में, IAS अधिकारी सत्ताधारी दल के हितों को प्राथमिकता देते हैं, जो प्रशासनिक निष्पक्षता के लिए हानिकारक है।  
    [स्रोत: 2nd ARC, 12th Report (2008), Chapter 3]

    विशेषज्ञता की कमी  

    ARC ने कहा कि IAS एक सामान्य नागरिक सेवा है, जिसमें तकनीकी या डोमेन-विशिष्ट ज्ञान की कमी होती है। इससे विशेषज्ञता वाले क्षेत्रों (जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, इंफ्रास्ट्रक्चर) में अकुशल निर्णय होते हैं।  

    आयोग ने लैटरल एंट्री और विशेषज्ञों की नियुक्ति का सुझाव दिया ताकि प्रशासनिक सेवाएं अधिक प्रभावी हो सकें।  
    [स्रोत: 2nd ARC, 10th Report (2008), Chapter 5]

    जवाबदेही का अभाव

    द्वितीय ARC ने "Ethics in Governance" (4th Report, 2007) में कहा कि IAS अधिकारियों के लिए स्पष्ट जवाबदेही तंत्र का अभाव है।  

    भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई धीमी होती है, और कई बार अधिकारी दंड से बच जाते हैं।  
    [स्रोत: 2nd ARC, 4th Report (2007), Chapter 6]

    प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण में कमियां

    ARC ने "Capacity Building for Conflict Resolution" (5th Report, 2007) में उल्लेख किया कि IAS अधिकारियों का प्रशिक्षण व्यवस्था वास्तविक जमीनी चुनौतियों से मेल नहीं खाती।  

    नए अधिकारियों को प्रैक्टिकल अनुभव के बजाय सैद्धांतिक ज्ञान पर जोर दिया जाता है।  
    [स्रोत: 2nd ARC, 5th Report (2007), Chapter 3]

    फील्ड अनुभव की उपेक्षा

    कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया कि IAS अधिकारी जल्दी ही सचिवालय-केंद्रित भूमिकाओं में चले जाते हैं, जिससे ग्रामीण और जमीनी स्तर की समस्याओं की समझ कमजोर होती है।  

    ARC की रिपोर्ट्स IAS के कठोर नौकरशाही ढांचे, राजनीतिक हस्तक्षेप, जवाबदेही की कमी और विशेषज्ञता के अभाव को प्रमुख चुनौतियां मानती हैं। हालांकि, ये रिपोर्ट्स IAS को समाप्त करने की बजाय सुधारों (जैसे लैटरल एंट्री, बेहतर प्रशिक्षण, जवाबदेही तंत्र) पर जोर देती हैं।  

    नोट: आप विस्तृत जानकारी के लिए 2nd ARC की रिपोर्ट्स को https://darpg.gov.in/arc-reports पढ़ सकते हैं।

    Aditya Shrivastava: कौन हैं आदित्य श्रीवास्तव; जिन्होंने UPSC परीक्षा में  किया टॉप - Haribhoomi

    भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) की रोचक जानकारियां

    2024 की सिविल सेवा परीक्षा (CSE) के आंकड़े    

    • आवेदकों की संख्या  : लगभग 11.5 लाख (2023 के मुकाबले 6% की वृद्धि)।  
    • योग्य उम्मीदवार  : 14,624 (प्रारंभिक परीक्षा पास करने वाले)।  
    • चयनित होने वाले  : 1,016 (2023 में 933 के मुकाबले)।  
    • टॉपर: आदित्य श्रीवास्तव (AIR 1, 2023 के परिणाम 2024 में घोषित)।  
    • सोर्स: https://www.upsc.gov.in/

    महिला IAS अधिकारियों की बढ़ती भागीदारी    

    • 2023 की फाइनल लिस्ट में  30% महिलाएं शामिल (पहली बार 320+ महिलाएं चयनित)।  
    • 1951 में यह आंकड़ा मात्र   12%  था।  
    • सोर्स :  https://dopt.gov.in/

    सबसे कम उम्र और सबसे अधिक उम्र के चयनित उम्मीदवार    

    IAS अधिकारियों का वेतन और सुविधाएं   

    • बेसिक पे : 56 हजार एक सौ रुपए (7वें वेतन आयोग के अनुसार, पे लेवल 10)।  
    • कुल वार्षिक पैकेज  : 15-18 लाख रुपए (HRA, TA और अन्य भत्तों सहित)।  
    • सोर्स :  https://dopt.gov.in/sites/default/files/7cpc_report.pdf

    IAS अधिकारियों का कार्यकाल और पोस्टिंग    

    • प्रोबेशन पीरियड  : 2 वर्ष (लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेशन में ट्रेनिंग)।  
    • पहली पोस्टिंग  : आमतौर पर SDM या असिस्टेंट सेक्रेटरी के रूप में।  
    • सोर्स : https://dopt.gov.in/

    राज्य-वार चयनित उम्मीदवार (2023) 

    • टॉप 3 राज्य  :  
       
    • उत्तर प्रदेश (115) 
    • बिहार (75)  
    • राजस्थान (60)  
    • सोर्स : https://www.upsc.gov.in/

    प्रमुख चुनौतियां    

    • राजनीतिक दबाव  : 43% IAS अधिकारियों ने सर्वे में इसे मुख्य समस्या बताया (लोकपाल रिपोर्ट 2023)।  
    • सोर्स :  https://cvc.gov.in/
    • अधिक जानकारी के लिए UPSC की आधिकारिक वेबसाइट https://www.upsc.gov.in/ देखें।

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